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News
ऊंची लागत से सिकुड़ता जूट निर्यात
Date:
16 Jan 2016
Source:
Business Standard
Reporter:
बीएस संवाददाता
News ID:
5168
Pdf:
Nlink:
कच्चे जूट और जूट की वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने घरेलू विनिर्माताओं के लिए निर्यात बाजार का दायरा कम कर दिया है। इस कारण प्रमुख निर्यात ऑर्डर होने के बावजूद जूट मिलों का मुनाफा कम रह सकता है। आंकड़े दर्शाते हैं कि जूट वस्तुओं की निर्यात वृद्धि 2010-11 (1.9 लाख टन) से 2013-14 (2.1 लाख टन) तक लगभग एक समान ही रही है, जबकि 2014-15 के दौरान जूट वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। इस दौरान यह 27 प्रतिशत गिरकर 1.5 लाखटन रहा।
अगर आंकड़ों पर गौर करें तो कच्चे जूट की कीमत अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर 54 हजार रुपये प्रति टन तक पहुंच चुकी हैं जो पिछले साल की 27 हजार रुपये प्रति टन की तुलना में दोगुनी हैं। यही वजह है कि जूट की वस्तुओं की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं। अभी टाट-बोरी बनाने वाले 'बीट्विल' जूट की कीमत 74 हजार रुपये प्रति टन चल रही है, जबकि 'हेशियन' की कीमत प्रति टन एक लाख रुपये के भी पार पहुंच चुकी है।
इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) के अध्यक्ष मनीष पोद्दार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'जूट की वस्तुओं के बढ़ते दामों का निर्यात बाजार पर दोनों तरह से असर है - लघु अवधि का भी और दीर्घावधि का भी। हालांकि, मूल्य के संबंध में निर्यात पर बहुत बड़े स्तर पर प्रभाव भले न पड़े, लेकिन मात्रा में कमी के संबंध में इसका प्रभाव अनुभव किया जा सकता है। हम मिस्र और सीरिया जैसे प्रमुख निर्यात बाजार खो ही चुके हैं। इसके अलावा, बांग्लादेश की तरह भारत सरकार की ओर से भी निर्यात के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। बांग्लादेश में जूट निर्यात को लगातार प्रोत्साहित किया जाता है।'
जूट आयुक्त सुब्रत गुप्ता की एक रिपोर्ट बताती है कि संतोषजनक निर्यात ऑर्डर रहने से भी जूट मिलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, क्योंकि कई मिलों ने विदेशी खरीदारों से जब करार किया, तो उन्हें जूट की कीमतों में इतने इजाफे की संभावना नजर नहीं आ रही थी। रिपोर्ट यह भी कहती है कि हालांकि एक तरफ इससे इन मिलों का मुनाफा खत्म हो सकता है, वहीं दूसरी तरफ इन वस्तुओं की कीमतों में इजाफा विदेशी खरीदारों की मांग को भी कम कर सकता है। इसके अलावा, हेशियन जैसे जूट के कुछ उत्पादों की कीमतों में तीव्र वृद्धि से नए बाजार खुलने पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। इनमें जियो-टेक्स्टाइल और जूट-मिश्रित उत्पादों के बाजार भी शामिल हैं। लंबे समय तक ऐसी चीजें जूट क्षेत्र की सेहत के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रही हैं।
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