पीने योग्य शराब के कारखाने बंद होने से परिशोधित स्पिरिट, शीरा और एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल (ईएनए) जैसे चीनी के उपोत्पादों की मांग खत्म हो गई है। कागज मिलों के बंद होने से खोई की मांग में भी कमी आ गई है। दुर्भाग्य से तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) ने भी पेट्रोल में मिलाने के लिए एथनॉल लेना कम कर दिया है। उनका तर्क है कि इस लॉकडाउन अवधि के दौरान कम संख्या में पेट्रोल पंप चल रहे और ईंधन की खपत कम हो गई है। इसके परिणामस्वरूप मिलों में चीनी और इसके उपोत्पादों का स्टॉक जमा हो गया है। चीनी मिलों ने अपना स्टॉक रोक रखा है। श्री रेणुका शुगर्स लिमिटेड के चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि चीनी मिलें चीनी और इसके उपोत्पादों की मांग खत्म होने के कारण चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रही हैं।
महाराष्ट्र की चीनी मिलें उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की तुलना में बेहतर हैं। गन्ना उत्पादन में करीब 30 गिरावट के कारण इस वर्ष महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने इसी अनुपात में गिरावट दर्ज की है। इसके परिणामस्वरूप चीनी और इसके उपोत्पादों के स्टॉक में कमी आई है। हालांकि इसके उलट उत्तर प्रदेश में जोरदार गन्ना उत्पादन और इसके परिणामस्वरूप चीनी तथा इसके उपोत्पादों के स्टॉक के कराण यहां की चीनी मिलों को इनके स्टॉक का प्रबंध करने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी मिलों में से एक के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि अधिकांश चीनी मिलें कार्यशील पूंजी के कारण पहले से दबाव में हैं, इसलिए चीनी और इसके उपोत्पादों का प्रबंध करना एक चुनौती बन गया है। शीरे, ईएनए और यहा तक कि खोई के लिए भी दाम नहीं लगाए जा रहे हैं क्योंकि इनका उपभोग करने वाले कारखाने बंद पड़े हैं। इससे चीनी मिलों की कुल बिक्री और शुद्ध आय पर दबाव बनेगा। चीनी मिलों को डर है कि कच्चे तेल की गिरती कीमतों के कारण एथनॉल की मांग में कमी आ सकती है और शायद तेल विपणन करने वाली कंपनियां पर्यावरण के अनुकूल ईंधन खरीद के लिए अगली निविदा न लाएं। देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान हुए आर्थिक नुकसान की कुछ भरपाई के लिए सरकार द्वारा सभी संभावित स्रोतों से पैसे बचाने की कोशिश किए जाने के कारण भी एथनॉल की मांग कम रहने के आसार हैं।
इस बीच चीनी मिलों ने एथनॉल उत्पादन का कुछ हिस्सा सैनिटाइजर विनिर्माण की ओर स्थानांतरित कर दिया है, लेकिन तेल विपणन कंपनियों की ओर से अनुमानित नुकसान की भरपाई के लिहाज से यह मात्रा अपर्याप्त रहेगी। चतुर्वेदी का पूर्वानुमान है कि मिठाइयों की खुदरा दुकानों के अलावा आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक के कारखाने बंद होने के कारण इस साल देश की चीनी खपत में 15 से 20 तक की गिरावट आएगी।
पिछले वर्ष की अनुमानित 2.5 करोड़ टन चीनी खपत में से औद्योगिक खपत यानी आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक के कारखाने तथा मिठाई की खुदरा दुकानों की हिस्सेदारी 1.5 करोड़ टन रही है। शेष एक करोड़ टन की हिस्सेदारी घर-परिवार खंड की रही है। हालांकि इस साल गर्मी के मौसम में आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक की खपत की शीर्ष मांग देशव्यापी लॉकडाउन के कारण पूरी तरह चौपट हो चुकी है। लॉकडाउन के विस्तार ने चीनी मांग में सुधार की उम्मीदें खत्म कर दी हैं।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि बाजार खोलने तथा चीनी और इसके उपोत्पादों की मांग में बहाली को लेकर बहुत अनिश्चितता है। हालांकि चीनी निर्यात उस मात्रा के पुन: आवंटन के साथ जारी रहा जो पिछले आवंटन में बच गई थी। पिछले साल के बचे हुए स्टॉक के मुकाबले देश में स्टॉक स्तर कम ही रहेगा लेकिन फिर भी अक्टूबर से शुरू होने वाले अगले पेराई सत्र के लिए चीनी स्टॉक लगभग 1.3 करोड़ टन होगा जो काफी ज्यादा है।