चीनी क्षेत्र में समग्र सुधार के लिए नीति आयोग के सुझावों पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से गठित समिति किसानों को गन्ने के दाम के चरणबद्ध भुगतान के गुजरात मॉडल पर विचार कर रही है।
इस समिति में केंद्र व राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, जिसका गठन कुछ महीने पहले चीनी क्षेत्र के लिए बने नीति आयोग के कार्यबल सुझावों पर विचार करने और आगे की राह पर सुझाव देने के लिए किया गया था। गुजरात में गन्ने के भुगतान का अलग मॉडल है। उत्तर भारत और देश के कुछ अन्य हिस्सों में गन्ना किसानों को मिल गेट पर गन्ने की डिलिवरी करने के 14 दिन के भीतर गन्ने के दाम का भुगतान करने का प्रावधान है। इसके विपरीत गुजरात जैसे कुछ राज्यों में किसानों को भुगतान कुछ किस्तों में किया जाता है।
किस्तों में भुगतान की व्यवस्था के समर्थकों का कहना है कि इससे चीनी मिलों को अपनी चीनी जल्दबाजी में नहीं बेचनी पड़ती है। जिन राज्यों में 15 दिन के भीतर किसानों को भुगतान का नियम है, वहां कंपनियों को नकदी पाने के लिए जल्दबाजी में चीनी बेचना पड़ता है, जिससे पेराई के समय में बड़ी मात्रा में चीनी बाजार में आ जाती है। किस्तों में भुगतान से यह सुनिश्चित हो जाता है कि किसानों का कोई बकाया आगे नहीं बढ़ता और उन्हें उसी साल गन्ने का भुगतान मिल जाता है, जिस साल उन्होंने मिल को गन्ने की डिलिवरी दी होती है।
गुजरात स्टेट फेडरेशन आफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के वाइस चेयरमैन केतनभाई सी पटेल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'गुजरात में ज्यादातर चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र की हैं और हम 30 प्रतिशत भुगतान गन्ने की डिलिवरी के 15 दिन के भीतर कर देते हैं और अगले चरण का भुगतान तब किया जाता है, जब अप्रैल में मिलें बंद होती हैं और तीसरे व अंतिम चरण का भुगतान दीपावली के पहले किया जाता है।'
पटेल ने कहा कि इस व्यवस्था से सुनिश्चित होता है कि गुजरात में एक रुपये भी गन्ने के बकाये का आगे नहीं बढ़ता है और सभी किसानों को गन्ने की डिलिवरी मिलगेट पर करने के कुछ महीनों के भीतर भुगतान मिल जाता है।
समिति को भेजे गए पत्र में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन ने कहा है कि चीनी क्षेत्र में सुधार के लिए गन्ने की डिलिवरी के 90 दिन के भीतर चरणबद्ध भुगतान का नियम होना चाहिए।
बहरहाल इस प्रस्ताव को किसानों की ओर से ज्यादा समर्थन मिलने की संभावना नहीं है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह का कहना है कि इससे एक और बवाल उठ खड़ा होगा, जैसा कि कृषि कानूनों को लेकर चल रहा है। सिंह ने कहा, 'गन्ना की खेती में खाद व अन्य चीजों के भुगतान किसानों को तत्काल करना होता है और उसमें किस्तों की कोई सुविधा नहीं है, ऐसे में उनसे गन्ने का दाम किस्तों में लेने के लिए कैसे कहा जा सकता है।'