चीनी निर्यात को बढ़ावा देने वाली बहुप्रचारित कवायद परवान नहीं चढऩे की वजह से वैश्विक चीनी खरीदारों की चिंता लगातार बढ़ रही है। वैश्विक दाम करीब ढाई साल के शीर्ष स्तर पर पहुंचने के बावजूद कुछ मिलें बिक्री की इच्छुक नहीं हैं। चीनी के अतिरिक्त स्टॉक से छुटकारा पाने की उम्मीद करते हुए भारत सरकार ने पिछले साल 2019-20 सत्र के लिए प्रति टन चीनी निर्यात पर 10,448 रुपये की सब्सिडी मंजूर की थी। इसका उद्देश्य करीब 60 लाख टन निर्यात को प्रोत्साहन देना था। अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन ने पूर्वानुमान जताया था कि वर्ष 2019-20 के दौरान वैश्विक स्तर पर 61.2 लाख टन चीनी की कमी होगी। इस कमी की भरपाई के लिए वैश्विक खरीदारों का ध्यान भारतीय आपूर्ति पर रहा है। हालांकि अब इस बात की संभावना कम ही है कि सरकार का यह लक्ष्य पूरा हो पाएगा। उद्योग के अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि भारत 50 लाख टन चीनी निर्यात करेगा जो पिछले साल के मुकाबले अब भी एक-तिहाई अधिक है, लेकिन आपूर्ति में और अधिक इजाफे के लिए दाम और ज्यादा होने चाहिए थे।
चीनी का कारोबार करने वाली कंपनी जार्निकोव के विश्लेषक स्टिफंस गेलडार्ट ने कहा कि भारतीय निर्यात न बढऩे की कोई वजह नहीं है, लेकिन नतीजा सामने है। दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक के रूप में भारत की ब्राजील के साथ होड़ रहती है। जार्निकोव के आंकड़े बताते हैं कि चालू सत्र की पहली तिमाही में अक्टूबर से दिसंबर के बीच भारत का रिफाइंड और कच्ची चीनी का निर्यात 9,16,000 टन तक पहुंच चुका है जो पिछले साल की इसी तिमाही के 9,45,000 टन से कुछ कम है। हालांकि देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र को ध्यान में रखते हुए बाजार में चर्चा है कि जनवरी में और भी गिरावट आएगी। भारत की एक निर्यातक कंपनी के कारोबारी का कहना है कि इस सत्र में महाराष्ट्र का उत्पादन गिरकर 55 लाख टन रहने के पूर्वानुमान तथा अंतरराष्ट्रीय दामों में और उछाल की उम्मीद के कारण महाराष्ट्र की मिलों को निर्यात की जल्दबाजी नहीं है।