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गन्ना किसानों के जीवन में फिर घुली कड़वाहट
Date: 16 Dec 2019
Source: Nav Bharat Times
Reporter: चौधरी पुष्पेन्द्र सिंह
News ID: 42897
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लखीमपुर खीरी (उप्र) के खेत में गन्ने की फसल पर छिड़काव करते किसान
चीनी मिलें साल-साल भर गन्ने का भुगतान नहीं करतीं, उस पर ब्याज नहीं देतीं और किसानों की इस पूंजी का इस्तेमाल भी करती हैं
उत्तर प्रदेश सरकार ने लगातार दूसरे साल भी गन्ने की कीमत नहीं बढ़ाई, जिससे किसानों में भारी नाराजगी है। उन्होंने पिछले दिनों पूरे राज्य में जगह-जगह प्रदर्शन किया। 2017 में उत्तर प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद अब तक के तीन चीनी वर्षों में मात्र 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है, जो नाकाफी है। इस साल गन्ना किसानों को गन्ने का भाव बढ़ने की उम्मीद थी। लगता है, योगी सरकार ने चीनी-उद्योग लॉबी के दबाव में दाम नहीं बढ़ाया, जबकि चीनी उद्योग की स्थिति देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस साल बिल्कुल बदल गई है।• उत्पादन में कमी

गौरतलब है कि इस वर्ष देश में कम चीनी उत्पादन और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक मांग के कारण चीनी उद्योग को तो पूरी राहत मिलेगी, लेकिन गन्ना किसानों की स्थिति और बिगड़ेगी। 2018-19 में देश में चीनी का आरंभिक भंडार (ओपनिंग स्टॉक) 104 लाख टन, उत्पादन 332 लाख टन, घरेलू खपत 255 लाख टन और निर्यात 38 लाख टन रहा। वर्तमान चीनी वर्ष 2019-20 में चीनी का प्रारंभिक भंडार 143 लाख टन है। हमारी लगभग सात महीने की खपत के बराबर चीनी पहले ही गोदामों में रखी हुई है। कुछ महीने पहले तक स्थिति चिंताजनक थी जिसे देखते हुए सरकार ने चीनी मिलों को चीनी की जगह एथनॉल बनाने के लिए कई आर्थिक पैकेज और प्रोत्साहन भी दिए थे। पर इस साल पहले विलंब से आए मॉनसून के कारण सूखा पड़ने और बाद में अत्यधिक बेमौसम बारिश के कारण देश में गन्ने की फसल को काफी नुकसान हुआ। इससे महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन पिछले साल के 107 लाख टन से घटकर 55 लाख टन और कर्नाटक में 44 लाख टन से घटकर 33 लाख टन रहने की संभावना है। इस्मा (इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन) के अनुसार देश में इस वर्ष चीनी का उत्पादन पिछले वर्ष के 332 लाख टन के मुकाबले 21 प्रतिशत घटकर लगभग 260 लाख टन होने का अनुमान है, जो केवल घरेलू बाजार की खपत के लिए ही पर्याप्त होगा। चालू गन्ना वर्ष के पहले दो महीनों अक्टूबर-नवंबर में देश में चीनी का उत्पादन पिछले साल के लगभग 41 लाख टन के मुकाबले आधे से ज्यादा घटकर लगभग 19 लाख टन पर आ गया है।

2019-20 में विश्व में चीनी का उत्पादन 1756 लाख टन और मांग 1876 लाख टन रहने की संभावना है। यानी उत्पादन मांग से 120 लाख टन कम होने का अनुमान है। इस कारण इस वर्ष वैश्विक बाजार में चीनी की अच्छी मांग होगी जिसकी आपूर्ति भारत कर सकता है। यूपी के चीनी उद्योग को इस स्थिति में सबसे ज्यादा लाभ होगा क्योंकि पिछले साल की तरह इस साल भी चीनी उत्पादन में प्रथम स्थान पर उत्तर प्रदेश ही रहेगा, जहां 120 लाख टन चीनी उत्पादन होने का अनुमान है। 2018-19 में उत्तर प्रदेश के किसानों ने लगभग 33,000 करोड़ रुपये मूल्य के गन्ने की आपूर्ति चीनी मिलों में की थी। पर इसमें से आज भी किसानों का लगभग 3000 करोड़ रुपये का गन्ना भुगतान बकाया है। यह तो केवल मूलधन है। इसमें यदि विलंबित भुगतान के लिए देय ब्याज भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा लगभग 5000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा।

केंद्र सरकार ने जुलाई में वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का एफआरपी (उचित एवं लाभकारी मूल्य) 10 प्रतिशत चीनी की आधार रिकवरी के लिए 275 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया था। वर्ष 2018-19 में भी केंद्र सरकार का एफआरपी इतना ही था लेकिन आधार रिकवरी दर 9.5 प्रतिशत थी। इस वर्ष आधार रिकवरी दर बढ़ाने और महंगाई दर के प्रभाव से गन्ने का वास्तविक मूल्य घट गया है। यही हाल उत्तर प्रदेश में भी रहा जहां एसएपी (राज्य परामर्शित मूल्य) पिछले दो सालों से 315-325 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर ही है। मगर अब गन्ना और चीनी दोनों के उत्पादन की स्थिति देश और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बदल गई है जिसके कारण गन्ना मूल्य बढ़ाया जाना चाहिए था।

पिछले दिनों यूपी सरकार ने 2019-20 के गन्ना मूल्य निर्धारण के लिए सभी हितधारकों से विचार-विमर्श किया था। इस बैठक में उत्तर प्रदेश चीनी मिल्स एसोसिएशन ने एक बार फिर अपनी खराब आर्थिक स्थिति, चीनी के अत्यधिक उत्पादन और भंडार का डर दिखाकर इस साल भी गन्ने का रेट न बढ़ाने की मांग रखी थी जबकि दो सालों से गन्ने के रेट न बढ़ने से लागत काफी बढ़ गई है। गन्ना शोध संस्थान, शाहजहांपुर के अनुसार गन्ने की औसत उत्पादन लागत लगभग 300 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है। सरकार के लागत के डेढ़ गुना मूल्य के वायदे को भूल जाएं तो भी बदली परिस्थिति में कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिलना चाहिए था। यदि पिछले तीन सालों में 10 प्रतिशत की मामूली दर से भी वृद्धि की जाती तो इस वर्ष 400 रुपये प्रति क्विंटल का भाव अपने आप हो जाता।• पूंजी का इस्तेमाल

चीनी मिलें चीनी के सह-उत्पादों जैसे शीरा, खोई (बगास), प्रैसमड़ आदि से भी अच्छी कमाई करती हैं। इसके अलावा सह-उत्पादों से एथनॉल, बायो-फर्टीलाइजर, प्लाईवुड, बिजली व अन्य उत्पाद बनाकर भी बेचती हैं। गन्ना (नियंत्रण) आदेश के अनुसार चीनी मिलों को 14 दिनों के अंदर गन्ना भुगतान कर देना चाहिए। भुगतान में विलंब होने पर 15 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी देय होता है। लेकिन चीनी मिलें साल-साल भर गन्ने का भुगतान नहीं करतीं, उस पर ब्याज नहीं देतीं और किसानों की इस पूंजी का इस्तेमाल भी करती हैं। गन्ने से करोड़ों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। गन्ना किसानों की समस्या से निपटने के लिए चीनी उद्योग को लेकर एक अलग नीति बनाने पर भी विचार करना होगा। वैसे अब भी वक्त है, सरकार अलग से बोनस देकर गन्ना किसानों को बदहाली से बचा सकती है अन्यथा उसे उनका भारी आक्रोश झेलना पड़ेगा।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)


उत्तर प्रदेश सरकार ने लगातार दूसरे साल भी गन्ने की कीमत नहीं बढ़ाई              

 
  

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