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गन्ना किसानों को खाते में रकम से मदद
Date: 04 Jan 2016
Source: Business Standard
Reporter: Sanjeeb Mukherjee
News ID: 5112
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दो महीने पहले केंद्र सरकार ने काफी विचार-विमर्श के बाद गन्ना किसानों के बैंक खातों में सीधे तौर पर 4.50 रुपये प्रति क्विंटल की रकम स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। सरकार ने इसे उत्पादन प्रोत्साहन का नाम दिया, लेकिन इसे कई लोगों द्वारा एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए गन्ना उत्पादकों के बैंक खातों में सीधे तौर पर रकम स्थानांतरण से विश्व व्यापार संगठन की आलोचनाएं सामने नहीं आएंगी। साथ ही यह उन चीनी मिलों को खुश करने की भी पहल है जिन्हें 2015-16 के सीजन में उत्पादकों को काफी कम भुगतान करना पड़ेगा। इसके कुछ सप्ताह बाद महाराष्टï्र के कपास उत्पादक क्षेत्र से इस तरह की खबरें आनी शुरू हो गईं कि केंद्र किसानों को कपास की बिक्री पर हुए नुकसान की प्रत्यक्ष रूप से भरपाई की दिशा में एक योजना पर काम कर रहा है। केंद्र सरकार ने कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और मौजूदा बाजार भाव के बीच अंतर का भुगतान करने की योजना बनाई है और इसे अंतर मूल्य भुगतान करार दिया है। 
 
ऐसी भी खबरें हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2014-15 के पेराई सत्र के लिए गन्ना उत्पादकों के बैंक खातों में 28.60 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से रकम स्थानांतरित की है और इस तरह से कुला मिलाकर 2,126.25 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए गए हैं। सरकार ने 2015-16 के रबी सत्र में गेहूं बीज के लिए 1400 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी भी सीधे तौर पर बैंक खातों में स्थानांतरित की है। इसके लिए शर्त यह है कि बीज को निर्धारित एजेंसियों से बाजार भाव पर खरीदा जाएगा।
 
रसोई गैस, भोजन और ग्रामीण रोजगार योजना के लिए रकम स्थानांतरण की सफलता से यह भी माना जा रहा है कि सरकार कृषि के लिए एक नई व्यवस्था को अपना रही है। 
नीति आयोग के सदस्य रमेश चांद ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'प्रत्यक्ष स्थानांतरण सब्सिडी वितरण का बेहद सक्षम तरीका है और इसे आजमाया जाना चाहिए, लेकिन इसे उत्पादन की मात्रा से जोड़ा जाना चाहिए।' अधिकारियों का कहना है कि किसानों के लिए नई राष्टï्रीय नीति में अधिक जोर इस पर दिया जाना चाहिए कि सब्सिडी या प्रोत्साहित के प्रत्यक्ष स्थानांतरण के जरिये आय को किस तरह से बढ़ाया जा सकेगा। 
 
2014-15 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि 378,000 करोड़ रुपये या जीडीपी का 4.24 फीसदी सब्सिडी पर खर्च किया गया है। इसमें अधिकतर रकम गरीब तक नहीं पहुंच रही है। 
चावल, गेहूं, दलहन, चीनी, केरोसिन, रसोई गैस, नेफ्था, जल, बिजली, डीजल, उर्वरक और लौह अयस्क को विभिन्न योजनाओं के तहत रियायती दर पर मुहैया कराया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में, उर्वरकों के अलावा बीज, मशीनरी, उपकरण, सिंचाई प्रणालियों और बागवानी उपकरण आदि पर भी सरकार द्वारा रियायत दी जा रही है। कृषि के लिए राज्य बिजली और जल को सब्सिडी पर मुहैया कराते हैं। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि बिजली सब्सिडी से सिर्फ वे 67.2 फीसदी परिवार लाभान्वित हुए हैंं जिनके पास बिजली कनेक्शन था। 
 
कृषि में भी समय समय पर सब्सिडी की घोषणा की गई, लेकिन यह लाभार्थी तक नहीं पहुंची। अध्ययनों से पता चलता है कि ऋण की कुल प्रत्यक्ष उधारी में कृषि का हिस्सा 200,000 रुपये से कम है जो 1990 के 92.2 फीसदी से घटकर वर्ष 2000 में 78.5 फीसदी और 2011 में 48 फीसदी रह गया। कृषि के लिए बड़े ऋण छोटे या मझोले किसानों के बजाय बड़े व्यावसायिक हितों के लिए अधिक मंजूर किए गए। 
 
लगभग 46 फीसदी कृषि ऋण जनवरी और मार्च के बीच दिया गया। यह अवधि पूरे देश में कम कृषि गतिविधियों वाला समय है, जबकि ऋण की कुल मात्रा में तेजी बनी हुई है जो सकारात्मक नहीं है। हालांकि रसोई गैस या भोजन (जिसमें लाभार्थी की पहचान पूरी तरह स्पष्टï है) के विपरीत, कृषि में रकम स्थानांतरण के लिए और अधिक कार्य किए जाने की जरूरत होगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री योगेंद्र अलघ ने कहा कि कृषि में नकदी स्थानांतरण के खिलाफ एकमात्र समस्या लाभार्थियों की पहचान को लेकर है। उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य एवं किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार ने कहा कि नकदी स्थानांतरण कुल मिलाकर अच्छी पहल है, लेकिन उर्वरक में यह सतर्कतापूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें सब्सिडी की कुल मात्रा सीमित है। 
 
  

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