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चीनी का दाम 7 साल में सबसे ज्यादा, ऐक्शन में आ सकती है केंद्र सरकार
Date: 12 Jan 2017
Source: Nav Bharat Times
Reporter: Jayashree Bhosale
News ID: 6305
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चीनी की थोक कीमतें सात साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। चीनी के प्रमुख उत्पादक महाराष्ट्र में कीमतों ने 40 रुपये प्रति किलो के स्तर को छुआ है, इसके ऊपर केंद्र सरकार कार्रवाई कर सकती है। पिछली बार जनवरी 2010 में M30 ग्रेड शुगर के दाम 40 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंचे थे। हालांकि, इतनी ज्यादा कीमत सिर्फ आठ दिनों तक ही रही थी।

केंद्र सरकार ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह चीनी की कीमतें 40 रुपये प्रति किलो से ऊपर नहीं चाहती। इसके दाम मंगलवार को उस समय इस लेवल पर पहुंच गए थे, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में ध्यानेश्वर सहकारी शक्कर कारखाने ने L ग्रेड वाली शुगर बेची। L ग्रेड वाली शुगर का उत्पादन कम मात्रा में होता है। हालांकि, घरों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाली M ग्रेड शुगर सरकार के 40 रुपये/ किलो के कंफर्ट लेवल के करीब 39 रुपये/किलो पर मिल रही है।

ध्यानेश्वर SSK के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल शेवाले का कहना है, ‘संक्रांति के कारण डिमांड में कुछ तेजी देखने को मिली है। नोटबंदी के बाद डिमांड में गिरावट देखने को मिली थी। हमारा मानना है कि चीनी की कीमतें 39-40 रुपये प्रति किलो के स्तर पर स्थिर रह सकती हैं।’

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि जमाखोरी के चलते चीनी के दाम नहीं बढ़े हैं। उनके मुताबिक, इसकी बुनियादी वजहें हैं। ध्यानेश्वर कारखाने में गन्ने की पेराई 49 दिनों में ही बंद हो गई थी, यह करीब 40 साल पहले मिल शुरू होने के बाद से सबसे छोटा सीजन है। मुंबई में होलसेल सेट्स लगभग मिल रेट्स के बराबर ही हैं, क्योंकि ज्यादातर बिक्री प्रॉफिट बुकिंग के लिए हो रही है।

बॉम्बे शुगर मर्चेंट्स असोसिएशन के प्रेजिडेंट अशोक जैन का कहना है, ‘एक पखवाड़े के भीतर चीनी की कीमतों में करीब 3.5 रुपये प्रति किलो के बढ़ोतरी हुई है।’ व्यापारियों ने दावा किया कि उनके बीच डर बढ़ा है, क्योंकि कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक देश में मंगलवार को चीनी की खुदरा कीमतें 36-47 रुपये प्रति किलो की रेंज में रहीं। चीनी उद्योग को लंबे वक्त के बाद पिछले साल कुछ राहत मिली। पहले चीनी की कीमत इतनी कम हो गई थी कि मिलों के लिए लागत वसूल पाना मुश्किल हो रहा था। चीनी राजनीतिक तौर पर संवेदनशील कमोडिटी है। इसलिए सरकार की हमेशा उसके दाम पर नजर रहती है। इस तरह की आशंका जताई गई थी कि एक लेवल से दाम ऊपर जाने पर सरकार सख्ती कर सकती है। कच्ची चीनी के आयात को लेकर भी बहस गर्म है। चीनी के दाम बढ़ने पर कच्ची चीनी विदेश से मंगाने की इजाजत दी जाती है, जिसे प्रोसेस करके घरेलू बाजार में बेचा जाता है।          

 
  

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