जूट के बोरों के अनिवार्य पैकेजिंग नियमों में और ढील देने संबंधी केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के एक प्रस्ताव से उद्योग के लिए बाजार कम होने वाला है। विभाग ने 2017-18 के सीजन के लिए जूट के बोरों में पैक करने वाले खाद्यान्न को अभी के 90 प्रतिशत से कम करके 75 प्रतिशत किया है। चीनी के मामले में मौजूदा 20 प्रतिशत की अनिवार्य पैकेजिंग के आदेश को पूरी तरह हटाने का प्रस्ताव है। आगामी गुरुवार को होने वाली बैठक के दौरान 2017-18 के लिए पैकेजिंग संबंधी नियमों की सिफारिश के लिए इन मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाना है।
इस उद्योग को जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम का लाभ मिलता है। जिसके तहत सरकारी खरीद करने वाली एजेंसी को चीनी और खाद्यान्न की पैकेजिंग जूट के बोरों में करना अनिवार्य होता है। बाजार की हालत जांचने के बाद हर साल इसमें कटौती या हल्केपन की छूट दी जाती है। पैकेजिंग में व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले बी-टि्वल जूट के बोरे काफी हद तक सरकारी खरीद पर ही टिके हुए हैं और उनका कोई अन्य वैकल्पिक बाजार नहीं है। हालिया प्रस्तावित ढील से 2017-18 के लिए मिलों को 2,000 करोड़ रुपये की हानि हो सकती है।
जूट उद्योग दावे के साथ कहता है कि वह चीनी और खाद्यान्न दोनों की पैकेजिंग जरूरतों को पूरी तरह से पूरा कर सकता है। इस साल कच्चे जूट का उत्पादन करीब 80 लाख गांठ (एक गांठ=180 किलोग्राम) है। इसके अलावा पिछले सीजन से भी कच्चे जूट का करीब 20 लाख गांठ का स्टॉक उपलब्ध है जिसका नोटबंदी की वजह से प्रयोग नहीं हो पाया। जूट पैकेजिंग में ढील के संबंध में एक प्रमुख मिल मालिक ने कहा कि यह सब कृत्रिम संकट है। जब कच्चे जूट का पर्याप्त उत्पादन है और इसके अनुरूप जूट के बोरों की उपलब्धता है तो ऐसे में हल्कापन करने का कोई कारण नहीं है। उद्योग खरीद एजेंसी में बदलाव और मांग पत्र की व्यवस्था में देरी के कारण मुश्किलों का सामना कर रहा है।
हालांकि खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने पूर्व के रबी विपणन सीजन में कहा है कि सरकारी एजेंसियों की जरूरत पूरी नहीं हो सकी है और 40 प्रतिशत तक के हल्केपन की अनुमति देनी पड़ी थी। ऐसा लगता है कि एचडीपीई (हाई डेंसिटी पोलीथिलीन) बोरों की वैकल्पिक पैकेजिंग के इंतजाम से जूट के बोरों की कमी 'नियमित खासियत' हो गई है। कपड़ा मंत्रालय के संयुक्त सचिव (जूट) प्रशांत त्रिवेदी ने एक आधिकारिक नोट में कहा है कि जूट मिलों की सीमित उत्पादन क्षमता और कच्चे जूट के उत्पादन में कमी ने जूट के बोरों की कीमतों को बढ़ा दिया है।