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News
चीनी निर्यात पकड़ रहा जोर
Date:
19 Feb 2020
Source:
Business Standard
Reporter:
Rajesh Bhayani
News ID:
43047
Pdf:
Nlink:
इस सत्र के दौरान अप्रत्याशित रूप से चीनी निर्यात में इजाफा हो रहा है तथा और निर्यात के मौके भी सामने आ रहे हैं। उम्मीद है कि इंडोनेशिया भी जल्द ही भारत की चीनी के लिए अपना द्वार खोल देगा। पिछले कुछेक सालों से उद्योग को चीनी की जिस अधिकता से जूझना पड़ रहा है, उससे छुटकारा पाने के लिए उत्पादन में कमी के साथ-साथ निर्यात में इजाफा होना फायदेमंद है। सरकार ने निर्यात कोटे का पुन: आवंटन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जो मिलें इस कोटे का इस्तेमाल नहीं कर पाई हैं, वह उन मिलों को दिया जाएगा जिन्होंने अधिक कोटे की मांग की है। सरकार ने बड़े उपाय के तौर पर आज जारी एक परिपत्र में उन मिलों को चेताया भी है जो निर्यात कोटे का इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं और उसे छोड़ भी नहीं रही हैं। ऐसी मिलों ने चीनी का जो बफर स्टॉक रखा हुआ है, उसके लिए वे तीसरी या चौथी तिमाहियों के लिए अपने दावों की हकदार नहीं होंगी। इससे यह सुनिश्चत होगा कि चीनी निर्यात का और अधिक कोटा पूरा किया जा रहा है।
इस्मा के अनुसार कुछ चीनी मिलों ने न्यूनतम स्वीकार्य निर्यात मात्रा (एमएईक्यू) यानी निर्यात कोटा सरकार को दे दिया है या दे देंगी। यह वह कोटा है जिसे वे पूरा करने की स्थिति में नहीं हैं। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) और व्यापार प्रमुखों का अनुमान है कि इस सत्र में 50 लाख टन निर्यात होगा। सरकार ने मिलों के हिसाब से एमएईक्यू जारी किया है। सरकार ने 60 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा जारी किया था। निर्यातकों का कहना है कि करीब 16 से 17 लाख टन चीनी का निर्यात किया जा चुका है और निर्यात के लिए तकरीबन 32 से 33 लाख टन अनुबंध किए जा चुके हैं। अक्टूबर में जब सत्र शुरू हुआ तो कच्ची चीनी के लिए प्रति टन 21,000 रुपये मिल रहे थे, जबकि घरेलू बाजार में न्यूनतम बिक्री मूल्य प्रति टन 31,000 रुपये था, लेकिन अब निर्यातकों को प्रति टन 24,000 रुपये मिल रहे हैं। सरकार द्वारा घोषित सब्सिडी 10,480 रुपये प्रति टन है। इसका अर्थ यह है कि महाराष्ट्र में मिलों को स्थाानीय बिक्री में प्रति किलोग्राम 31 से 32 रुपये मिल रहे हैं, जबकि सब्सिडी के साथ उन्हें निर्यात में औसतन 34 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहे हैं।
इस बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने यह भी कहा कि अंतत: इंडोनेशिया ने भारत से चीनी आयात शुरू करने का फैसला कर लिया है। पिछले करीब दो सालों से दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही थी। उम्मीद है कि इंडोनेशिया आईसीयूएमएसए स्तर का इस्तेमाल करेगा ताकि भारत का चीनी उद्योग कच्ची चीनी का निर्यात कर सके। उसने न्यूनतम 1,200 आईसीयूएमएसए तय किया है, लेकिन भारत की मिलें इतने अधिक स्तर की कच्ची चीनी का उत्पादन नहीं करती हैं। अब सूत्रों का मानना है कि भारतीय मिलों के लिए यह स्तर कम करके 500 से 600 कर दिया जाएगा। इस संबंध में औपचारिक घोषणा किए जाने की उम्मीद है।
इस्मा ने मौजूदा उत्पादन के संबंध में आज जारी एक नोट में यह भी कहा है कि वैश्विक बाजार में चीनी सत्र 2019-20 के दौरान 80 से 90 लाख टन की कमी आने का अनुमान है और थाईलैंड में कम उत्पादन की वजह से उसके निर्यात में 30 से 40 लाख टन कमी आने के आसार हैं। आने वाले महीनों में भारतीय चीनी निर्यात में तेजी आ सकती है और पूरे सत्र में 60 लाख एमएईक्यू के मुकाबले 50 लाख टन से अधिक एमएईक्यू प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ के अध्यक्ष प्रफुल्ल विठलानी ने चिंता जताई है कि सब्सिडी समय पर नहीं आती है। इससे कार्यशील पूंजी लागत बढ़ जाती है। कुछ मिलों को अब तक पिछले साल की सब्सिडी नहीं मिली है। इसके अलावा गन्ने की कम उपलब्धता के कारण महाराष्ट्र में चीनी मिलों द्वारा एक महीने में परिचालन बंद किए जाने की संभावना है और उत्तर प्रदेश में मिलें मध्य अप्रैल तक परिचालन बंद कर सकती हैं। विठलानी ने कहा कि इसके बाद मिलें कच्ची चीनी का और उत्पादन नहीं करेंगी। इसलिए निर्यात की अवधि छोटी है। अत: उद्योग के सभी प्रतिनिधियों को जोखिम लेकर बाद में निर्यात करने के लिए और अधिक कच्ची चीनी उत्पादन का फैसला करना चाहिए।
15 फरवरी, 2020 तक मिलों ने 1.698 करोड़ टन चीनी उत्पादन किया है, जबकि पिछले वर्ष की इसी तारीख को 2.196 करोड़ टन उत्पादन किया गया था। गन्ना उपलब्ध नहीं होने की वजह से 23 चीनी मिलों ने पहले ही पेराई कार्य बंद कर दिया है। महाराष्ट्र में अब तक उत्पादन गिरकर 43.4 लाख टन रह गया है, जबकि पिछले साल उत्पादन 83 लाख टन था। विभिन्न अनुमान बताते हैं कि इस साल राज्य में 60 से 70 लाख टन उत्पादन होगा। उत्तर प्रदेश में 66.3 लाख टन चीनी उत्पादन किया गया है, जो पिछले साल की तुलना में करीब पांच प्रतिशत ज्यादा है।
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