पिछले कई वर्षो से लगातार घाटा उठा रहे घरेलू चीनी उद्योग के लिए केंद्र का हस्तक्षेप ऑक्सीजन साबित हुआ है। जिंस बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार से गन्ना किसानों के बकाया भुगतान में सहूलियत हुई है। केंद्र सरकार ने घाटे से घिरी चीनी मिलों को किसानों के गन्ने का भुगतान करने के लिये जहां बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध कराया, वहीं एथनॉल के उत्पादन पर लगने वाले केंद्रीय उत्पाद शुल्क को हटा लिया गया है। इसी तरह की कई और केंद्रीय रियायतों के चलते चीनी उद्योग को राहत मिली है। गन्ना किसानों के बैंक खातों में सरकार ने 4.50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से उत्पादन सब्सिडी के रूप में जमा कर चीनी उद्योग को राहत दी है। घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार की दिशा में भी कारगर पहल की गई है। चीनी मिलों को निर्यात का लक्ष्य देकर घरेलू स्टॉक को कम करने में मदद मिली है।चीनी मिलों के समक्ष सबसे बड़ी मुश्किल गन्ना किसानों के भुगतान का था। बाजार में चीनी की कीमतें लागत मूल्य के मुकाबले बहुत कम बोली जा रही थीं। इससे मिलों का घाटा साल दर साल बढ़ रहा था। गन्ना किसानों को भुगतान करने में चीनी मिलें असमर्थता जता रही थीं। मिलों के हित में किये सरकारी उपायों के चलते वर्ष 2014-15 का 22 हजार करोड़ रुपये का गन्ना बकाया (एरियर) चुकता हो चुका है। नतीजतन, वर्ष 2015-16 में देश के सभी राज्यों में चीनी मिलों में पेराई समय पर शुरू हो गई, जिससे सबसे बड़ी राहत गन्ना किसानों को मिली। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गन्ने के कुल बकाये का 78 फीसद हिस्सा चुकता किया जा चुका है। मई के पहले सप्ताह में मिले आंकड़े के मुताबिक देश के सभी राज्यों में गन्ना किसानों का बकाया (एरियर) 11,261 करोड़ रुपये रह गया है। इसमें महाराष्ट्र की बकायेदारी 2500 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश की 3347 करोड़ रुपये और कर्नाटक 2021 करोड़ रुपये है।जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : पिछले कई वर्षो से लगातार घाटा उठा रहे घरेलू चीनी उद्योग के लिए केंद्र का हस्तक्षेप ऑक्सीजन साबित हुआ है। जिंस बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार से गन्ना किसानों के बकाया भुगतान में सहूलियत हुई है। केंद्र सरकार ने घाटे से घिरी चीनी मिलों को किसानों के गन्ने का भुगतान करने के लिये जहां बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध कराया, वहीं एथनॉल के उत्पादन पर लगने वाले केंद्रीय उत्पाद शुल्क को हटा लिया गया है। इसी तरह की कई और केंद्रीय रियायतों के चलते चीनी उद्योग को राहत मिली है। गन्ना किसानों के बैंक खातों में सरकार ने 4.50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से उत्पादन सब्सिडी के रूप में जमा कर चीनी उद्योग को राहत दी है। घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार की दिशा में भी कारगर पहल की गई है। चीनी मिलों को निर्यात का लक्ष्य देकर घरेलू स्टॉक को कम करने में मदद मिली है।चीनी मिलों के समक्ष सबसे बड़ी मुश्किल गन्ना किसानों के भुगतान का था। बाजार में चीनी की कीमतें लागत मूल्य के मुकाबले बहुत कम बोली जा रही थीं। इससे मिलों का घाटा साल दर साल बढ़ रहा था। गन्ना किसानों को भुगतान करने में चीनी मिलें असमर्थता जता रही थीं। मिलों के हित में किये सरकारी उपायों के चलते वर्ष 2014-15 का 22 हजार करोड़ रुपये का गन्ना बकाया (एरियर) चुकता हो चुका है। नतीजतन, वर्ष 2015-16 में देश के सभी राज्यों में चीनी मिलों में पेराई समय पर शुरू हो गई, जिससे सबसे बड़ी राहत गन्ना किसानों को मिली। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गन्ने के कुल बकाये का 78 फीसद हिस्सा चुकता किया जा चुका है। मई के पहले सप्ताह में मिले आंकड़े के मुताबिक देश के सभी राज्यों में गन्ना किसानों का बकाया (एरियर) 11,261 करोड़ रुपये रह गया है। इसमें महाराष्ट्र की बकायेदारी 2500 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश की 3347 करोड़ रुपये और कर्नाटक 2021 करोड़ रुपये है।