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वैश्विक खरीदारों को भारतीय चीनी से आस
Date: 29 Jan 2020
Source: The Business Standard
Reporter: रॉयटर्स / मुंबई/लंदन
News ID: 43010
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चीनी निर्यात को बढ़ावा देने वाली बहुप्रचारित कवायद परवान नहीं चढऩे की वजह से वैश्विक चीनी खरीदारों की चिंता लगातार बढ़ रही है। वैश्विक दाम करीब ढाई साल के शीर्ष स्तर पर पहुंचने के बावजूद कुछ मिलें बिक्री की इच्छुक नहीं हैं। चीनी के अतिरिक्त स्टॉक से छुटकारा पाने की उम्मीद करते हुए भारत सरकार ने पिछले साल 2019-20 सत्र के लिए प्रति टन चीनी निर्यात पर 10,448 रुपये की सब्सिडी मंजूर की थी। इसका उद्देश्य करीब 60 लाख टन निर्यात को प्रोत्साहन देना था। अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन ने पूर्वानुमान जताया था कि वर्ष 2019-20 के दौरान वैश्विक स्तर पर 61.2 लाख टन चीनी की कमी होगी। इस कमी की भरपाई के लिए वैश्विक खरीदारों का ध्यान भारतीय आपूर्ति पर रहा है। हालांकि अब इस बात की संभावना कम ही है कि सरकार का यह लक्ष्य पूरा हो पाएगा। उद्योग के अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि भारत 50 लाख टन चीनी निर्यात करेगा जो पिछले साल के मुकाबले अब भी एक-तिहाई अधिक है, लेकिन आपूर्ति में और अधिक इजाफे के लिए दाम और ज्यादा होने चाहिए थे।

 

चीनी का कारोबार करने वाली कंपनी जार्निकोव के विश्लेषक स्टिफंस गेलडार्ट ने कहा कि भारतीय निर्यात न बढऩे की कोई वजह नहीं है, लेकिन नतीजा सामने है। दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक के रूप में भारत की ब्राजील के साथ होड़ रहती है। जार्निकोव के आंकड़े बताते हैं कि चालू सत्र की पहली तिमाही में अक्टूबर से दिसंबर के बीच भारत का रिफाइंड और कच्ची चीनी का निर्यात 9,16,000 टन तक पहुंच चुका है जो पिछले साल की इसी तिमाही के 9,45,000 टन से कुछ कम है। हालांकि देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र को ध्यान में रखते हुए बाजार में चर्चा है कि जनवरी में और भी गिरावट आएगी। भारत की एक निर्यातक कंपनी के कारोबारी का कहना है कि इस सत्र में महाराष्ट्र का उत्पादन गिरकर 55 लाख टन रहने के पूर्वानुमान तथा अंतरराष्ट्रीय दामों में और उछाल की उम्मीद के कारण महाराष्ट्र की मिलों को निर्यात की जल्दबाजी नहीं है।

 
महाराष्ट्र अधिकांश रूप से कम गुणवत्ता वाली सफेद चीनी का निर्यात करता है जो वैश्विक स्तर पर आईसीई सफेद चीनी के वायदा कारोबार की तुलना में डिलिवरी योग्य तो नहीं होती, लेकिन यह उसे प्रभावित करती है क्योंकि हाजिर बाजार के कुछ उपभोक्ता डिलिवरी योग्य सफेद चीनी के बजाय इसका इस्तेमाल करते हैं। अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ के अध्यक्ष प्रफुल्ल विठलानी ने कहा कि देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश की बड़ी निजी चीनी मिलों ने निर्यात पर सोच-विचार करते हुए सरकार द्वारा जारी निर्यात कोटा इस्तेमाल कर लिया है।
 
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि भारत सरकार का इरादा अब भी निर्यात को बढ़ावा देना है। प्रत्येक मिल के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के बाद सरकार अगले महीने कोटे का पुनर्वितरण कर सकती है। एक वैश्विक कारोबारी कंपनी की भारतीय इकाई के कारोबारी ने कहा कि अंतत: महाराष्ट्र सक्रिय रूप से बिक्री शुरू करेगा क्योंकि निर्यात सब्सिडी का मतलब यह है कि मिलों को स्थानीय बिक्री की तुलना में प्रति टन कम से कम 2,000 रुपये अधिक मिलेंगे। व्यापारियों का कहना है कि प्रति टन करीब 395 डॉलर आईसीई वायदा दामों के मुकाबले कारोबारी फ्री-ऑन-बोर्ड आधार पर 370 से 380 डॉलर के बीच भारतीय सफेद चीनी की पेशकश कर रहे हैं।
 
  

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