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लगाम के बावजूद चीनी बेलगाम
Date: 21 Apr 2017
Source: Business Standard
Reporter: सुशील मिश्र
News ID: 8588
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सूखे की मार ने गन्ने की फसल कमजोर कर दी जिसका असर चीनी उत्पादन पर पड़ा और नतीजे में चीनी के दाम बढऩे लगे। खुले बाजार में चीनी महंगी हुई तो शेयर बाजार में भी चीनी कंपनियों के शेयर महंगे होते गए। हालांकि सरकार ने घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में तेजी रोकने के लिए भंडारण सीमा और आयात की अनुमति जैसे कदम उठाए हैं। इसके बावजूद चीनी के दामों और उनके शेयरों में मजबूती बनी हुई है। पिछले छह महीने में चीनी कंपनियों के शेयरों मेंं सवा सौ फीसदी तक की तेजी आ चुकी है।
 
चीनी की बढ़ती कीमतों को काबू करने के सरकारी प्रयास ज्यादा कारगार नहीं हो रहे हैं। कम से कम शेयर बाजार के रुझान तो यही संकेत देते हैं। भंडारण सीमा की सरकारी सख्ती के बावजूद चीनी कंपनियों के शेयरों में तेजी का दौर बना हुआ है। बुधवार को सरकारी फरमान आया और गुरुवार को चीनी शेयरों में फिर उछाल आ गई। चीनी शेयर करीब 10 फीसदी तक बढ़े। चालू चीनी साल में पिछले छह महीनों में चीनी सूचकांक में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि इस दौरान बीएसई सूचकांक महज पांच फीसदी मजबूत हुआ है। पिछले छह महीने में उत्तम शुगर 124 फीसदी, सर शादीलाल 117 फीसदी, धामपुर शुगर 89 फीसदी, इंडियन स्क्वायर 88 फीसदी, द्वारिकेश शुगर 80 फीसदी, पैरी शुगर 65 फीसदी, डालमिया शुगर 58 फीसदी, त्रिवेदी इंजीनियरिंग 55 फीसदी, डीसीएमस श्रीराम 41 फीसदी, बलरामपुर चीनी 37 फीसदी सहित अधिकांश चीनी कंपनियों के शेयरों में तेज बढ़ोतरी हुई है। 
 
कंफर्ट कमोडिटी के प्रबंध निदेशक अनिल अग्रवाल कहते हैं कि चीनी उत्पादन कम हुआ है। देश में आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक रहने वाली है जिससे चीनी के दाम बढ़ रहे हैं। आने वाले दिनों में चीनी और महंगी होगी जिसका सीधे फायदा चीनी कंपनियों को हो रहा है। चीनी राजस्व बढऩे से कंपनियों की आर्थिक स्थिति मेंं सुधार हुआ है जिससे निवेशक इनके शेयरों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। सरकार ने पांच लाख टन चीनी आयात की अनुमति दी है जो पर्याप्त नहीं है। इससे आने वाले दिनों में भी चीनी कंपनियों के शेयरों में तेजी बनी रह सकती है। अग्रवाल कहते हैं कि पिछले साल 23 रुपये किलो बिकने वाली चीनी अब 44 रुपये किलो पहुंच चुकी है। अक्टूबर से शुरु होने वाले चीनी सीजन 2017-18 में चीनी उत्पादन में सुधार के बावजूद चीनी का आयात करना पड़ेगा क्योंकि देश में खपत बढऩे की पूरी संभावना है। इस सीजन का कैरी ओवर स्टॉक भी कम रहेगा। 
 
चीनी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के कारण सरकार ने स्टॉक सीमा छह महीने यह सोचकर बढ़ाई कि इससे जमाखोरी और कालाबाजारी करने वालों पर काबू रखा जा सकेगा। इस कदम से घरेलू बाजार मेंं चीनी की उपलब्धता बढ़ेगी। कोई भी कारोबारी या चीनी मिलें निर्धारित मात्र से अधिक का भंडार नहीं रख सकेंगी। थोक व्यापारियों के लिए भंडारण सीमा 500 टन तय की गई है जबकि पश्चिम बंगाल में कारोबारी एक हजार टन चीनी का भंडार रख सकेंगे। इसके अलावा पांच लाख टन कच्ची चीनी  के आयात की अनुमति भी दी गई है। लेकिन कारोबारी इसे पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। चीनी मिलें इसके अलावा भी आयात कर सकती हैं लेकिन उनको 40 फीसदी का भारी आयात शुल्क चुकाना पड़ेगा। अमेरिकी कृषि विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चीनी वर्ष 2017-18 में चीनी आयात की मांग 17 लाख टन तक जा सकती है। 
 
  

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