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उप्र में गन्ना खेती का बिगड़ा स्वाद
Date: 13 Jan 2020
Source: Dainik Jagran
Reporter: Santosh Shukla
News ID: 42961
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              पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना खेतीबाड़ी ही नहीं, रोजगार और प्रतिष्ठा का भी विषय माना जाता है। इस क्षेत्र में 59 चीनी मिलें चल रही हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले दो साल में कई बंद चीनी मिलों को फिर से शुरू किया और रमाला समेत कई अन्य मिलों के क्षमता विस्तार में भी बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन किसान के मन में कड़वाहट बनी हुई है। गन्ना बेल्ट में किसानों के लिए चीनी उत्पादन का स्वाद कड़वा रहा है। पिछले साल किसानों ने दिल्ली तक प्रदर्शन कर सरकार को झकझोरा तो हाल में गन्ना जलाकर रोष जताया। किसान गन्ने की दर 450 रुपये प्रति क्विंटल मांग रहे हैं, जबकि सरकार 315 रुपये दे रही है। चीनी मिलों पर करोड़ों रुपये बकाया है। ऐसे में, केंद्रीय बजट में किसानों के लिए विशेष पैकेज की मांग तेज हो गई है।

 

ना चीनी का दाम बढ़ा, ना गन्ने की दर : दशकभर से किसानों का आंदोलन नई दिशा पकड़ रहा है। किसान नेता नरेश टिकैत कहते हैं कि गन्ना किसान बर्बादी की कगार पर पहुंच गए हैं। एक क्विंटन गन्ने से 12 किलो चीनी निकलती है। बाजार में चीनी का रेट घटने-बढ़ने से किसानों को बड़ा नुकसान होता है। उनकी मांग है कि चीनी की दर 50 रुपये किलोग्राम के आसपास पर तय कर देना चाहिए। टिकैत कहते हैं कि गन्ने की दर 315 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि उत्पादन की लागत ज्यादा है। अगर यह दर 450 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए तो खेतीबाड़ी का फायदा है। किसानों के सामने व्यावहारिक समस्याएं भी हैं। गन्ने की खेती में बिजली और फसल के लिए दवा की महंगाई ने मुनाफा कम कर दिया, जबकि इसकी तुलना में गन्ने का दाम नहीं बढ़ा। दावा तो यहां तक है कि बड़ी संख्या में लोगों ने दूसरे फसलों की खेती शुरू कर दी। कई बार त्योहारों में भी किसानों को उनके पैसे नहीं मिल पाए। वहीं, लंबे सम से चीनी मिलों में कैद पड़ी बकाया राशि पर किसानों ने ब्याज की दर बढ़ाने की मांग तेज कर दी है।

 

..बिजली की दर ने भी दिया झटका : बिजली की दर 185 रुपये प्रति हॉर्सपावर है, जिसे 100 रुपये प्रति हॉर्सपावर करने की मांग तेज हो रही है। राज्य के गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा का दावा है कि योगी सरकार ने एक साल में गन्ना किसानों का 35 हजार करोड़ से ज्यादा का भुगतान किया, जो किसी भी राज्य में आज तक नहीं हुआ। सरकार ने 14 दिनों के अंदर गन्ना भुगतान का दावा किया था, लेकिन दीवाली, होली और ईद जैसे त्योहारी मौकों पर भी पैसे नहीं मिले। किसान सरकार के दावों से इत्तेफाक नहीं रखते। मेरठ-सहारनपुर मंडल में ही किसानों के करीब 1,500 करोड़ रुपये नहीं मिले। किसान एथनॉल बनाने की योजना से संतुष्ट हैं, लेकिन इसमें उनकी भागीदारी का सरकार को ध्यान रखना होगा। सल्फरलेस चीनी को लेकर भी किसानों का रवैया यही है।

 

 

मैं 100 बीघा में गन्ना की खेती करता हूं। हमारा समय पर भुगतान होना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। किसानों को सस्ती बिजली, खाद व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रावधान होना चाहिए। गन्ना आपूर्ति व भुगतान सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए।

 

-इरशाद अहमद रिजवी, लावड़

गन्ना समय से चीनी मिलों पर चला जाए। जिससे अगली फसल के लिए समय रहते तैयारी पूरी कर ली जाए। सोसायटी से लोन, उपकरणों पर छूट

 
  

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