वर्ष 2019-20 में भारत के चीनी उत्पादन अनुमान में कोई बड़ा बदलाव होने की उम्मीद नहीं है। आज भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने आंकड़ों की समीक्षा करते हुए कहा कि चीनी उत्पादन का अनुमान 2.6 करोड़ टन है जिसमें कोई बड़ा फेरबदल नहीं होगा। इस्मा के अध्यक्ष विवेक पिट्टी ने दुबई में एक औद्योगिक सम्मेलन में कहा कि 25 फरवरी को बैठक होगी। उन्होंने कहा कि अगर आप मुझसे पूछें तो मुझे कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है। दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश के तौर पर भारत का मुकाबला ब्राजील से होता है। वर्ष 2018 में सूखे के कारण भारत में किसान गन्ने की बुआई में कटौती करने को मजबूर हुए थे, जबकि वर्ष 2019 में गन्ने की खेती वाले प्रमुख क्षेत्रों में बाढ़ के कारण फसलों को नुकसान पहुंचा था। औद्योगिक संगठन ने कहा कि इसके नतीजतन वर्ष 2019-20 में देश का चीनी उत्पादन 21.6 फीसदी घटकर 2.6 करोड़ टन के साथ तीन साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया।
अपने उत्पादन अनुमान के संबंध में इस्मा ने महाराष्ट्र के 62 लाख टन उत्पादन को भी ध्यान में रखा है। पिट्टी ने कहा कि यह मामूली रूप से बढ़कर 65 लाख टन तक जा सकता है। इस्मा ने यह भी अनुमान जताया है कि 2019-20 सत्र के दौरान आठ लाख टन से अधिक गन्ने का इस्तेमाल एथनॉल बनाने के लिए किया जा सकता है। यह पिछले सीजन के मुकाबले पांच लाख टन से अधिक है। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'भारत के पास काफी मात्रा में अतिरिक्त गन्ना और अतिरिक्त कच्चा माल है जिसका इस्तेमाल एथनॉल के लिए किया जा सकता है।' उन्होंने कहा कि यदि देश में पर्याप्त क्षमता में एथनॉल तैयार किया जाता है तो इसके लिए और अधिक मात्रा में गन्ना दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश में एथनॉल की मौजूदा क्षमता 3.5 अरब लीटर है जो जरूरी 5.11 अरब लीटर से बहुत कम है।
वैश्विक चीनी खरीदार भारत से होने वाले बहुचर्चित चीनी निर्यात को अब तक अमलीजामा नहीं पहनाए जाने को लेकर हैरान हैं। चीनी की वैश्विक कीमत दो से ढाई वर्ष के शीर्ष स्तर पर होने के बावजूद भारत की कुछ मिलें चीनी बेचने की इच्छुक नहीं हैं। कृष्णमूर्ति ने कहा, 'अब तक की प्रगति को देखकर थोड़ा आश्चर्य हो सकता है क्योंकि निर्यात ठीक मात्रा में हो रहा है, चीनी की बिक्री की गई है और हम उम्मीद कर सकते हैं कि फरवरी में यह बढ़कर पांच लाख टन हो सकता है जो कि काफी अच्छी मात्रा होगी।'