दुनिया भर में चीनी की अधिकता के बावजूद सरकार ने इसके निर्यात को प्रोत्साहन देने का फैसला लिया है। इससे कारोबारी माहौल में सुधार आया और अगस्त में चीनी के दाम 15 फीसदी मजबूत हो गए। वाशी मंडी में मंगलवार को सल्फर चीनी (चीनी एस) के दाम बढ़कर 2,496 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं, जो इस महीने की शुरुआत में 2,172 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसी तरह अगस्त में मध्यम चीनी (चीनी एम) की कीमत 11 फीसदी उछलकर 2,566 रुपये प्रति क्विंटल हो गई जो महीने के प्रारंभ में 2,312 रुपये प्रति क्विंटल थी।
हालांकि वायदा में नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) पर आज मुनाफावसूली के चलते चीनी की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई, जबकि सोमवार को इसमें अपर सर्किट लगा था। अक्टूबर में डिलिवरी वाली चीनी एम का भाव आज 2.68 फीसदी या 65 रुपये गिरकर 2,356 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। इसी तरह दिसंबर में डिलिवरी वाली चीनी एम ने 3.15 फीसदी या 78 रुपये गिरकर 2,401 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार किया।
भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'निर्यात में मदद के सरकार के फैसले से बाजार का रुझान सुधरने पर चीनी की कीमतें मजबूत हुई हैं। एक्स-फैक्टरी कीमत में भी इतनी ही बढ़ोतरी दर्ज की गई है।' सरकार चीनी उद्योग की सेहत सुधारने के लिए हर संभव उपाय कर रही है, लेकिन ज्यादा घरेलू उत्पादन और भारी मात्रा में पिछले वर्षों के बचे हुए स्टॉक ने सभी उपायों को बेअसर कर दिया है। इस उद्योग की तस्वीर बदलने के लिए सरकार ने चीनी मिलों को 6,000 करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण की घोषणा की है, ताकि वे किसानों को गन्ने के बकाया का भुगतान कर सकें। सरकार ने पहले वर्ष 600 करोड़ रुपये के ब्याज का बोझ उठाने का प्रस्ताव रखा है। लेकिन पहले से ही कर्ज के बोझ से दबी चीनी मिलें स्कीम के तहत ऋण नहीं ले रही हैं क्योंकि वे खुद पर ऋण का बोझ और नहीं बढ़ाना चाहती हैं। इससे अगले पेराई सीजन की खातिर कार्यशील पूंजी जुटाने के लिए उनकी उधारी क्षमता प्रभावित हो सकती है। नतीजतन पूरे देश में चीनी मिलों ने ब्याज मुक्त योजना के तहत आवंटित कुल राशि के 20 फीसदी से भी कम के लिए आवेदन किए हैं। दूसरा, सरकार देश से 40 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए आयातक देशों के साथ वस्तु विनिमय सौदा करने की प्रक्रिया में है। वैश्विक बाजारों में अत्यधिक आपूर्ति के चलते भारत इस साल अप्रैल तक महज 12.6 लाख टन चीनी का निर्यात कर पाया है। उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'भारत से चीनी निर्यात के लिए वस्तु विनिमय सौदे में समय लग सकता है और इसलिए इस पर दांव नहीं लगाया जा सकता।' भारत में वर्ष 2014-15 के दौरान चीनी का कुल उत्पादन 283 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि देश की सालाना मांग करीब 240 लाख टन है। चालू वर्ष में अनुमानित 102 लाख टन चीनी का स्टॉक बचने और 280 लाख टन के उत्पादन से वर्ष 2015-16 में चीनी की कुल उपलब्धता 382 लाख टन होने का अंदाजा है।चालू वर्ष में चीनी का वैश्विक उत्पादन मांग से 6,20,000 टन ज्यादा रहने का अनुमान है। एमके कमोट्रेड लिमिटेड के एक विश्लेषक नवीन नायर ने कहा, 'सब्सिडी की मदद से निर्यात की बातचीत और गणेश चतुर्थी एवं रक्षा बंधन जैसे त्योहारी सीजन से पहले मांग में बढ़ोतरी की उम्मीद में चीनी वायदा ने बढ़त के साथ कारोबार किया। निर्यात और घरेलू मांग में बढ़ोतरी की संभावना से मजबूत रुझान के चलते अल्पावधि में चीनी की कीमतें मजबूत रहने के आसार हैं।' इस बीच, सरकार ने पेट्रोल के साथ 10 फीसदी एथेनॉल मिश्रण का प्रस्ताव रखा है। हालांकि पांच फीसदी अनिवार्य एथेनॉल मिश्रण का पहले का प्रस्ताव सफल नहीं रहा और तेल विपणन कंपनियां आधे से भी कम लक्ष्य हासिल कर पाईं। कोटक कमोडिटीज में वरिष्ठ शोध विश्लेषक सुधा आचार्य ने कहा, 'अत्यधिक आपूर्ति के कारण कीमतें वर्तमान उच्च स्तरों पर बनी नहीं रह पाएंगी। चीनी के लिए लंबी अवधि का रुझान कमजोर है।'