महाराष्ट्र में पिछले दिनों हुई बारिश और चुनाव के कारण पेराई सत्र में देरी की वजह से 30 नवंबर, 2019 तक घरेलू चीनी उत्पादन 50 फीसदी से अधिक घटकर 19 लाख टन रह गया। पिछले वर्ष की इस अवधि में यह करीब 41 लाख टन था। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के मुताबिक 2019-20 के चालू चीनी सत्र के दौरान केवल 279 चीनी मिलें परिचालन में थीं, जबकि नवंबर 2018 के अंत तक 418 इकाइयों में गन्ना पेराई हो रही थी। चालू सत्र के दौरान महाराष्ट्र में करीब एक महीने की देरी - नवंबर 2019 के तीसरे हफ्ते से चीनी मिलों का परिचालन शुरू होने के कारण चीनी उत्पादन में गिरावट आई। लिहाजा चीनी के कुल उत्पादन में भारी कमी आई है। अब तक केवल 43 मिलों ने पेराई शुरू की है और राज्य में 67,000 टन चीनी उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले वर्ष 175 चीनी मिलें सक्रिय थीं जिनसे 19 लाख टन चीनी उत्पादन हुआ था।
देश के शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में 111 मिलों में गन्ने की पेराई हो रही थी जिनसे करीब 11 लाख टन कुल उत्पादन हुआ, जबकि पिछले सत्र में 105 मिलों में पेराई हुई थी और उत्पादन 10 लाख टन से नीचे रहा। कर्नाटक में 30 नवंबर तक 61 चीनी मिलों में पेराई हो रही थी जिनसे 5,21,000 टन चीनी उत्पादन हुआ। इस्मा की रिपोर्ट से पता चलता है पिछले वर्ष यहां 63 इकाइयों में कुल 8,40,000 टन चीनी उत्पादन हुआ था। दक्षिण पश्चिम और उत्तर पूर्व मॉनसून में हुई अधिक बारिश के कारण गुजरात में भी इस वर्ष चीनी मिलों में पेराई करीब तीन हफ्तों की देरी से शुरू हुई। अब तक 14 मिलों में पेराई हुई जिनसे 75,000 टन चीनी उत्पादन हुआ, जबकि पिछले पेराई सत्र में 16 मिलों में पेराई हुई थी जिनसे 2,05,000 टन उत्पादन हुआ था।
उत्तर भारत के राज्यों में पिछले कुछ महीनों से चीनी की कीमतें (एक्स मिल) 3,250-3,300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर बनी हुई हैं, जबकि पश्चिम और दक्षिण भारत के राज्यों में यह 3,100-3,250 रुपये प्रति क्विंटल के निचले स्तर पर है। चालू सत्र में उत्तर प्रदेश में 1.2 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान है जो 2019-20 में देश के अनुमानित उत्पादन का करीब 45 फीसदी है। इस्मा की पिछले रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू चीनी उत्पादन 20 फीसदी घटकर 2.6 करोड़ टन रह सकता है, जबकि 2018-19 में 3.3 करोड़ टन उत्पादन हुआ था। इस साल गन्ने का रकबा 48.3 लाख हेक्टेयर आंका गया है। चालू सीजन में घरेलू चीनी उत्पादन में अनुमानित कमी की आंशिक वजह एथनॉल उत्पादन में हो रही बढ़ोतरी है जिससे घरेलू स्तर पर गन्ने की कुछ पैदावार का इस्तेमाल ईंधन में मिलाने के लिए भी किया जाएगा।