महाराष्ट्र में चीनी उद्योग और किसान संगठन आने वाले पेराई सीजन में की गई खरीद के लिए भुगतान को लेकर एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं। राज्य सरकार ने हाल में मिलों को उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) का 80 फीसदी भुगतान तत्काल और 20 फीसदी बाद में करने का निर्देश दिया। हालांकि स्वाभिमानी शेतकरी संगठन और अन्य किसान संगठनों ने बगैर देरी के पूरा भुगतान हासिल करने के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू किया है। चीनी की कीमत 2,600 से 2,700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है जबकि पिछले साल चीनी की कीमत 2,200 से 2,300 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थी।
किसान कार्रवाई समिति के संयोजन सतीश काकड़े ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार के 80:20 फॉर्मूले को कानूनी मान्यता नहीं है। अगर मिलें शुरुआत में सिर्फ 80 फीसदी भुगतान करती हैं तो उन्हें देर से किए जाने वाले भुगतान पर ब्याज का भुगतान भी करना होगा। पश्चिम महाराष्ट्र की कुछ खास मिलों ने एफआरपी का भुगतान शुरू कर दिया है। ये मिलें 1,800 से 2,200 रुपये प्रति टन का भुगतान कर रही हैं। सूखे से प्रभावित मराठवाड़ा, विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र की मिलें सरकारी आदेश का पालन करने में परेशानी का सामना कर रही हैं। 9.5 फीसदी वसूली के लिए इस सीजन के तहत 2,300 रुपये प्रति टन एफआरपी तय किया गया है जबकि 2014-15 सीजन में एफआरपी 2,200 रुपये प्रति टन था। अभी तक 90 सहकारी और 72 निजी मिलों ने 2.66 करोड़ टन गन्ने की पेराई कर 27.1 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है। राज्य में 84 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष राज्य में 104 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। सहकारिता मंत्री चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि मिलें उत्पादकों को एफआरपी का करीब 80 फीसदी भुगतान करेंगी और जो मिलें ऐसा करने में नाकाम रहेंगी उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।