सरकारी मेहरबानी से उछल रहे चीनी कंपनियों के शेयरों पर बेहतर उत्पादन भारी पड़ गया। चीनी कंपनियों के शेयर 20 फीसदी तक लुढ़क गए। बिहार सरकार की गन्ना किसानों को भुगतान की शर्तें और उत्तराखंड सहित दूसरे राज्यों द्वारा प्रदूषण पर कड़ाई के चलते चीनी कंपनियों का राजस्व प्रभावित होगा। देश में चीनी उत्पादन पिछले साल से अधिक होने की खबर और वैश्विक बाजार में भी चीनी के दाम कम होने से कंपनियों की मिठास की आस कम होगी।
बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक आज भले ही हरे निशान के साथ बंद हुआ लेकिन बीएसई में शामिल चीनी मिलों के शेयरों की मिठास नदारद थी। चीनी कंपनियों के शेयरों में औसतन चार फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। सबसे ज्यादा गिरावट उत्तर भारत की चीनी कंपनियों के शेयरों में आई। अपर गंगा शुगर का शेयर 73.75 से 18.92 फीसदी गिरकर 59.80 रुपये हो गया। अवध शुगर मिल्स के शेयर 10.14 फीसदी, धरणी शुगर्स केशेयर 7.65 फीसदी, त्रिवेणी इंजीनियरिंग के 7.09 फीसदी, बलरामपुर चीनी के 6.72 फीसदी, धामपुर शुगर के 6.67 फीसदी, डालमिया शुगर के 6.15 फीसदी, द्वारिकेश शुगर के शेयर पांच फीसदी लुढ़क गए। बाजार के जानकारों का कहना है कि चीनी कंपनियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है इसीलिए निवेशक इनसे दूरी बना रहे हैं। पिछले एक साल में सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को घाटे से उबारने के कई उपाय किए गए हैं जिससे इनके शेयर ऊपर चले गए थे। बिहार सरकार ने इस साल गन्ना किसानों के लिए 27.50 रुपये प्रति 100 किलोग्राम की सब्सिडी की घोषणा तो की है लेकिन कंपनियों को यह सब्सिडी तभी मिलेगी, जब वे किसानों को गन्ने का भुगतान करेंगी। सिर्फ बिहार में चीनी मिलों पर किसानों के करीब 40 करोड़ रुपये बकाया है। पिछले छह महीने से चीनी की कीमतों में लगातार बढ़ती मिठास थम सी गई है। जून के बाद वायदा बाजार में चीनी के दाम 45 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके थे लेकिन पिछले दो सप्ताह में चीनी के दामों में करीब साढ़े पांच फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हाजिर बाजार में चीनी की मिठास कम हुई है। इस महीने चीनी के थोक बाजार वाशी में चीनी के दाम करीब 50 रुपये टूटकर 3290 रुपये प्रति क्ंिवटल तक पहुंच गए। वायदा और हाजिर में चीनी की कीमतें गिरने की वजह अधिक उत्पादन बताया जा रहा है। एंजेल कमोडिटी ब्रोकिंग के रितेश कुमार साहू के मुताबिक चीनी का उत्पादन अधिक होने की खबरों केसाथ कीमतें दबाव में आने लगीं। घरेलू बाजार के साथ वैश्विक बाजार में भी चीनी की कीमतें कम हैं। इसका भी असर पड़ रहा है। निर्यात मांग की जो उम्मीद की जा रही थी, वह खरी नहीं उतर रही है। म्यांमार के माध्यम से चीन को 10 लाख टन चीनी निर्यात करने की बात की जा रही है लेकिन वहां भी ब्राजील से टक्कर मिलेगी जिससे कीमत बहुत ज्यादा नहीं मिलने वाली हैं। फिलहाल देश में स्टॉकिस्टों के पास पहले से ही चीनी जमा है। ऐसे में ज्यादा उत्पादन होने से कीमतें और गिरेंगी। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार इस चीनी वर्ष (अक्टूबर से सितंबर) के पहले चार महीनों में उत्पादन 1.42 करोड़ टन रहा, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 1.36 करोड़ टन हुआ था। गंगा की सफाई में जुटी केंद्र सरकार किसी भी हाल में प्रदूषण बर्दाश्त नहीं करने वाली है। यह बात सरकारी महकमा चीनी सहित दूसरी मिलों को स्पष्ट कर चुका है।
कल गंगा नदी में कथित तौर पर प्रदूषित पानी छोडऩे के आरोप में उत्तराखंड की एक चीनी मिल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार गंगा नदी में प्रदूषित पानी छोडऩे के आरोप में उत्तराखंड के लक्सर में स्थित रायबहादुर शुगर मिल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। कारोबारियों कहना है कि यह घटना भले ही छोटी हो लेकिन सरकारी रुख की ओर इशारा करती है। अब कोई भी कंपनी गंगा या यमुना जैसी नदियों में अपने कारखाने का पानी नहीं छोड़ पाएगी। जबकि अभी तक ज्यादातर कारखाने अपने यहां से निकलने वाले पानी को नदियों में छोड़ते रहे हैं।