यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो आने वाले कुछ सालों में दिल्ली में बायो फ्यूल से चलने वाली एसी बसें दौड़ती हुई दिखाई देंगी। हाइड्रोलिक सिस्टम वाली इन बसों को स्वीडन की तर्ज पर दिल्ली में चलाया जाएगा। दरअसल, स्वीडन दौरे से लौटे दिल्ली सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने जो रिपोर्ट दी है, उसमें स्वीडन की बसों को बेहतर बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन में बायो फ्यूल गन्ने के छिलके से तैयार किया जाता है। बताया जाता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में गन्ने की मिल हैं, जहां फ्यूज आसानी से तैयार किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिनिधिमंडल ने स्वीडन के अधिकारियों से विचार विमर्श किया है, जिसमें यह बात भी सामने आई कि कूड़े से भी बायो फ्यूल तैयार किया जा सकता है। 1 प्रतिनिधिमंडल ने सुझाव दिया है कि ओखला में चल रहे कूड़ा से बिजली बनाने के प्लांट को बायो फ्यूल का प्लांट बनाया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि प्रतिनिधिमंडल को स्वीडन की बसों के साथ ही ट्रक भी पसंद आए हैं। वहां बसें ही नहीं ट्रक भी बगैर गियर वाले हैं। परिवहन विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख सत्येंद्र जैन ने भी एक किलोमीटर तक बस, ट्रक व कंटेनर को चलाकर देखा। एक के पीछे जुड़ी एक बस को भी उन्होंने एक किलोमीटर तक चलाकर देखा। 1 बताया जाता है कि प्रतिनिधिमंडल में शामिल परिवहन मंत्री गोपाल राय के अलावा लगभग सभी अधिकारियों ने स्वीडन में बसों को चलाया। वहां की बसें इस तरह के हाइड्रोलिक सिस्टम वाली हैं, जो स्टाप पर रुकने पर बाईं ओर झुक जाती हैं।प्रतिनिधिमंडल को स्वीडन का पूरा परिवहन सिस्टम भी बहुत पसंद आया। वहां लोग निजी कार आदि कम इस्तेमाल करते हैं। वहां की आबादी काफी कम है, मगर आबादी के हिसाब से बसें बहुत अधिक हैं। वहां दो हजार बसें हैं।