पिछले कुछ महीनों के दौरान सरकार ने चीनी उद्योगों को कई तरह की मदद की घोषणाएं की हैं। लेकिन इसके बावजूद चीनी कंपनियां मुश्किल दौर से गुजर रही हैं क्योंकि उनके लिए ज्यादातर उपाय मददगार नहीं रहे। हाल के सप्ताहों में चीनी के दाम करीब 10 फीसदी बढ़े हैं। लेकिन इसकी वजह गन्ने की फसल को नुकसान की खबरें और दालों एवं खाद्य तेलों के आयात के बदले चीनी निर्यात की सरकार की योजना से रुझान में आया सुधार है। जुलाई के अंत से देश के सभी हिस्सों में चीनी की कीमतें 10 से 12 फीसदी बढ़ी हैं। महाराष्ट्र में एनसीडीईएक्स पर कोल्हापुर डिलिवरी वाली चीनी एम30 का भाव करीब 25.5 रुपये प्रति किलोग्राम है। हालांकि चीनी बेचने में उद्योग को अब भी भारी घाटा हो रहा है। बाजार के जानकार असामान्य मौसम के कारण गन्ने की फसल की घटती उत्पादकता को लेकर चिंतित हैं। इससे गन्ने के उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे चीनी के उत्पादन में भी कमी आने की आशंका है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में गन्ने की उत्पादकता कम रहने के आसार हैं। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ताजा उपग्रह तस्वीरों के आधार पर गन्ना बुआई वाले क्षेत्रों की समीक्षा कर रहा है और एक या दो सप्ताह में चीनी उत्पादन के संशोधित अनुमान जारी करेगा। इस्मा उत्पादन के अनुमान घटा सकता है। इसने जुलाई में कहा था कि सीजन 2015-16 में चीनी उत्पादन 2.8 करोड़ टन हो सकता है। एडलवाइस एग्री कमोडिटीज रिसर्च ने हाल में अनुमानों में कटौती की थी। इसने अनुमान जताया है कि वर्ष 2015-16 में चीनी उत्पादन 10 लाख टन घटकर 273 लाख टन रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में चीनी उत्पादन क्रमश: 96 लाख टन, 71.9 लाख टन और 49 लाख टन होने का अनुमान है। उद्योग से जुड़े कुछ लोगों का भी मानना है कि उत्पादन घटकर 265 लाख टन हो सकता है। एडलवाइस के अध्यक्ष एवं जिंस कारोबार प्रमुख डी पी जवाहर ने कहा, 'घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अत्यधिक आपूर्ति के कारण कीमतें कमजोर रहने के आसार हैं।' पिछले महीने सरकार ने कहा था कि वह वस्तु विनिमय के जरिये 40 लाख टन चीनी के निर्यात के बारे में विचार कर रही है। इससे रुझान पर असर पड़ा क्योंकि नकदी की जरूरत वाले विक्रेता किसी भी कीमत पर बेच रहे थे। उन्होंने बिक्री रोक दी और अगले एक से दो महीने शुरू होने जा रहे सीजन में किसानों को भुगतान के लिए भी बिक्री थम गई है। इसके नतीजतन कीमतों में थोड़ी तेजी आई है, लेकिन वस्तु विनियम के तहत उन देेशों को चीनी की बिक्री करना आसान नहीं है, जिनसे भारत दालों या पाम तेल का आयात करता है और निकट भविष्य में ऐसा होने की संभावना नहीं है। इसी तरह कुछ महीने पहले सरकार ने आयात शुल्क बढ़ाकर 40 फीसदी किया था और कच्ची चीनी के निर्यात के लिए सब्सिडी मंजूर की थी। सरकार ने किसानों को भुगतान के लिए चीनी मिलों को 6,000 करोड़ रुपये की सहायता देने की घोषणा की थी। दीर्घकालिक चीनी निर्यात नीति पर विचार चीनी के बढ़ते स्टॉक के बीच सरकार ने कहा है कि वह चीनी के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक नीति पर काम कर रही है। सरकार चीनी का निर्यात केवल चीन व अफ्रीका ही नहीं बल्कि अन्य देशों को भी बढ़ाना चाहती है। भारत का चीनी उत्पादन लगातार पांचवें साल मांग से अधिक रहा है। इससे घरेलू बाजारों में कीमतें नीचे हैं और मिलों को नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है। मिलों पर गन्ने का 14,000 करोड़ रुपये बकाया है। खाद्य सचिव वृंदा स्वरूप ने यहां पीचएडी चैंबर के एक कार्यक्रम में कहा, 'सरकार ने एक स्थानीय चीनी निर्यात नीति लागू करने का फैसला किया है जो कि केवल अफ्रीका और चीन के लिए नहीं बल्कि भारत के पड़ोसी देशों पर भी केंद्रित होगी।' हालांकि उन्होंने इसे लेकर समय सीमा का खुलासा नहीं किया। उन्होंने कहा कि घरेलू उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी के मद्देनजर विभाग प्रणालीगत चीनी निर्यात नीति को लेकर पहले ही काम शुरू कर चुका है।