उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य के चीनी क्षेत्र में किसानों की भागीदारी मजबूत बनाने के लिए तेजी से प्रयास कर रही है। चीनी क्षेत्र लगभग 40 लाख कृषि परिवारों की जिंदगी से जुड़ा हुआ है और यह हर साल अर्थव्यवस्था में लगभग 35,000 करोड़ रुपये का योगदान देता है। प्रदेश के गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग मंत्री सुरेश राणा ने गन्ना के बकाया भुगतान के बोझ से जूझ रहीं मोदी गु्रप, सिंभावली, बजाज हिंदुस्तान, वेव ग्रुप, यदु, उत्तम इंडियन पोटाश, बिड़ला आदि जैसी चीनी मिलों के मालिकों की 12 अप्रैल को बैठक बुलाई है। मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी संभालने के बाद से ही योगी ने कृषि और किसानों के प्रति अपनी प्रतिबद्घता पर जोर दिया है और कृषि आय को अगले कुछ वर्षों में दोगुना किए जाने के लिए कई सक्रिय कदम उठाए हैं। सरकार ने भविष्य में नई चीनी मिलें भी खोलने का वादा किया है। गन्ना सबसे बड़ी नकदी फसल है और मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा चीनी और गन्ना उत्पादक राज्य है। 23 मार्च को योगी ने राज्य की गन्ना मिलों से एक महीने के अंदर बकाया निपटाने को कहा था और इसमें विफल रहने वाली इकाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी थी। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने 2017 के चुनाव घोषणापत्र में गन्ना किसानों का भुगतान गन्ने की खरीदारी के बाद 14 दिन के अंदर सुनिश्चित किए जाने का वादा किया था। मौजूदा समय में निजी मिलों पर लगभग 6,000 करोड़ रुपये का बकाया है और इसे चुकाए जाने के लिए निर्धारित अंतिम तारीख 23 अप्रैल में दो सप्ताह से भी कम का समय रह गया है। मौजूदा समय में गन्ना पेराई सत्र चल रहा है और इसके मई तक बरकरार रहने की संभावना है। 116 में से 50 गन्ना मिलें अपना पेराई सत्र का परिचालन पूरा कर चुकी हैं। राज्य की सभी मिलों ने इस पेराई सत्र में लगभग 80 लाख टन चीनी का उत्पादन किया जबकि पिछले सीजन 2015-16 में यह आंकड़ा 70 लाख टन था। इसके अलावा योगी सरकार ने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल (2007-12) के दौरान 21 चीनी मिलों की बिक्री में 1,200 करोड़ रुपये के नुकसान की भी जांच शुरू कराई है। यह जांच चीनी मिलों की भूमि और मशीनरी के मूल्यांकन में विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए की जा रही है।