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News
कम गन्ने से बढ़ी कीमतों की आस
Date:
22 Jan 2016
Source:
बिज़नेस स्टैण्डर्ड
Reporter:
दिलीप कुमार झा
News ID:
5212
Pdf:
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गन्ने की उपज कम रहने के अनुमान से इस साल चीनी की कीमतें मजबूत बनी रहने की संभावना है। पिछले साल अपर्याप्त बारिश की वजह से गन्ने की खड़ी फसल पर बुरा असर पड़ा था जिससे महाराष्ट्र और अन्य जगह उपज में काफी गिरावट आई है। उद्योग की शीर्ष संस्था इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) 2015-16 में चीनी उत्पादन कम रहने का अनुमान पहले ही जारी कर चुका है। उसने अक्टूबर 2015 में अपने पहले अग्रिम अनुमान में पिछले साल के 2.83 करोड़ टन के मुकाबले 2.7 करोड़ टन उत्पादन रहने का अनुमान लगाया था। इस्मा का दूसरा अग्रिम अनुमान आने वाला है। फसल को भारी नुकसान के कारण खासकर महाराष्ट्र में उपज की कमी से चीनी के उत्पादन को लेकर अनुमान में और कमी आने की संभावना है। यह 2.6 करोड़ टन या इससे भी कम रह सकता है।
किसानों को गन्ने का बकाया चुकाने के लिए अगस्त 2015 में मिलों ने हाजिर बाजार में बढ़-चढ़कर चीनी की बिक्री की। इससे चीनी की कीमतें कई सालों के निचले स्तर 19 रुपये (एक्स फैक्ट्री) प्रति किलो तक आ गईं। किसानों का बकाया चुकता करने के दबाव में चीनी मिलों ने अपना माल हाजिर बाजार में डम्प कर दिया। जिससे कीमतों में तेज गिरावट आई। हालांकि तब से चीनी की कीमतों में कुछ उछाल आई है और फिलहाल यह 24-25 रुपये (एक्स फैक्ट्री) प्रति किलोग्राम और थोक बाजार में 30 रुपये प्रति किलो पर आ गई हैं। यह उद्योग के लिए कुछ सकारात्मक रहा है। वेस्टर्न इंडिया शुगर मिल्स एसोसिएशन (डब्ल्यूआई एसएमए) के उपाध्यक्ष रोहित पवार ने बताया कि कम उत्पादन के अनुमान को देखते हुए इस साल चीनी की कीमतें मजबूत बनी रहने के लिए प्रमुख बातें सहायक हैं। गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष चीनी उत्पादन 8-9 प्रतिशत गिरावट के साथ 2.6 करोड़ टन से नीचे रहने का अनुमान है।
महाराष्ट्र में कुछ नेताओं द्वारा राज्य सरकार और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से शिकायत दर्ज कराने के बाद पिछले 7-10 दिनों में चीनी की कीमतों में प्रति किलोग्राम दो रुपये की कमी आई है। शिकायत में जिंस एक्सचेंजों के वायदा में सर्कुलर ट्रेडिंग का आरोप लगाया गया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मामले की जांच का आश्वासन दिया है। चीनी के वायदा कारोबार की पेशकश करने वाला प्रमुख जिंस एक्सचेंज के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि इस दावे में कोई दम नहीं है क्योंकि वायदा कारोबार बराबरी का खेल है। महाराष्टï्र में किसी छोटी मिल का एक लाख टन से कम का मासिक उत्पादन वायदा एक्सचेंज पर होता है। ऐसे में यह दावा भारत के दूर-दराज के किसी गांव की किराना दुकान पर हर रोज कुछ किलो प्याज बेचने और बाजार चलाने जैसा है। वैसे, चीनी की कीमतों में इजाफा चीनी मिलों के लिए राहत की सांस लेने जैसा है। जिसकी उन्हें काफी जरूरत है क्योंकि पिछले दो-तीन सालों से इसके दाम उत्पादन लागत से भी नीचे रहे हैं।
इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने अपने एक हालिया बयान में कहा है कि चीनी मिलें पेराई के लिए गन्ना उपलब्ध न होने के कारण साल के शुरू में चालू सत्र बंद करने वाली हैं, खासकर महाराष्ट्र में। इससे उत्पादन की मात्रा कम रह सकती है। सरकार ने चालू वर्ष में 32 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। इस्मा के अनुसार चीनी मिलें इस साल पहले ही 7-8 लाख चीनी निर्यात के लिए करार कर चुके हैं। श्री रेणुका शुगर्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी ने कहा, 'अगर चीनी मिलें इस संख्या तक पहुंच जाती हैं, तो कीमतों में पिछले साल के स्तर तक की गिरावट नहीं दिखेगी।' महाराष्टï्र स्टेट फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक संजीव बाबर का अनुमान है कि पिछले मॉनसून सीजन में अपर्याप्त बारिश की वजह से फसल खराब होने के कारण इस साल महाराष्टï्र में गन्ने की उपज 10-15 प्रतिशत कम रह सकती है।
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