नई दिल्ली। पर्यावरण के अनुकूल ईंधन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए चीनी उद्योग ने सरकार से एथनॉल को प्राथमिकता क्षेत्र के तहत कर्ज उपलब्ध कराने की मांग की है। चीनी उद्योग के संगठन इस्मा का कहना है कि एथनॉल को प्राथमिकता क्षेत्र के तहत कर्ज मिलने से इसके उत्पादन में वृद्धि हो सकेगी। इस्मा ने एथनॉल को प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे से भी बाहर रखने की मांग की है।
इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (इस्मा) के अध्यक्ष तरुण साहनी ने यहां एथनॉल पर आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि देश में एथनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसे प्राथमिक क्षेत्र के तहत कर्ज मुहैया कराने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एथनॉल उत्पादन बढ़ने से न सिर्फ स्वच्छ ईंधन उपलब्ध होगा, बल्कि इससे चीनी उद्योग खासकर किसानों को फायदा होगा। उन्होंने एथनॉल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने की मांग भी की।
इस अवसर पर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने साहनी की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि वह इस्मा की यह बात वित्त मंत्री तक पहुंचाएंगे ताकि एथनॉल को भी बैंकों से प्राथमिकता क्षेत्र के तहत कर्ज मिल सके। उन्होंने चीनी उद्योग से आग्रह किया कि वह पेट्रोल में पांच प्रतिशत एथनॉल मिलाने के लक्ष्य को इस साल हासिल करे। इसके बाद 10 प्रतिशत एथनॉल पेट्रोल में मिलाने के लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास हो। सरकार इसके लिए पर्याप्त भंडारण सुविधा विकसित करने को तैयार है।
साहनी ने कहा कि देश में 550 चीनी मिलों में से 115 में डिस्टीलियरी लगी हैं। फिलहाल करीब 6000 करोड़ रुपये का एथनॉल बनता है। ऐसे में सरकार अनुकूल व्यवस्था और विभिन्न प्रोत्साहन देकर एथनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देगी तो उससे किसानों को भी लाभ होगा।
शुगर कॉपरेटिव पर हावी हो गए हैं नेताः प्रधान
गन्ना उत्पादक किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा है कि शुगर कॉपरेटिव पर नेता हावी हो गए हैं। प्रधान ने कहा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में शुगर कॉपरेटिव पर नेता इस कदर हावी हैं कि यह पता करना भी मुश्किल है कि मिलों का असली मालिक कौन है। प्रधान ने चीनी मिलों से भी कहा कि वे किसानों के बैंक खाते में गन्ने का भुगतान करें।
इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधान ने कहा कि मुझे बताया गया कि चीनी मिल दो तरह के हैं- कॉपरेटिव और गैर-कॉपरेटिव। ये कॉपरेटिव कौन हैं। कॉपरेटिव कितने बड़े हैं। कुछ लोग वहीं बैठकर राजनीति कर रहे हैं। कॉपरेटिव इस उद्योग के पिता हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में बड़े नेताओं के कॉपरेटिव हैं। यह पता करना मुश्किल है कि चीनी मिल किसी उद्यमी के हाथ में है या नेता के हाथ में।
प्रधान ने रसोई गैस की सब्सिडी का उदाहरण देते हुए चीनी मिलों से आग्रह किया कि वे किसानों को गन्ने का समय पर भुगतान करने के लिए धनराशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजें। उन्होंने कहा कि बैंक खाते में भुगतान राशि भेजने से उनकी विश्वसनीयता बढ़ जाएगी। प्रधान ने कहा कि चीनी उद्योग को बाजार से लिंक करना चाहिए और उसके मूल में किसान का लाभ होना चाहिए। प्रधान ने अपने भाषण के दौरान कांग्रेस और दिल्ली की आम आदमी पार्टी पर भी निशाना साधा।