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News


चीनी निर्यात में रोड़ा बनी चुनाव आचार संहिता
Date: 27 Dec 2011
Source: Dainik Jagran
Reporter: Surendra Prasad Singh
News ID: 802
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सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली चीनी निर्यात की राह में चुनाव आचार संहिता आड़े आ गई है। इससे गन्ना किसानों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में बीते शनिवार को चुनाव की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की वित्तीय सेहत पर पड़ सकता है। किसानों को उनके गन्ने का भुगतान रुक सकता है। इसके लिए केंद्र सरकार को वाजिब कारण बताकर निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी होगी। चीनी उद्योग की माने तो जनवरी के दूसरे सप्ताह से किसानों पर इसका असर दिखाई पड़ सकता है। उस समय तक चीनी मिलों की कर्ज सीमा समाप्त होने लगेगी, जिससे गन्ने का भुगतान प्रभावित होना शुरू हो सकता है। आने वाली इस समस्या को लेकर मिलों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। दूसरी तरफ उत्पादन और स्टॉक बढ़ने से घरेलू बाजार में चीनी के मूल्य में गिरावट का रुख हो सकता है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा का कहना है कि पिछले साल दक्षिण भारत के चार पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की वजह से ओजीएल के तहत होने वाले पांच लाख टन चीनी के निर्यात में भी दिक्कतें आई थीं। इसके लिए खाद्य मंत्रालय ने चुनाव आयोग से अनुमति मांगी थी। इस मामले को एक बार फिर आयोग के पास भेजना पड़ेगा। चीनी उद्योग सरकार से चीनी निर्यात की अगली खेप के लिए आदेश जारी करने की मांग कर रहा है, ताकि चीनी उद्योग की वित्तीय हालत में सुधार हो सके। केंद्र सरकार ने नवंबर में 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी थी। इसके लिए अभी तक सिर्फ 1.50 लाख टन चीनी का निर्यात कोटा जारी किया जा सका है। निर्यात को लेकर सरकार के इस ढीले रवैए से चीनी उद्योग में नाराजगी है। राज्य में चीनी उद्योग का यहां की राजनीति से बड़ा नजदीकी संबंध है। यही वजह है चालू पेराई सीजन में गन्ने की उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में राज्य की सत्तारुढ़ बसपा सरकार ने विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ही 20 फीसद तक की बढ़ोतरी की घोषणा की है। राज्य के समृद्ध पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वाचल में सर्वाधिक चीनी मिलें हैं, जो राजनीतिक रूप से बहुत अधिक संवेदनशील है।  
  

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