चीनी और खाद्यान्नों की पैकेजिंग के लिए सरकारी एजेंसियां जूट बोरों की जबरदस्त खरीद कर रही हैं जिससे कच्चे जूट और बी ट्विल सैकिंग बैग और हेसियन जैसे जूट उत्पादों की कीमत में और तेजी आने की उम्मीद है। कच्चे जूट की कीमतें लगभग अनियंत्रित हो चुकी हैं। एक साल पहले तक जूट की कीमत 33,750 रुपये प्रति टन थी, तब से लेकर अब तक जूट की कीमतें करीब 50 फीसदी चढ़कर 50,350 रुपये प्रति टन तक पहुंच चुकी हैं। चालू सीजन में जूट की आवक के बाद से कच्चे जूट की कीमतें अस्थिर हो गईं। खरीद के लिए सरकारी एजेंसियों के बड़े ऑर्डर दिए जाने के बाद बी ट्विल जूट बोरों की कीमत भी 74,635 रुपये प्रति टन तक पहुंच गईं। दिसंबर, 2014 में यह 39,410 रुपये प्रति टन के स्तर पर थी। बी ट्विल बोरों की कीमत में कच्चे जूट की हिस्सेदारी करीब 67 फीसदी होती है।
एक जूट मिल मालिक ने बताया, 'जब तक सरकारी खरीद जारी रहेगी तब तक कच्चे जूट और जूट के बोरों की कीमतों में तेजी का रुख रहेगा। मिल मालिकों के लिए स्टॉक रखने की सीमा तय करने से कीमतों में गिरावट नहीं आई है। कीमतों पर लगाम लगाने के लिए जमाखोरी के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत है।' एक रिपोर्ट में जूट आयुक्त के कार्यालय ने कच्चे जूट की कीमतों में तेजी और फिलहाल बाजार में इसकी अनुपलब्धता की वजह से जूट उद्योग पर दूरगामी और गंभीर प्रभाव पडऩे के अनुमान लगाए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 'कीमतों में अप्रत्याशित वृद्घि का सीधा असर जूट से बनने वाले सामान की कीमत पर पडऩा तय है। बी ट्विल सरकारी खरीद का असर कीमतों में वृद्घि के मुकाबले जूट से बने सामान की कुल मांग पर देखने को मिल रहा है।' इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन मनीष पोद्दार का कहना है कि कच्चे जूट की कीमतों में मिलों के लिए स्टॉक की सीमा तय करने के बावजूद गिरावट नहीं आई है। आने वाले समय में जूट की कीमतों में गिरावट आएगी या उनमें तेजी देखने को मिलेगी, यह कहना बहुत ही मुश्किल है।