कम बारिश की वजह से गन्ने की फसल पर असर पडऩे के अनुमानों और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें चढऩे से निर्यात की संभावनाएं बढऩे की वजह से अगस्त से लेकर अब तक चीनी की कीमतों में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। अगर उत्पादन में गिरावट आती है और निर्यात बढ़ता है तो अत्यधिक स्टॉक और भारी कर्ज के बोझ तले दबे चीनी उद्योग के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है। चीनी मिलों ने पिछले दो साल से गन्ना किसानों का बकाया भी नहीं चुकाया है। बाजार को उम्मीद है कि तीन साल तक तेजी का एक दौर शुरू हो सकता है। चीनी कंपनियों का बिज़नेस स्टैंडर्ड सूचकांक सितंबर से 47 फीसदी तक चढ़ गया, इससे संकेत मिलते हैं कि बाजार में इन कंपनियों के शेयरों की खरीदारी शुरू हो गई है। चीनी की कीमतें पिछले साल के मुकाबले अभी भी आठ फीसदी कम हैं, हालांकि उस वक्त कीमतें उच्च स्तर पर थी जबकि अब कीमतों में तेजी का रुख देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र में पेराई शुरू हो चुकी है, दक्षिण भारत में भी पेराई सीजन की शुरुआत हो चुकी है जबकि उत्तर प्रदेश की मिलों में पेराई इस महीने के आखिर से शुरू हो जाएगी। दुनिया में चीनी का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देश ब्राजील और इंडोनेशिया में फसल को नुकसान होने की खबरों के बाद वैश्विक स्तर पर चीनी की कीमतों में 35 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश शर्मा का कहना है, 'वैश्विक स्तर पर कीमतों में हुए सुधार की वजह से भारत से निर्यात की संभावनाओं में सुधार हुआ है। लेकिन बेहतर कीमतों पर भी 4,500-6,500 रुपये प्रति टन का नुकसान ही है। लेकिन फिर भी पिछले सीजन के बकाये स्टॉक को देखते हुए निर्यात करना ही बेहतर है। एक ओर कम उत्पादन से मदद मिल रही है, दूसरी ओर निर्यात बढ़ाने से देसी बाजार में कीमतों को तेज बनाए रखने में मदद मिल सकती है। अगर देसी बाजार में 1.5 रुपये प्रति किग्रा तक बढ़ जाती हैं तो मिलें निर्यात से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकती हैं।' अगले 11 महीनों में 35-40 लाख टन चीनी निर्यात होने की संभावना है। मिल के राजस्व में करीब 12 फीसदी हिस्सेदारी एक सहायक उत्पाद एथेनॉल की है। हाल ही में सरकार के कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में पांच फीसदी मिश्रण पर लगाए जाने वाले उत्पाद शुल्क को खत्म किए जाने से उद्योग का राजस्व 500 करोड़ रुपये और भी बढ़ जाएगा। इस वर्ष 3.5 फीसदी मिश्रण किए जाने की संभावना है। केआरसी शेयर्स ऐंड सिक्योरिटीज के मुख्य कार्यकारी देवेन चोकसी का कहना है, 'चीनी के कारोबार में सकारात्मकता का दौर लौटा है और इसके तीन साल तक बरकरार रहने की उम्मीद है। दक्षिण भारत की कंपनियों का दांव उत्तर भारतीय मिलों के मुकाबले बेहतर है क्योंकि वहां पेराई का सीजन लंबा होता है और प्रवर्तक अपने बहीखाते को लेकर अत्यंत संवेदनशील हैं जिसकी वजह से बुरे वक्त में अपना अस्तित्व बचाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा दक्षिण भारत में गन्ने की कीमत अन्य उत्पादों के साथ कहीं अधिक गहराई से जुड़ी हुई है। जबकि उत्तर भारत में और उत्तर प्रदेश में गन्ने की कीमत उद्योग के बजाय राजनीतिक रूप से तय होती है।'