Ethanol Blending: सरकार का एक फैसला और मिलेंगे ढेरों लाभ, जानिए इसे क्यों कहा जा रहा है भारत का Elixir
बजाज समूह के ग्रुप प्रेसिडेंट एंड चीफ कम्युनिकेशंस ऑफिसर नीरज झा का कहना है कि भारत में इथेनॉल (Ethanol) को अब ढेरों लोग एक व्यवहार्य विकल्प(Viable alternative) और भविष्य के ईंधन (Fuel of the future) के रूप में देखने लगे हैं। सरकार इसे ऐसे आगे बढ़ा रही है मानो कल हो ना हो। औरठीक ही तो है। इथेनॉल सभी पैमानों पर खरा उतरता है। तभी तो इसे भारत का अमृत (Elixir) कहा जा रहा है। आइए देखें ऐसा किस तरह से है।
पहली बात, इसमें चीनी उद्योग को पूरी तरह से पुनर्जीवित करने की संभावना है। इस उद्योग को कई लोग मृत मान चुके हैं। इसके माध्यम से ग्रामीणअर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी, जहां हमारे दो-तिहाई देशवासी रहते हैं। और इसने ऐसा लगभग कर भी दिया है। इसी की वजह से कई चीनी कंपनियां घाटे सेउबर चुकी हैं। और जो नहीं उबर पाई हैं, वे जल्द ही उबर जायेंगी। और इससे बड़ी खुशखबरी कुछ हो ही नहीं सकती। हमारी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषिप्रधान है और इस अर्थव्यवस्था को सामाजिक और आर्थिक रूप से सहारा देने में चीनी उद्योग सबसे आगे है। करोड़ों जिंदगियां सीधे तौर पर इस पर निर्भर हैं, औरकई गुना ज्यादा जिंदगियां परोक्ष रूप से। चीनी उद्योग के लाभदायक होने का अर्थ है ग्रामीण भारत में लाखों लोगों को आजीविका मिलना, यानी एक मजबूतग्रामीण अर्थव्यवस्था का होना।
इथेनॉल प्रोडक्शन के लिए रॉ मैटेरियल की कमी नहीं
दूसरा, इथेनॉल प्रोडक्शन के लिए हमारे यहां कच्चे माल या रॉ मैटेरियल की कोई कमी नहीं है। इसे हम गन्ना या शीरा के अलावा अन्य एग्रीकच्लर प्रोडक्ट से भीबना सकते हैं। देश के दोनों ही शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य - महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश पर्याप्त मात्रा में गन्ना उगाते हैं। इन राज्यों में ऐसा पोटेंशियल है कि भविष्यकी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गन्ने की पैदावार और बढ़ाई जा सकती है। अकेले उत्तर प्रदेश में ही करीब 30 लाख हेक्टेयर जमीन में गन्ना बोया जाता है।मतलब कि इस राज्य में इथेनॉल के अधिक उत्पादन के लिए पर्याप्त कच्चा माल (गन्ना/शीरा) उपलब्ध है। तभी तो देश के कुल 70 में से 55 इथेनॉलडिस्टिलरी इसी राज्य में हैं। इस राज्य में हर साल 200 करोड़ लीटर इथेनॉल प्रोडक्शन करने क्षमता है। यही विशेषता इसे देश का सबसे बड़ा इथेनॉल उत्पादकराज्य बनाती है।
रोजगार के निकलेंगे अवसर
तीसरी बात, एथेनॉल के अधिक उत्पादन क्षमता का अर्थ है गांवों और कस्बों में अधिक रोजगार के अवसर। इससे ग्रामीण इलाकों से पलायन रूकेगा क्योंकिउन्हें उनके घर के पास ही रोजगार मिलेगा। वे गांव में उतना कमा लेंगे, जितना शहरों में भी नहीं पाते। यदि उत्तर प्रदेश की बात करें तो इस राज्य में अकेले बजाजसमूह की 20 मिलों में करीब 9,000 लोगों को नौकरी मिली हुई है। इसके अलावा अन्य कंपनियां भी काम कर रही हैं। एथेनॉल का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिएइन्हें भी विस्तार करना होगा। एक्सपेंशन का मतलब है अधिक रोजगार के अवसर।
विदेशी मुद्रा की होगी बचत
चौथी बात, अधिक इथेनॉल के प्रोडक्शन से हमारी विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। इथेनॉल की ब्लेंडिंग पेट्रोल में हो रही है। मतलब कि इस वजह से विदेशों सेकम क्रूड आॅयल मंगाना होगा। इससे न केवल हमारा इंपोर्ट बिल घटेगा बल्कि इससे ऊर्जा के लिए विदेशों पर हमारी निर्भरता भी कम होगी। इस समय तो हमअपने उपयोग का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम ईंधन का आयात करते हैं।
इथेनॉल है ग्रीन एनर्जी
इथेनॉल हरित ऊर्जा है, जिससे कुल मिला कर पर्यावरण में प्रदूषण घटता है। इसकी आणविक संरचना में ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण इसका दहन बहुतसाफ तरीके से होता है। पेट्रोल की तुलना में यह 20% कम हाइड्रोकार्बन और कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। सरकार का अनुमान है कि देश को 2025-26 तक 20% ब्लेंडिंग का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लगभग 1,000 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी।इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार वर्तमान क्षमता इसके आधे से भी कम, केवल 440 करोड़ लीटर है। उत्तर प्रदेश पहले से ही देश का सबसेबड़ा इथेनॉल उत्पादक राज्य है, जो लगभग 200 करोड़ लीटर उत्पादन करता है। यह पूरे देश के उत्पादन के आधे से कुछ ही कम है। पांच साल पहले यहांइसका केवल 1/5 हिस्से का ही उत्पादन (24 करोड़ लीटर) होता था।