केंद्र सरकार ने नवंबर से शुरू हो रहे 2023-24 आपूर्ति वर्ष में गन्ने के रस और शीरे से एथनॉल का उत्पादन रोकने का फैसला किया है। 7 दिसंबर के इस फैसले से चीनी क्षेत्र की दुविधा बढ़ी ही है, पेट्रोल डीजल में एथनॉल मिलाने की योजना को लेकर भी आशंकाएं जताई जा रही हैं।
कई विशेषज्ञ 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिलाने के लक्ष्य को लेकर सवाल उठा रहे हैं। 2025 तक 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य हासिल करने के लिए आपूर्ति वर्ष में 2023-24 पेट्रोल में 15 प्रतिशत एथनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल करने की जरूरत होगी।
लेकिन ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि अब जब इस प्रक्रिया से गन्ने के रस और शीरे को बाहर कर दिया गया है, तो 2023-24 में मिश्रण 10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पाएगा। हाल के वर्षों में गन्ने का रस एथनॉल के सबसे बड़े स्रोत के रूप में उभरा है। एथनॉल मिलाने की योजना में अब कुछ साल की देरी होना तय है, क्योंकि चीनी की स्थिति उत्साहजनक नहीं दिख रही है।
बहरहाल चीनी कंपनियों के जोरदार विरोध के बाद केंद्र सरकार ने प्रतिबंध की कुछ शर्तों में ढील दी है और आपूर्ति वर्ष 2023-24 में 17 लाख टन चीनी का इस्तेमाल एथनॉल बनाने में करने की अनुमति दे दी है, जबकि पहले 40 लाख की योजना थी। इससे 1.62 से 1.72 अरब लीटर एथनॉल उत्पादन में मदद मिलेगी।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह छोटी छूट है, क्योंकि 22 लाख टन चीनी का उत्पादन मिलों द्वारा इस मकसद से किया जाना था। इस प्रतिबंध से अगले 6 से 8 महीने तक चीनी कंपनियों के मुनाफे में कमी आने की आशंका है।
रिसर्च फर्म इंडिया रेटिंग्स ने हाल के रिसर्च नोट में कहा है कि चीनी कंपनियों का एबिटा (ब्याज, कर, मूल्यह्रास, ऋणशोधन से पहले की कमाई) वित्त वर्ष 24 और वित्त वर्ष 25 में 5 से 15 प्रतिशत कम रह सकता है। इसमें चीनी की बढ़ी कीमत से डिस्टिलरी के कम एबिटा से कुछ राहत मिलेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘प्रतिबंध के कारण आपूर्ति वर्ष 2023-24 में भारत का एथनॉल उत्पादन पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 20 प्रतिशत गिर सकता है, जिसका असर कंपनियों पर अलग-अलग होगा।
यह कुल कारोबार में गन्ने के रस पर आधारित एथनॉल के अनुपात पर निर्भर होगा।’ इसमें कहा गया है कि एथनॉल की बिक्री में कमी का असर वित्त वर्ष 24 की दूसरी छमाही से वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही के बीच होगा।
इसमें वित्त वर्ष 24 की चौथी तिमाही और वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही सबसे ज्यादा प्रभावित तिमाहियां होंगी, क्योंकि पेराई के सीजन में ही ज्यादातर गन्ने के रस से बनने वाला एथनॉल बेचा जाता है।
इसमें कहा गया है कि ‘जिन कंपनियों की गन्ने के रस से एथनॉल बनाने में हिस्सेदारी कम होती है, वह निकट अवधि के हिसाब से बेहतर स्थिति में रहेंगी। ’ इस कार्यक्रम का भविष्य अभी अनिश्चित है। वहीं भारतीय खाद्य निगम द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले गेहूं और मक्के से एथनॉल के उत्पादन पर चर्चा तेज हो गई है। उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक तेल विपणन कंपनियों ने 8.25 अरब लीटर एथनॉल आपूर्ति की निविदा खोली है।
पहली पेशकश में 5.62 अरब लीटर आपूर्ति के लिए बोली लगाई गई है, जो आमंत्रित निविदा का करीब 69 प्रतिशत है। 5.62 अ्रब लीटर एथनॉल में से करीब 2.69 अरब लीटर की आपूर्ति चीनी उद्योग करेगा, जबकि शेष 2.92 अरब लीटर की आपूर्ति अनाज से होगी।
चीनी से बने मोलैसिस के मामले में करीब 1.35 अरब लीटर गन्ने के रस से और 1.30 अरब लीटर बी-हैवी मोलैसिस से मिलेगा। बहुत कम मात्रा में 0.04 अरब लीटर सी-हैवी मोलैसिस से आएगा। अब गन्ने के रस से एथनॉल बनाए जाने का सवाल नहीं है, इसलिए मिश्रण योजना की आपूर्ति का पूरा बोझ अनाज और बी या सी हैवी मोलैसिस पर आ गया है।
भारत में एथनॉल का ज्यादातर उत्पादन गन्ने के मौलैसिस या अनाज से होता है। गन्ने के मामले में या तो गन्ने के रस से या शीरे से उत्पादन होता है। उसके बाद बी हैवी मोलैसिस और सी-हैवी मोलैसिस से उत्पादन होता है।