•  
  • Welcome Guest!
  • |
  • Members Log In Close Panel
  •  
Home
 
  • Home
  • About us
  • Ethanol
  • Cogeneration
  • Environmental
  • Statistics
  • Distillery
  • Sugar Price
  • Sugar Process
  • Contact us

News


महाराष्ट्र की राजनीति में कम होती जा रही शक्कर की मिठास
Date: 16 Oct 2019
Source: Dainik Jagran
Reporter: ओमप्रकाश तिवारी
News ID: 42727
Pdf:
Nlink:

कोल्हापुर के मनोज कोल्हेकर को पांच साल से एक ही कार इस्तेमाल करते देख अब उनके शुभचिंतक पूछने लगे हैं कि सब ठीकठाक तो चल रहा है ना? क्योंकि कोल्हापुर महाराष्ट्र का वह शहर है, जो एक समय मर्सिडीज कारों के पंजीकरण में सबसे ऊपर हुआ करता था। उन दिनों प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी कोल्हापुर देश में सबसे ऊपर था। यहां की समृद्धि खेतों में गन्ने की खेती के रूप में फैली दिखाई देती है।

न सिर्फ कोल्हापुर, बल्कि पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और विदर्भ के 13 जिलों में गóो की खेती से जुड़े करीब 25 लाख किसान किसी न किसी सहकारी चीनी मिल के सदस्य होते हैं। जब महाराष्ट्र का सहकारिता आंदोलन अपने शिखर पर था, तो यहां सहकारी चीनी मिलों की संख्या 350 से अधिक थी। ये चीनी मिलें महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थीं क्योंकि एक-एक चीनी मिल से कई-कई हजार किसान जुड़े होते थे। लाखों किसानों के जुड़े होने के कारण ये अर्थव्यवस्था के साथ-साथ राजनीति की रीढ़ भी होने लगीं। इन चीनी मिलों के अध्यक्ष और संचालक ही विधायक और सांसद चुने जाने लगे। उदाहरण के लिए 1950 में प्रवरानगर में देश की पहली सहकारी चीनी मिल स्थापित करने वाले पद्मश्री विट्ठलराव विखे पाटिल सक्रिय राजनीति में नहीं रहे, लेकिन उनकी तीन पीढ़ियां अहमदनगर की सियासत की धुरी बनी हुई हैं।

इसी परिवार के राधाकृष्ण विखे पाटिल पिछले पांच साल तक कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाकर हाल ही में भाजपा में शामिल हुए। उनके पुत्र डॉ. सुजय विखे पाटिल लोकसभा चुनाव में भाजपा के ही टिकट पर सांसद चुने गए। विखे पाटिल परिवार की ही तर्ज पर सोलापुर का मोहिते पाटिल परिवार, सातारा का भोसले राज घराना, सातारा का ही प्रतापराव भोसले परिवार, कागल का घाटगे राज परिवार, अहमदनगर का थोरात परिवार, बारामती का पवार परिवार और सांगली का पतंगराव कदम परिवार भी इसी श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने सहकारी चीनी मिलों को ही आधार बनाकर इसी कड़ी में सहकारी सूत कारखाना, सहकारी दूध कारखाने तथा अपने निजी शैक्षणिक संस्थान खोले। इससे उन्होंने न सिर्फ अपना सामाजिक दायरा बढ़ाया, बल्कि इससे उनका राजनीतिक सफर भी आसान होता गया।

लेकिन 2014 में केंद्र में मोदी सरकार और उसी वर्ष राज्य में देवेंद्र फड़नवीस सरकार आने के बाद उन्हें चुनौती मिलनी शुरू हुई। यह चुनौती भी यूं ही नहीं मिलने लगी। करीब 70 वर्षो के सहकारिता के सफर में जंग भी लगना शुरू हो चुका था। सहकारी संस्थानों में कई प्रकार के भ्रष्टाचार पनपने लगे थे। इनकी पोल भी कांग्रेस शासन में ही खुलने लगी थी। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार सहित 70 लोगों से ज्यादा पर दर्ज किया गया हेरफेर का मामला ऐसे ही भ्रष्टाचार का उदाहरण है। कांग्रेस के ही सीएम पृथ्वीराज चह्वाण जांच के आदेश देकर गए थे। यह और बात है कि कार्रवाई का मौका भाजपा सरकार को मिला।

सहकारी चीनी मिलों के क्षेत्र में आई गिरावट का ही परिणाम है कि 2018-19 के गन्ना पेराई के मौसम में 188 सहकारी और निजी चीनी मिलें काम नहीं कर रही हैं, और 50 चीनी मिलों ने सरकार से खुद को आर्थिक संकट से उबारने की गुहार लगाई है। इस व्यवसाय के विशेषज्ञों का कहना है कि सहकारी चीनी मिलों से जुड़े नेता जानबूझकर इन मिलों को आर्थिक संकट में डलवाकर बाद में उन्हें स्वयं खरीदने की भूमिका तैयार कर लेते हैं और लाभ कमाते हैं। क्योंकि 2006 के बाद किसानों द्वारा अपना गन्ना किसी विशेष क्षेत्र की ही चीनी मिल को देने की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। इसलिए गन्ना किसान सही समय पर ज्यादा भाव देने वाली चीनी मिल को गन्ना देने के लिए स्वतंत्र हैं, और देते भी हैं। राजनीति में इसका परिणाम यह हुआ कि सहकारिता के जरिये एक नेता से जुड़े लाखों किसान स्वतंत्र हो गए। अब वे अपनी मर्जी से अपना नेता चुन रहे हैं। आज कोल्हापुर जनपद के 10 में से आठ विधायक शिवसेना-भाजपा के हैं और उनका किसी सहकारी चीनी मिल से कोई लेनादेना नहीं है।

एक समय देश की सबसे बड़ी सहकारी चीनी मिल रही वसंत दादा पाटिल सहकारी चीनी मिल अब निजी क्षेत्र के एक व्यापारी की संपत्ति है। जिसका परिणाम राजनीतिक तौर पर भी दिखाई देने लगा है। आज भी बड़े प्रभावशाली मुख्यमंत्री के रूप में याद किए जाने वाले वसंत दादा पाटिल के पौत्र विशाल पाटिल पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा के संजय काका पाटिल से हार गए। इस विधानसभा चुनाव में ऐसे कई चमत्कार और देखने को मिले तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

 
  

Navigation

  • TV Interviews
  • Application Form For Associate Membership
  • Terms & Conditions (Associate Member)
  • ISMA President
  • Org. Structure
  • Associate Members(Regional Association)
  • Who Could be Member?
  • ISMA Committee
  • Past Presidents
  • New Developments
  • Publications
  • Acts & Orders
  • Landmark Cases
  • Forthcoming Events




Indian Sugar Mills Association (ISMA) © 2010 Privacy policy
Legal Terms & Disclaimer
 Maintained by