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चीनी के बदले दाल के लिए बातचीत
Date: 10 Aug 2015
Source: Business Standard Hindi
Reporter: बीएस संवाददाता
News ID: 4648
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केंद्र सरकार कनाडा और कुछ अफ्रीकी देशों के साथ बातचीत कर यह जानने की कोशिश कर रही है कि क्या वहां भारत में उपलब्ध सरप्लस चीनी के बदले दाल मिलने की संभावना है। यह जानकारी केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) निर्मला सीतारामन ने दी। चेन्नई के एमएस स्वामिनाथन रिसर्च फाउंडेशन (पीएसएसआरएफ) द्वारा भुखमरी की चुनौती से निपटने में विज्ञान, तकनीक एवं सरकारी नीति की भूमिका पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से इतर संवाददाताओं से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, 'हमने अभी इस पर काम करना शुरू ही किया है। पिछले चार वर्षों के दौरान चीनी का भारी स्टॉक जमा हो गया है। जब तक इसकी बिक्री नहीं होगी, तब तक किसानों को अपनी उपज की अच्छी कीमत नहीं मिल पाएगी। स्थिति बड़ी नाजुक है।'
 
वस्तु विनिमय कारोबार की योजना के बारे में उन्होंने कहा, 'यह शुरुआती चरण में है। ऐसा नहीं है कि हम पहले ही समाधान खोज चुके हैं। विदेश मामलों के मंत्रालय के जरिये हम उन सरकारों के साथ बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां से (कुछ अफ्रीकी देश, म्यांमार, कनाडा और अन्य कई देश) दालों का आयात हो रहा है और जहां भारत से दालों के निर्यात की संभावना है और जो हमारी चीनी खरीदना चाहते हैं।' .
 
उन्होंने कहा कि यह सरकार द्वारा बफर चीनी को खाली करने के लिए विचार किए जाने रहे विकल्पों में से एक है। उनका मंत्रालय विदेश मामलों के मंत्रालय और कृषि मंत्रालय की मदद ले रहा है। समाचार एजेंसी की हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार वस्तु विनिमय प्रणाली के जरिये 40 लाख टन चीनी के निर्यात को मंजूरी देने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। पिछले चार वर्षों के दौरान घरेलू जरूरत की तुलना में ज्यादा उत्पादन हुआ है, जिससे चीनी के दाम काफी घट गए हैं। इससे मिलों के पास नकदी की किल्लत हो गई है और वे किसानों को गन्ने के बकाये का भुगतान करने में दिक्कतों का सामना कर रही हैं। 
 

इस साल अप्रैल में केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इससे 5 करोड़ गन्ना किसानों की आमदनी प्रभावित हुई है। पिछले सप्ताह केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने राज्य सभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि जुलाई 2015 में चीनी मिलों पर गन्ना किसानों के 17,301 करोड़ रुपये बकाया थे। इसमें कहा गया कि केंद्र सरकार केरल में रबर उद्योग की समस्याएं हल करने के लिए वहां की राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार देश के उत्तर-पूर्व और अन्य हिस्सों के गैर-परंपरागत हिस्सों में रबर उत्पादन को प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन भारत के रबर की गुणवत्ता सर्वोत्तम है और इसलिए टायर उद्योग भारतीय रबर का इस्तेमाल नहीं कर रहा है, क्योंकि उसे निम्न गुणवत्ता के रबर की जरूरत होती है।              

 
  

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