लंबे समय से पस्त पड़े रहे चीनी क्षेत्र की कंपनियों को हालात बदलते दिख रहे हैं। लगातार दो वर्षों तक कमजोर मॉनसून की वजह से न सिर्फ भारत में चीनी उत्पादन प्रभावित हुआ बल्कि वैश्विक उत्पादन पर भी असर पड़ा है। इस वजह से देश में चीनी की कीमतों में मजबूती आई है और इनमें पिछले साल के मुकाबले अच्छी तेजी (5-6 रुपये प्रति किलोग्राम) आई है। अंतरराष्टï्रीय कीमतें भी बढ़ी हैं, लेकिन हाल की तेजी के बाद इनमें कुछ नरमी आई है। चीनी प्राप्ति यानी गन्ने से बनने वाली चीनी की मात्रा में सुधार के साथ चीनी कंपनियों ने दिसंबर 2015 की तिमाही में बेहतर मुनाफा दर्ज किया और इसके फलस्वरूप ज्यादातर चीनी कंपनियों की शेयर कीमतें भी अपने निचले स्तर से काफी चढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, बलरामपुर चीनी का शेयर सबसे अधिक चढऩे वाला शेयर साबित हुआ है। यह शेयर जून 2015 के 33 रुपये के स्तर से बढ़ते हुए 81 रुपये पर पहुंच गया है। इसी तरह त्रिवेणी इंजीनियरिंग के शेयर की कीमत तीन गुना बढ़कर लगभग 39 रुपये के स्तर पर पहुंच गई है। ईआईडी पैरी, बजाज हिंदुस्तान और श्री रेणुका जैसे अन्य शेयर भी 33 से लेकर 54 फीसदी बढ़त दर्ज कर चुके हैं। हालांकि ये सभी शेयर अच्छी तेजी दर्ज कर चुके हैं, लेकिन प्रमुख सूचकांकों में ताजा गिरावट के बाद इन शेयरों पर भी दबाव पड़ा है। चीनी कीमतों में मजबूती के कारण इनका आगे का परिदृश्य बेहतर दिख रहा है। दिसंबर तिमाही में सुधार दिसंबर 2015 तिमाही के दौरान कंपनियों ने ब्याज, मूल्यह्रïास और कर पूर्व मुनाफे के स्तर पर बढ़त दर्ज की है जबकि एक साल पहले इसी तिमाही में उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ा था। हालांकि ईआईडी एक साल पहले की इसी तिमाही के दौरान मुनाफे में थी। बजाज हिंदुस्तान या श्री रेणुका पर अधिक कर्ज का दबाव था और ब्याज लागत उनके मुनाफे को खा गई। भारी कर्ज भी इन शेयरों पर दबाव के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। बलरामपुर चीनी की तरह बजाज हिंदुस्तान या श्री रेणुका की शेयर कीमतों में उछाल नहीं देखी गई। कम उत्पादन विश्लेषक इस सेक्टर पर सकारात्मक बने हुए हैं। उनको उम्मीद है कि बेहतर चीनी प्राप्ति की मदद से आगे चलकर उनके मुनाफे में और सुधार आएगा। अंतरराष्टï्रीय चीनी उत्पादन में 30 लाख टन तक की गिरावट आने का अनुमान है। भारत में चीनी वर्ष 2016 (अक्टूबर से सितंबर) के शुरू में लगभग 1 करोड़ टन का अतिरिक्त भंडार था। इसमें से 40 लाख टन के अनिवार्य निर्यात के कारण थोड़ी कमी आने का अनुमान है जिससे कीमतों को मदद मिलेगी। अब तक निर्यात 10 लाख टन से कुछ अधिक पर रहा है। एडलवाइस के विश्लेषकों का कहना है कि मंदी के पिछले दो चक्रों (चीनी वर्ष 2004-05 और 2009-10) के दौरान कम चीनी उत्पादन (बारिश की कमी) के कारण चीनी का सामान्य भंडार (लगभग 70 दिन) नीचे चला गया था जिससे चीनी की कीमतों में खासी तेजी आई। चीनी वर्ष 2016 में भी चीनी भंडार का लगभग ऐसा ही परिदृश्य बन सकता है क्योंकि चीनी उत्पादन घटकर 2.65 करोड़ टन रह सकता है और सरकार के निर्देश के तहत 40 लाख टन चीनी का अनिवार्य रुप से निर्यात किया जाना है। वैश्विक चीनी उत्पादन भी चीनी वर्ष 2016 में 30 लाख टन घटने का अनुमान है। लिहाजा, अंतरराष्टï्रीय चीनी भंडार 67 दिन के स्तर पर आ सकता है। इन सबसे चीनी की कीमतों को मिदद मिल सकती है। गन्ना कीमतों पर चिंता हालांकि चीनी की बेहतर प्राप्ति घरेलू चीनी कंपनियों के मुनाफे के लिए अच्छा संकेत है, लेकिन गन्ने की ऊंची कीमत जैसी समस्याएं मुख्य चिंता बनी हुई हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने के लिए राज्य समर्थित कीमत (एसएपी) 280 रुपये प्रति क्विंटल पर ही बरकरार रखी है। हालांकि उसने पिछले साल की तरह चीनी मिलों के लिए किसी प्रोत्साहन या सब्सिडी की घोषणा नहीं की है। फिर भी, मौजूदा समय में बलरामपुर चीनी जैसी कंपनियों ने दिसंबर 2015 की तिमाही के दौरान ब्याज एवं कर पूर्व आय स्तर पर बढ़त दर्ज की है जबकि एक साल पहले की समान अवधि में उन्हें नुकसान उठाना पड़ा था। कई कंपनियां भारी भरकम कर्ज के बोझ से दबी हुई हैं जो चिंता का एक और कारण है। विश्लेषकों की सलाह है कि निवेशकों को निवेश का फैसला लेने से पहले बजाज हिंदुस्तान और श्री रेणुका जैसी कंपनियों का कर्ज बोझ घटने का इंतजार करना चाहिए। हालांकि वे कुछ चुनिंदाचीनी कंपनियों पर सकारात्मक बने हुए हैं। इंडिया इन्फोलाइन ने बलरामपुर चीनी के लिए 110 रुपये का कीमत लक्ष्य रखा है। एडलवाइस के विश्लेषकों को भी उम्मीद है कि बलरामपुर चीनी को कम कर्ज, किसानों का कम गन्ना बकाया और मजबूत प्रबंधन रिकॉर्ड वाली कंपनी होने की वजह से अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अधिक लाभ होगा। ईआईडी पैरी और त्रिवेणी भी उनकी 'खरीदारी' रेटिंग की सूची में शामिल हैं।