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यूपी की मिलें भी चीनी आयात में लेंगी हिस्सा
Date: 17 Apr 2017
Source: Business Standard
Reporter: Dilip Kumar Jha
News ID: 8569
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उत्तर प्रदेश की कुछ चीनी मिलें अपनी रिफाइनरियों का परिचालन बढ़ाने के लिए कच्ची चीनी के आयात कार्यक्रम में भाग लेने पर विचार कर रही हैं। हालांकि बंदरगाहों से रिफाइनरियों तक कच्ची चीनी लाने में परिवहन लागत अधिक आ सकती है, जिससे इनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने यूपी की ऐसी दो चीनी मिलों से बात की, जो कच्चे माल के आयात के लिए आवेदन करने की तैयारी में हैं। दूसरी तरफ सिंभावली शुगर्स के मुख्य वित्त अधिकारी संजय तापडिय़ा के अनुसार उन्होंने अब तक कच्ची चीनी के आयात कार्यक्रम में शामिल होने पर कोई निर्णय नहीं लिया है। तापडिय़ा ने कहा, 'इस साल कच्ची चीनी मंगाने पर अब तक हमने कोई फैसला नहीं किया है।'
 
बलरामपुर चीनी और द्वारिकेश शुगर ने इस कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया है। इन दोनों चीनी मिलों के प्रतिनिधियों ने इस बात की पुष्टिï की है। बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने कहा, 'कच्ची चीनी को परिष्कृत चीनी में बदलने के कारोबार में हमें फायदा नहीं दिख रहा है।' जो चीनी मिलें इस आयात कार्यक्रम में हिस्सा लेने पर विचार कर रही हैं, वे कच्ची चीनी को शोधित कर उत्तर प्रदेश और आस-पास के बाजारों में बिक्री से जुड़ी वित्तीय संभावनाओं का मूल्यांकन कर रही हैं। 
 
कच्ची चीनी के आयात कार्यक्रम पर चीनी उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'ब्राजील से आने वाली आयातित चीनी की लागत इस समय 31.50 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि यूपी में चीनी की मौजूदा कीमत (मिलों की कीमत) 35.50 रुपये प्रति किलोग्राम है। 31.50 रुपये में अगर परिवहन और परिष्करण खर्च जोड़ दें तो यूपी की चीनी मिलों को बिक्री पर 2 रुपये प्रति किलोग्राम फायदा होगा। हालांकि छोटी मिलें कच्ची चीनी प्रसंस्कृत नहीं कर पाएंगी क्योंकि कम मात्रा के कारण उनकी लागत खर्च अधिक होती है।'
 
इंडियन शुगर्स मिल्स एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा का कहना है कि कच्ची चीनी के आयात कार्यक्रम में भाग लेने पर दक्षिण भारत की चीनी मिलों को अधिक फायदा होगा, क्योंकि वे बंदरगाहों से कम दूरी पर हैं। श्रीरेणुका शुगर्स की हल्दिया (पश्चिम बंगाल), कांडला (गुजरात) और कर्नाटक में दो जगह पर चीनी मिलें हैं और इससे निश्चित तौर पर लाभ होगा। इस क्षेत्र की दूसरी चीनी मिलों को भी फायदा होगा।
 
श्री रेणुका शुगर्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी कहते हैं, 'हमारी उन सभी तीन क्षेत्रों में चीनी मिलें हैं जहां सरकार को चीनी की उपलब्धता कम लगी है। लिहाजा हम कच्ची चीनी के आयात के लिए आवेदन करेंगे।' देश के पश्चिमी और दक्षिण राज्यों महाराष्टï्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में चीनी की किल्लत है। सरकार ने दक्षिण क्षेत्र में बंदरगाहों के माध्यम से 300,000 टन और पश्चिम और पूर्वी क्षेत्र के लिए क्रमश: 150,000 और 50,000 टन कच्ची चीनी के आयात की अनुमति दी है। सरकार ने 13 अप्रैल को संशोधित दिशानिर्देश में वास्तविक उपभोक्ताओं तक कच्ची चीनी का आयात प्रतिबंधित कर दिया था। वर्मा के अनुसार केवल चीनी मिलों को आयात की अनुमति देना सरकार की अच्छी मंशा दर्शाती है।
 
  

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