पिछले छह महीने से चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं और मध्यम अवधि में भी कीमतों में तेजी बरकरार रहने की उम्मीद है। राबो बैंक की हाल में रिलीज हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक इस रुझान की वजह से फूड और बेवरिज कंपनियों को ज्यादा जोखिम उठाना पड़ रहा है। राबो बैंक की फूड ऐंड एग्री बिजनेस रिसर्च ऐंड एडवाइजरी ने अपनी रिपोर्ट, 'हरी केन: मैनेजिंग हायर शुगर प्राइसेज इन एशिया' में कहा है, 'दुनिया में कच्चे चीनी की कीमतों में मध्य अप्रैल से 30 फीसदी की तेजी आई है। बाजार में 2016/17 में वैश्विक चीनी उत्पादन संभवत: कम ही रहा है। एशिया में घरेलू चीनी की कीमतें भी मजबूत बुनियाद को दर्शा रही हैं।
अगली कुछ तिमाहियों तक ऊंची कीमतों का रुझान बना रहेगा और एशियाई खाद्य और पेय उद्योग के मार्जिन पर इसका असर पड़ेगा।' कुछ भारतीय चीनी कंपनियां और यहां तक की बेवरिज और कन्फेक्शनरी निर्माताओं ने चीनी आपूर्ति के लिए अनुबंध वाली व्यवस्था पर चर्चा करना शुरू कर दिया है जो पिछले कुछ महीने में ही शुरू हुई है। पहले सरकार ने चीनी कोटा हटा दिया और आंशिक रूप से चीनी उद्योग पर से नियंत्रण हटाने की बात भी कही है लेकिन भारत में चीनी बाजार मंदी के चक्र में प्रवेश कर गया। ऐसे में अनुबंध वाली व्यवस्था में बड़े पैमाने पर तेजी नहीं आई। राबो की रिपोर्ट में कहा गया है, 'पांच सालों में एशिया को चीनी की कमी का अनुभव करना पड़ा।
2016/17 के चीनी सीजन में एशिया में चीनी उत्पादन कम रहने की उम्मीद है क्योंकि 2015 में अलनीनो की बनी स्थिति से सूखा बढ़ा और इससे उत्पादन पांच साल के निचले स्तर पर चला गया। चीनी के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश भारत में लगातार 2014/15 और 2015/16 में सूखे की वजह से उत्पादन में 37 लाख टन की कमी आई और यह 2016/17 में चीनी का शुद्ध आयातक बन गया। राबोबैंक ने यह पूर्वानुमान लगाया है कि 2015/2016 में एशिया में पांच सालों के दौरान पहली बार चीनी की कमी देखने को मिलेगी और अनुमानित कमी 20 लाख टन की होगी। वैश्विक स्तर पर यूरोप और ब्राजील अगले साल उत्पादन में सुधार देखने का अनुमान लगा रहे हैं। राबोबैंक को उम्मीद है कि अगले चीनी सीजन में दुनिया में चीनी की कमी 55 लाख टन हो सकती है।' राबोबैंक का कहना है कि एशियाई चीनी की खपत के लिए सॉफ्ट ड्रिंक सबसे अहम है। एशिया में सॉफ्ट ड्रिंक की खपत वृद्धि कम रही है ऐसे में राबोबैंक का अनुमान है कि दूसरे अन्य क्षेत्रों में वृद्धि तेज ही रहेगी। डेयरी खासतौर पर कंडेंस्ड मिल्क, आइसक्रीम और कन्फेक्शनरी दूसरे अहम सेगमेंट हैं और निकट भविष्य में स्थिर दर पर इनमें वृद्धि हो सकती है। सबसे बड़ा चीनी उपभोक्ता होने के बावजूद भारत गैर-घरेलू चीनी के लिए तेजी से वृद्धि करने वाला बाजार रह सकता है और कन्फेक्शनरी तथा सॉफ्ट ड्रिंक दो अहम क्षेत्र होंगे जिनमें खपत बढ़ेगी। हालांकि प्रसंस्कृत फल आधारित उत्पादों, कन्फेक्शनरी और परंपरागत मिठाई बाने वाले उद्योग से कारोबार में वृद्धि होगी।