चालू पेराई सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में 15 नवंबर तक देश में चीनी का उत्पादन 33 फीसदी बढ़कर 7,61,000 टन रहा है। इसमें महाराष्ट्र में उत्पादन बढऩे का अहम योगदान रहा है। हालांकि पिछले साल आलोच्य अवधि तक चीनी का कुल उत्पादन 5,74,000 टन था। इस उद्योग की शीर्ष संस्था भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के आंकड़ों से पता चलता है कि चीनी मिलों ने अक्टूबर में 80,000 टन चीनी का निर्यात किया है और नवंबर में निर्यात के लिए 2 से 3 लाख टन के अनुबंध किए हैं। इस्मा ने एक बयान में कहा, 'चालू चीनी सीजन 2015-16 में पेराई अक्टूबर के अंत में और देश के कुछ हिस्सों में नवंबर की शुरुआत में चालू हुई है।' इसने कहा, '15 नवंबर 2015 तक 175 मिलों ने पेराई चालू की है, जबकि चीनी सीजन 2014-15 में इसी समय तक 155 मिलें ही चालू हुई थीं। चीनी मिलें 15 नवंबर तक 7.61 लाख टन चीनी का उत्पादन कर चुकी हैं, जो पिछले साल की इसी अवधि में 5.74 लाख टन था।' भारत में वर्ष 2015-16 में 260 से 270 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है, जो लगातार छठे साल सरप्लस उत्पादन होगा। देश में चीनी की सालाना खपत 230 लाख टन है। केंद्र ने सरप्लस स्टॉक की बिक्री के लिए चालू सीजन में मिलों के लिए 40 लाख टन चीनी का निर्यात करना अनिवार्य कर दिया है। महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने 15 नवंबर तक 4.31 लाख टन चीनी उत्पादित की है, जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य ने 3.1 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था। इसी तरह कर्नाटक की मिलों ने इस विपणन वर्ष में 15 नवंबर तक 1.60 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, जो पिछले साल की इसी अवधि के उत्पादन के लगभग बराबर है। गुजरात की मिलों ने 1.1 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, जो पिछले साल की इसी अवधि में 0.78 लाख टन था। तमिलनाडु में उत्पादन बढ़कर 0.40 लाख टन रहा, जो पिछले चीनी सीजन में 0.12 लाख टन था। इस्मा ने कहा, 'चीनी मिलों द्वारा केंद्र सरकार को दी गई रिपोर्टों के मुताबिक चीनी मिलें अक्टूबर 2015 में 0.80 लाख टन चीनी का निर्यात कर चुकी हैं। हालांकि ऐसी भी खबरें हैं कि मिलें नवंबर 2015 में निर्यात के लिए पहले ही 2 से 3 लाख टन चीनी के अनुबंध कर चुकी हैं।' इस बीच औद्योगिक संस्था एसोचैम ने अपने हालिया अध्ययन में कहा कि 12 लाख टन कम उत्पादन से चीनी की उपलब्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे निश्चित रूप से वर्ष 2016-17 में गन्ने का उत्पादन घटेगा। एसोचैम के अध्ययन में कहा गया है, 'लंबी अवधि की फसल होने के कारण लंबी अवधि में अलनीनो के असर से आने वाले वर्ष में गन्ने का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा चीनी निर्यात की आक्रामक रणनीति और घरेलू उत्पादन घटने से वर्ष 2016 की गर्मियों से घरेलू कीमतों पर दबाव बढ़ेगा।'