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जूट उपभोग अनुमान पर संशोधन की मांग
Date: 09 Jun 2015
Source: Business Standard Hindi
Reporter: Namrata Acharya
News ID: 4397
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 जूट उद्योग सरकार से मांग कर कर रहा है कि वह जूट वर्ष 2016-17 के लिए घरेलू जूट खपत के आंकड़ों में संशोधन करे। उद्योग यह कवायद ऐसे दौर में कर रहा है, जब अनिवार्य पैकेजिंग नियमों में ढील से जूट के उपभोग में कमी आने की आशंका है। जूट वर्ष 2015-16 (जून-जुलाई) के लिए सरकार ने  गैर-मिल (ग्रामीण और औद्योगिक) कच्चे जूट का उपभोग 20 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया है। हालांकि जूट उद्योग का कहना है कि गैर-मिल खपत 12 लाख गांठ से ऊपर नहीं जाएगी। गैर-मिल खपत के साथ सरकार ने अनुमान लगाया है कि जून वर्ष 2016-17 में पिछले साल का (कैरीओवर) कोई भंडार नहीं आएगा, जिससे व्यापार संरक्षण का आधार और कमजोर होगा। भारतीय जूट मिल संघ पहले ही सरकार को इस बारे में पत्र लिख चुका है। 

इस क्षेत्र में समस्याओं की शुरुआत वर्ष 2012-13 में शुरू हुईं, जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने जूट पैकेजिंग मैटेरियल अधिनियम में बदलाव कर दिया। इसके तहत जहां पहले चीनी और खाद्यान्न की शत प्रतिशत पैकेजिंग जूट की बोरियों में करने का प्रावधान था, वहीं सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए यह तय किया कि खाद्यान्न की 90 फीसदी और चीनी की 20 फीसदी पैकेजिंग ही जूट की बोरियों में की जाएगी। पिछले महीने हुई जूट सलाहकार बोर्ड की बैठक में बताया गया था कि वर्ष 2014-15 के दौरान 75 लाख गांठ जूट उत्पादन हुआ था, जबकि वर्ष 2015-16 के दौरान 85 लाख गांठ जूट उत्पादन होने की उम्मीद है, इस लिहाज से इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 13 फीसदी बढ़ोतरी होने का अनुमान है। अगले महीने से शुरू होने वाले जूट वर्ष 2015-16 में उद्योग का अनुमान है कि तकरीबन 15 लाख गांठ का पिछले साल का उत्पादन भी उसमें जुड़ जाएगा। इसमें अगर 80 लाख बेल्स के घरेलू उत्पादन और 5 लाख गांठ के आयात को भी जोड़ लिया जाए तो वर्ष 2015-16 के दौरान जूट की कुल उपलब्धता तकरीबन 100 लाख गांठ की होगी। 

सरकारी अनुमानों के अनुसार गैर-मिल (ग्रामीण और औद्योगिक) उपभोग में बढोतरी के चलते 2015-16 में जूट वर्ष 2016-17 का कोई भी बचा हुआ भंडार नहीं आएगा। वर्ष 2015-16 में कच्चे जूट का मिल उपभोग 80 लाख गांठ रहा था, जबकि गैर मिल उपभोग 20 लाख गांठ रहा था, जबकि इस साल 12 लाख गांठ की खपत का अनुमान  है। आईजेएमए के पूर्व चेयरमैन और समिति के सदस्य संजय कजारिया ने बताया, 'पिछले कुछ वर्षों में कच्चे जूट की आपूर्ति और वितरण के इतिहास में एक बार भी ऐसा मौका नहीं आया जब कच्चे जूट का पिछला भंडार पूरी तरह खत्म हो जाता हो।'           

 
  

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