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कानपुर: गन्ने की खोई से बनेगा सेकेंड जनरेशन टू जी इथेनॉल, प्रदूषण की रोकथाम में मिलेगी मदद, जानें अन्य फायदे
Date: 14 Sep 2023
Source: Amar Ujala
Reporter:
News ID: 56910
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              प्रोफेसर नरेंद्र ने बताया कि खोई में सेल्यूलोज होता है। इसे इथेनॉल के रूप में परिवर्तित किया जाना है। इसे सेल्युलोसिक इथेनॉल के रूप में भी जाना जाता है। बताया कि दोनों संस्थान गेहूं और चावल की भूसी, कपास के डंठल के उपयोग पर भी अध्ययन करेंगे।

 
कानपुर में गन्ने की खोई से सेकेंड जनरेशन टू जी इथेनॉल का उत्पादन किया जाएगा। इससे देश को पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी। वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी की दर से मिलाने के लिए 10 हजार मिलियन लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी।
 
 
चीनी कारखानों में इस्तेमाल के बाद हर साल 50 लाख मीट्रिक टन खोई बच जाती है। इसका इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया जाएगा। टू जी इथेनॉल की प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट (एनएसआई) और भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान मिलकर काम करेंगे।
 
गन्ना अनुसंधान के निदेशक डॉ. रसप्पा विश्वनाथ और एनएसआई के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन ने बुधवार को एनएसआई में वैज्ञानिकों के साथ सेकेंड जनरेशन टू जी इथेनॉल पर चर्चा की। वर्तमान में खोई का इस्तेमाल मुख्य रूप से बॉयलर जलाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है।
प्रदूषण की रोकथाम में मिलेगी मदद
प्रोफेसर नरेंद्र ने बताया कि खोई में सेल्यूलोज होता है। इसे इथेनॉल के रूप में परिवर्तित किया जाना है। इसे सेल्युलोसिक इथेनॉल के रूप में भी जाना जाता है। बताया कि दोनों संस्थान गेहूं और चावल की भूसी, कपास के डंठल के उपयोग पर भी अध्ययन करेंगे। इससे पराली से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम में मदद मिलेगी।
 
  

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