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Date:
23 Nov 2011
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नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चीनी उद्योग के भारी दबाव के चलते सरकार ने मंगलवार को चालू पेराई सत्र में 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी है। चीनी का यह निर्यात लाइसेंस मुक्त होगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह [ईजीओएम] की बैठक में यह फैसला लिया गया। चीनी उद्योग ने सरकार के इस फैसले से राहत महसूस की है। लेकिन चीनी निर्यात के फैसले से घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ सकती हैं।
चालू पेराई सीजन में 246 लाख टन से अधिक चीनी उत्पादन का सरकारी अनुमान है। जबकि चीनी उद्योग का अनुमान 260 लाख टन का है। चीनी की घरेलू खपत और उत्पादन का अंतर लगभग 40 लाख टन पहुंच गया है। घरेलू बाजार में चीनी के मूल्य पिछले साल से लगभग स्थिर हैं। जबकि चीनी उत्पादन की लागत में वृद्धि होने से उद्योग घाटे में जा रहे थे। पुराना स्टॉक और उत्पादन बढ़ने के अनुमान से चीनी उद्योग जबरदस्त दबाव में था। इसके मुकाबले अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ाकर बोली जा रही थीं।
चीनी की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर घरेलू निर्यातकों को तीन से चार रुपये प्रति किलो का फायदा हो सकता है। लेकिन यह लाभ महाराष्ट्र की मिलों को ही संभव है। उत्तर प्रदेश की चीनी को बंदरगाह तक ले जाने का खर्च ही दो से तीन रुपये प्रति किलो बैठ जाएगा।
उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिक गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य [एसएपी] 240 रुपये प्रति क्िवटल को लेकर सख्त नाराज थे। उन्होंने पिछले दिनों चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि निर्यात की अनुमति नहीं मिली तो वे गन्ने का भुगतान करने में असमर्थ रहेंगे। राजनीतिक तौर पर गन्ना किसानों का मसला काफी संवेदनशील माना जाता है। उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में गन्ने का भुगतान रुकने पर राजनीतिक बवाल मचना तय था।
उधर, महाराष्ट्र के चीनी मिल वालों ने निर्यात की अनुमति के लिए राज्य सरकार पर जबरदस्त दबाव बनाया था। सूत्रों के मुताबिक ईजीओएम की बैठक में महाराष्ट्र के नेता विलासराव देशमुख और शरद पवार ने चीनी मिलों की जमकर पैरवी की। भारतीय चीनी मिल संघ [इस्मा] के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि इससे चीनी उद्योग को राहत मिलने की संभावना है
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