चीनी की कीमतों में भारी गिरावट से श्री रेणुका शुगर्स (एसआरएस) को छोड़कर इस कारोबार की बड़ी मिलों का घाटा 31 मार्च, 2015 को समाप्त तिमाही में बढ़ा है। मुनाफे में चल रहीं चीनी कंपनियों के लाभ में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। इस उद्योग की अगुआ बजाज हिंदुस्तान का तिमाही घाटा जनवरी से मार्च 2015 तिमाही में 538.61 करोड़ रुपये रहा, जबकि कंपनी का कुल कारोबार 1,181.40 करोड़ रुपये रहा। पिछले साल की इसी तिमाही में कंपनी की शुद्ध बिक्री 1,324.85 करोड़ रुपये रही थी, जिसमें शुद्ध घाटा 423.90 करोड़ रुपये रहा था। देश की इस सबसे बड़ी चीनी उत्पादक कंपनी के 14 संयंत्र हैं, जिनकी औसत गन्ना पेराई क्षमता 1,36,000 टन प्रति दिन और एल्कोहल डिस्टिलेशन क्षमता 800 किलो लीटर प्रतिदिन है। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा, 'पिछली तिमाही में चीनी की कीमत घटकर 24.50 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई, जो उत्पादन लागत से 7-8 रुपये प्रति किलोग्राम कम है। हमारी 80 फीसदी आमदनी चीनी की बिक्री से होती है, जिससे हमें घाटा हुआ है।' इसी तरह त्रिवेणी इंजीनियरिंग को जनवरी-मार्च 2015 तिमाही में 85.60 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ है, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 59.52 करोड़ रुपये था। हालांकि शुद्ध बिक्री मामूली घटकर 444.46 करोड़ रुपये रही, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 454.99 करोड़ रुपये थी। आलोच्य तिमाही के दौरान अवध शुगर मिल्स और डालमिया भारत जैसी कंपनियों के शुद्ध लाभ में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इस क्षेत्र की अन्य कंपनियों-केसर ऐंटरप्र्राइजेज, गायत्री शुगर्स और राजश्री शुगर्स ने घाटा दर्ज किया है। एसवीएस सिक्योरिटीज के रणनीतिकार हरीश वासुदेवन का मानना है कि चीनी की कीमतों में गिरावट के अलावा सरकार की नीतियां अनुकूल न होने से चीनी क्षेत्र की हालत बिगड़ी है। कोलकाता स्थित बलरामपुर चीनी का शुद्ध मुनाफा भी 31 मार्च को समाप्त तिमाही में 60 फीसदी गिरकर 75.82 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 189.90 करोड़ रुपये था। वर्ष 2014-15 की जनवरी-मार्च तिमाही के दौरान कंपनी की कुल आय घटकर घटकर 658.32 करोड़ रुपये रही, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 699.98 करोड़ रुपये थी। कंपनी ने मुनाफे में गिरावट की वजह बढ़ता खर्च बताया है। मार्च 2015 तिमाही में खर्च बढ़कर 583.90 करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 488.65 करोड़ रुपये था। उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की कीमत 280 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित रखी और 28.40 रुपये प्रति क्विंटल का प्रोत्साहन और अन्य करों को हटाने से 11.60 रुपये प्रति क्विंटल का अतिरिक्त लाभ दिया। लेकिन अभी फंड जारी नहीं हुआ है। इसके अलावा 1 अक्टूबर से एथेनॉल की आपूर्ति पर 12 फीसदी उत्पाद शुल्क खत्म करने का चीनी मिलों को फायदा अगले पेराई सत्र मेंं ही मिलने के आसार हैं। सरकार ने चीनी मिलों को स्थायी रूप से बंद होने से बचाने के लिए 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण को बढ़ाकर 10 फीसदी करने का आदेश जारी किया गया है। इस तरह एथेनॉल और बिजली जैसे उपोत्पादों से चीनी मिलों को घाटा कम रखने में मदद मिली है। इसके नतीजतन मुख्य रूप से कच्ची चीनी की रिफाइनिंग और एथेनॉल की बिक्री पर निर्भर एसआरएस ने मार्च 2015 तिमाही में 4.30 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ दर्ज किया है, जबकि पिछले साल की इसी तिमाही में कंपनी को 88.30 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। एसआरएस के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी ने इसका श्रेय ब्रांडेड चीनी (मधुर) की बिक्री में सुधार होने और उपोत्पादों का योगदान बढऩे को दिया। इस बीच बजाज हिंदुस्तान के प्रवक्ता ने कहा कि 20 फीसदी हिस्सेदारी वाले उपोत्पाद कारोबार में मामूली सुधार 80 फीसदी कारोबारी हिस्सेदारी वाले चीनी कारोबार के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता। इस जरूरत को महसूस करते हुए बलरामपुर चीनी ने एथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए अपनी तीन इकाइयों पर 200 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना बनाई है।