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News
बेहतर गन्ना मूल्य के लिए चीनी निर्यात बढऩा जरूरी : विनय
Date:
30 Dec 2011
Source:
The Business Bhaskar
Reporter:
हरवीर सिंह
News ID:
812
Pdf:
Nlink:
देश के चीनी उत्पादन में 40 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी वाले सहकारी क्षेत्र की संस्था नेशनल फेडरेशन ऑफ को-आपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर विनय कुमार का कहना है कि सहकारी क्षेत्र गन्ना किसानों को बेहतर दाम देने का हिमायती है। लेकिन इसके लिए जहां सरकार को 40 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देनी चाहिए। वहीं चीनी उद्योग पर लागू नियंत्रण समाप्त करने चाहिए ताकि चीनी उद्योग व्यावसायिक और प्रतिस्पर्धा के आधार पर फैसले ले सके। उद्योग से जुड़े तमाम मुद्दों पर विनय कुमार से बिजनेस भास्कर ने बातचीत की। पेश है हरवीर सिंह के साथ उनकी बातचीत के मुख्य अंश: लंबे समय से चीनी मिलों की ओर से गन्ने व चीनी की कीमतों में असंतुलन को लेकर आपत्ति जताई जा रही है। आपके मुताबिक क्या इस समस्या का कोई हल है? गन्ना मूल्य का मुद्दा काफी पेचीदा है। इसको लेकर विवाद भी होता रहा है लेकिन एक बात साफ है कि गन्ना मूल्य और चीनी की कीमतों के बीच संतुलन जरूरी है। यह बात भी सही है कि गन्ना किसानों को बेहतर दाम मिलना चाहिए लेकिन यह तभी संभव है जब चीनी मिलों को भी बेहतर कमाई हो। कई बार गन्ने व चीनी की कीमतों में असंतुलन से चीनी मिलों को नुकसान भी उठाना पड़ता है। गन्ने की कटाई पांच-छह महीने होती है, ऐसे में किसानों को बेहतर मुनाफे की उम्मीद होती है। गन्ने की कटाई का लागत मूल्य बढ़ रहा है। लेकिन जब भी चीनी की कीमतों में तेजी आती है तो सरकार चीनी का कोटा जारी कर कीमतों को अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करती है। अधिकतर समय चीनी की कीमतें उत्पादन लागत से कम ही होती हैं। आपका कहना है कि सरकार की चीनी उद्योग पर नियंत्रण की नीति किसानों को बेहतर गन्ना मूल्य मिलने में बाधक है? असल में चीनी उद्योग देश में आर्थिक उदारीकरण का लाभ नहीं मिला है। यह ऐसा उद्योग है जो अभी भी सबसे अधिक नियंत्रित है। चीनी मिलों को अपने उत्पादन का 10 फीसदी सरकार को लेवी में देना होता है और इसकी कीमत बाजार मूल्य से काफी कम होती है। इसका वितरण राशन के तहत गरीबी रेखा के नीचे के (बीपीएल) परिवारों के लिए होता है। गन्ने व चीनी की कीमतों में असंतुलन दूर करने के लिए सरकार की ओर से गठित नंद कुमार कमेटी की सिफारिशें लागू होनी चाहिए। जिसमें चीनी की कीमतें गन्ने के मूल्य के आधार पर तय करने की सिफारिश की गई है। लेकिन सरकार ने इस फॉर्मूले को गन्ना किसानों व भागीदारों के लिए अनुकूल बनाने के लिए रंगराजन समिति का गठन किया है जिसने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। कोई भी चीनी मिल अपने स्वयं के निर्णय पर गन्ने की ऊंची कीमतें दें दे। आप क्या सोचते हैं? गुजरात और महाराष्ट्र की कुछ चीनी मिलें गन्ने की ऊंची कीमतों का भुगतान कर रही हैं। गुजरात की गंदेवी चीनी मिल ने 2010-11 में 2507 प्रति टन के हिसाब से गन्ने की कीमत का भुगतान किया था। 2009-10 में 3027 रुपये प्रति टन के हिसाब से भुगतान किया था। इस चीनी मिल द्वारा संसाधनों के बेहतर उपयोग और बेहतर प्रबंधन के चलते यह संभव हुआ है। देश की बाकी चीनी मिलों के लिए यह एक बेहतर उदाहरण की तरह है। चालू वर्ष में चीनी का कितना निर्यात होने की संभावना है? इस साल देश में 260 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। करीब 61 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक है। इस हिसाब से कुल उपलब्धता 321 लाख टन होगी, जो घरेलू खपत 220 लाख टन से अधिक है। मतलब करीब 40 लाख टन चीनी का निर्यात आसानी से किया जा सकता है। सरकार को 40 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति देनी चाहिए ताकि घरेलू बाजार में नुकसान की भरपाई की जा सके। सरकार ने अभी केवल 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें गिर रही हैं। सरकार से जल्द से जल्द 30 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति लेंगे। घरेलू बाजार में अभी 2,950 से 3,050 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत चल रही है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 600 डॉलर प्रति के करीब है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार को निर्यात की अनुमति का फैसला जल्दी करना चाहिए ताकि चीनी मिलों को गन्ना मूल्य भुगतान में संकट न हो। क्या आप सोचते हैं कि चीनी उद्योग पर नियंत्रण से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है? चीनी उद्योग में उत्पादन व कीमतों से लेकर पैकेजिंग तक का काम नियंत्रण में है। चीनी एकमात्र कमोडिटी है जो सबसे अधिक नियंत्रण में है, इससे समस्या ज्यादा बढ़ती है। ऐसे में उपलब्धता का संकट पैदा होने पर ही मिलों को ज्यादा फायदा हो पाता है। क्या लेवी शुगर की सप्लाई का दायित्व चीनी मिलों पर डालना सरकार का सही कदम है? यह सही नहीं ठहराया जा सकता। जब सरकार पीडीएस के लिए अन्य खाद्य उत्पादों चावल, गेहूं आदि की खरीद कर रही है तो चीनी में ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा है?
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