सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोल में 10 फीसदी एथनॉल मिश्रण का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, लेकिन अगर इस नीति की विसंगतियों को दूर करने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यह लक्ष्य पटरी से उतर सकता है। यह नीति चीनी क्षेत्र के उतार-चढ़ाव का व्यवहार्य और दीर्घकालिक समाधान हो सकती है। इससे देश के तेल आयात के बढ़ते बिल का भी समाधान मिल सकता है, लेकिन इसमें विभिन्न स्तरों पर समस्याएं हैं। इसमें मुख्य समस्या उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में शीरे की आपूर्ति से पैदा होती है। शीरा एथनॉल उत्पादन का सबसे बुनियादी कच्चा माल है। ये दोनों राज्य देश के कुल चीनी उत्पादन में 65 फीसदी और शीरे के उत्पादन में 67 फीसदी योगदान देते हैं।
एथनॉल गन्ने का एक उपोत्पाद है, जो चीनी उत्पादन के दौरान पैदा होता है। हर एक टन गन्ने की पेराई से 4-5 फीसदी शीरा प्राप्त होता है। शीरे के प्रसंस्करण से इथाइल एल्कोहल और मिथाइल एल्कोहल बनाया जाता है। इथाइल एल्कोहल मानव उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं होता है, लेकिन मिथाइल एल्कोहल का इस्तेमाल डिस्टिलरी मुख्य रूप से शराब बनाने में करती हैं।
पिछले महीने देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश की सरकार ने अपनी नीति में बदलाव किया था। नई नीति में चीनी विनिर्माताओं के लिए पेय एल्कोहल विनिर्माताओं को शीरे की अनिवार्य आपूर्ति की मात्रा बढ़ाई गई है। वर्ष 2018-19 में यह मात्रा 16 फीसदी थी, जिसे 2019-20 में बढ़ाकर 18 फीसदी कर दिया गया है। इसमें पिछला संशोधन महज दो महीने पहले ही हुआ था। उस समय यह मात्रा 12.5 फीसदी से बढ़ाकर 16 फीसदी की गई थी। कोटा नीति में त्वरित बदलावों से चीनी मिलें नाखुश हैं। उनकी शिकायत यह है कि पेय एल्कोहल विनिर्माताओं के लिए न केवल आरक्षित मात्रा में बढ़ोतरी की गई है, बल्कि अब आवंटन में खुद के इस्तेमाल के लिए उत्पादित शीरे को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा वर्ष 2019-20 के लिए शीरे की आरक्षित कीमत 87 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार दर करीब 450 रुपये प्रति क्विंटल है।
कुल मिलाकर उस स्थिति में उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को न केवल पेय एल्कोहल विनिर्माताओं को पिछले साल की तुलना में ज्यादा मात्रा में शीरे की बिक्री करनी पड़ेगी, बल्कि उन्हें बाजार कीमत से काफी कम पर शीरा बेचना पड़ेगा। वर्ष 2018-19 में उत्तर प्रदेश में शीरे का कुल उत्पादन 48 लाख टन रहने का अनुमान है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक की पहेली
देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में चीनी मिलों के लिए शीरे से एथनॉल के उत्पादन के बजाय रेक्टिफाइड स्पिरिट और एक्सट्रा न्यूट्रल एल्कोहल (ईएनए) का उत्पादन करना ज्यादा फायदे का सौदा है।
इस समय कुछ राज्यों में रेक्टिफाइड स्पिरिट की कीमत 43 से 44 रुपये प्रति लीटर है, जबकि ईएनए की कीमत 58 से 60 रुपये प्रति लीटर है। रेक्टिफाइड स्पिरिट को एथनॉल बनाने की लागत पांच रुपये प्रति लीटर आती है, जिससे एथनॉल की लागत बढ़कर करीब 49 रुपये प्रति लीटर हो जाती है। सरकारी तेल विपणन कंपनियां 2019-20 के लिए सी-भारी (चीनी की मात्रा से मुक्त) शीरे से तैयार एथनॉल की एक्स-डिस्टिलरी कीमत 43.75 रुपये प्रति लीटर है। वहीं तुलनात्मक रूप से कम उत्पादित बी भारी शीरे (जिसमें चीनी की कुछ मात्रा होती है) की कीमत 54.27 रुपये प्रति लीटर दी जा रही है।
रियायती ऋण पैकेज की सुस्त रफ्तार
केंद्र सरकार ने चीनी मिलों में एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ महीनों के दौरान कई प्रोत्साहनों की घोषणा की है, जिसमें 15,000 करोड़ रुपये का बड़ा रियायती ऋण पैकेज भी शामिल है। हालांकि अब तक केवल 800 करोड़ रुपये के वितरण की ही प्रक्रिया चल रही है।
अधिकारियों ने कहा कि 19 जुलाई, 2018 से 8 मार्च, 2019 के बीच 349 एथनॉल क्षमता परियोजनाओं को सरकार ने सैद्धांतिक मंजूरी दी है। इनमें से 33 फीसदी ही अंतिम वितरण के स्तर तक पहुंचे है क्योंकि बैंकों ने बहुत सी चीनी मिलों की बैलेंस शीटों को समस्याग्रस्त पाया है। शुरुआती अनुमानों में कहा गया है कि देश के अहम उत्पादक राज्यों में सूखे के कारण चीनी उत्पादन 2019-20 में पिछले साल की तुलना में छह फीसदी कम रहेगा। गन्ने की कम उपलब्धता का मतलब है कि मिलें एथनॉल के लिए कम शीरा इस्तेमाल कर पाएंगी। यही वजह है कि पहली निविदा में ज्यादातर राज्यों ने तेल विपणन कंपनियों को कम एथनॉल 1.63 अरब लीटर की आपूर्ति की पेशकश की है।
कर्नाटक की चीनी मिलों ने 2019-20 में 2018-19 की तुलना में 47.27 फीसदी कम एथनॉल की पेशकश की है। वहीं महाराष्ट्र की मिलों ने 48.3 फीसदी कम एथनॉल आपूर्ति की पेशकश की है। केवल उत्तर प्रदेश की मिलों ने पिछले साल से 51 फीसदी अधिक एथनॉल आपूर्ति की पेशकश की है।