कोलकाता : डायबिटीज के मरीजों के लिए अच्छी खबर है। विधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नारियल के पेड़ पर उगने वाले फूल के रस से खास किस्म की चीनी तैयार कर एक बड़ी उपलब्धि अपने नाम दर्ज की है। यह चीनी पूरी तरह शुगर-फ्री है। गन्ने से तैयार की जाने वाली चीनी में ग्लाइसेमिक की मात्र अधिक होती है जबकि इस चीनी में ग्लाइसेमिक की मात्र बहुत कम है। ऐसे में इसका उपभोग डायबिटीज के मरीज बिना किसी भय के कर सकते हैं। 1कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि नारियल के पेड़ पर हरेक महीने एक फूल पैदा होता है यानी 12 महीने में 12 फूल होते हैं। उनमें से आठ से 10 फूल में से फल की उत्पत्ति होती है। एक फूल में ऊपर की तरफ नर फूल और नीचे की तरफ मादा फूल होता है। उस फूल को कसकर बांध दिया जाता है और उसके बाद फूल की ऊपर से नीचे तक दिन में तीन बार मालिश की जाती है। 4-6 दिनों के बाद फूल के ऊपरी भाग को काटकर फेंक दिया जाता है। ऊपर के हिस्से को एक बॉक्स से बंद कर दिया जाता है ताकि फूल में पैदा होने वाले रस को हवा लगने से बचाया जा सके व उसे ठंडा रखा जा सके। हवा लगने से रस के जम जाने की आशंका रहती है। फूल के ऊपरी हिस्से को काटने के दो दिन बाद उससे रस निकलना शुरू हो जाता है। दिनभर में तीन बार रस निकाला जा सकता है और निकालने के बाद उन्हें डीप फ्रिजर में रखना पड़ता है। इस रस को ऐसे भी पीया जा सकता है। इसे प्रोसेस कर चीनी तैयार की जाती है।जागरण संवाददाता, कोलकाता : डायबिटीज के मरीजों के लिए अच्छी खबर है। विधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नारियल के पेड़ पर उगने वाले फूल के रस से खास किस्म की चीनी तैयार कर एक बड़ी उपलब्धि अपने नाम दर्ज की है। यह चीनी पूरी तरह शुगर-फ्री है। गन्ने से तैयार की जाने वाली चीनी में ग्लाइसेमिक की मात्र अधिक होती है जबकि इस चीनी में ग्लाइसेमिक की मात्र बहुत कम है। ऐसे में इसका उपभोग डायबिटीज के मरीज बिना किसी भय के कर सकते हैं। 1कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि नारियल के पेड़ पर हरेक महीने एक फूल पैदा होता है यानी 12 महीने में 12 फूल होते हैं। उनमें से आठ से 10 फूल में से फल की उत्पत्ति होती है। एक फूल में ऊपर की तरफ नर फूल और नीचे की तरफ मादा फूल होता है। उस फूल को कसकर बांध दिया जाता है और उसके बाद फूल की ऊपर से नीचे तक दिन में तीन बार मालिश की जाती है। 4-6 दिनों के बाद फूल के ऊपरी भाग को काटकर फेंक दिया जाता है। ऊपर के हिस्से को एक बॉक्स से बंद कर दिया जाता है ताकि फूल में पैदा होने वाले रस को हवा लगने से बचाया जा सके व उसे ठंडा रखा जा सके। हवा लगने से रस के जम जाने की आशंका रहती है। फूल के ऊपरी हिस्से को काटने के दो दिन बाद उससे रस निकलना शुरू हो जाता है। दिनभर में तीन बार रस निकाला जा सकता है और निकालने के बाद उन्हें डीप फ्रिजर में रखना पड़ता है। इस रस को ऐसे भी पीया जा सकता है। इसे प्रोसेस कर चीनी तैयार की जाती है।