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घट नहीं रहीं चीनी उद्योग की मुश्किलें
Date: 20 May 2015
Source: Dainik Jagran
Reporter: Jagran Bureau
News ID: 4343
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नई दिल्ली। चालू पेराई सीजन में गन्ना किसानों और चीनी उद्योग की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। गन्ना रकबा बढ़ता गया और चीनी मिलें घाटे में डूबती चली गईं। अब उसका खामियाजा गन्ना किसानों को भी भुगतना पड़ रहा है। उसके गन्ने का हजारों करोड़ रुपये चीनी मिलों पर बकाया हो गया है, जिसके भुगतान की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।

सीजन खत्म होने से पहले ही चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 39 लाख टन अधिक हो गया है। इससे बाजार में चीनी के भाव और नीचे जा सकते हैं। नतीजतन घाटे से जूझ रही चीनी मिलों के लिए गन्ने का भुगतान करना और कठिन हो जाएगा। गन्ना मूल्य का बकाया 21 हजार करोड़ रुपये को पार कर गया है।

केंद्र की पहल और उठाए कारगर कदमों के बाद भी राज्य सरकारों की उदासीनता से चीनी उद्योग का संकट बढ़ गया है। आगामी चीनी वर्ष के लिए गन्ने की पर्याप्त उपलब्धता की उम्मीद है, क्योंकि इसकी खेती का रकबा कम नहीं हुआ है। इसकी खास वजह यह है कि अन्य फसलों के मुकाबले गन्ने की खेती का लाभ 50 फीसद अधिक होने से गन्ना किसान इससे हट नहीं सकता है।

चीनी मिलों के संगठन इस्मा के मुताबिक पिछले तीन सालों के भीतर गन्ने का मूल्य 50 फीसद तक बढ़ा है, जो अन्य फसलों के मुकाबले बहुत अधिक है। जबकि चीनी की कीमतें पिछले छह सालों के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। चीनी उद्योग के लिए यह उतार-चढ़ाव घातक साबित हो रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश सरकार की भूमिका सबसे खराब रही है, जिसका खामियाजा राज्य की चीनी मिलों व गन्ना किसानों को उठाना पड़ रहा है।

गन्ना खेती के लाभ को देखते हुए इसका रकबा सालों साल बढ़ता रहा, वहीं कानूनी बाध्यता के चलते मिलों की मुश्किलें भी बढ़ीं। मिलों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले गन्ने की पेराई करना उनकी मजबूरी है। जानकारों का मानना है कि अगर सरकार ने इस दिशा में कोई कारगर पहल नहीं की तो आगामी गन्ना वर्ष में ज्यादातर चीनी मिलों में पेराई शुरू भी नहीं हो पाएगी।

 
  

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