प्रदेश में वित्तीय संकट ङोल रही चीनी मिलें यदि प्रचुर मात्र में एथनॉल का उत्पादन कर रही होतीं तो आज उनकी यह स्थिति न होती। चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने का सीधा लाभ उन गन्ना किसानों को मिलता, जिनका चार हजार करोड़ से अधिक गन्ना मूल्य मिलों पर बकाया है। किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य हासिल करने में भी एथनॉल उत्पादन बढ़ाओ फॉमरूला कारगर होगा। यह हरित ईंधन है और पेट्रोल में इसका मिश्रण पर्यावरण प्रदूषण भी कम करेगा। इससे विदेशी मुद्रा में जो बचत होगी, वह अतिरिक्त लाभ है।
बायो ईंधन एथनॉल को पेट्रोल में मिश्रित कर प्रयोग किया जाता है। सरकार ने 15 प्रतिशत एथनॉल मिलाने की इजाजत दे रखी है, लेकिन कोई राज्य पेट्रोल में इतना एथनॉल नहीं मिलाता है। उत्तर प्रदेश में 9.5 प्रतिशत तक एथनॉल मिश्रित किया जा रहा है, जो देश में सर्वाधिक है। एथनॉल मिश्रण से वाहनों के इंजन की उम्र बढ़ने के साथ हवाओं में सल्फर और कार्बन उत्सर्जन का खतरा भी घटता है। पर्यावरणविद् रमणकांत कहते हैं कि वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या से नगरों में हवा जहरीली होती जा रही है। एथनॉल का प्रयोग बढ़ेगा तो यह संकट भी कम होगा।
उत्तर प्रदेश की 121 चीनी मिलों में से 58 में एथनॉल उत्पादन हो रहा है। एक दर्जन से अधिक मिलों में एथनॉल संयंत्र शुरू होने का कार्य अंतिम चरण में है। एक क्विंटल शीरे से 22.50 लीटर एथनॉल तैयार होता है। आरक्षित शीरा भी मिलों को मिले तो लगभग दो लाख किलोलीटर एथनॉल अतिरिक्त बनने लगेगा। इससे चीनी मिलों के हालात सुधरेंगे। किसानों को भी गन्ना मूल्य भुगतान मिलने में आसानी होगी।
मुश्किल में सहकारी व एकल मिलें: एथनॉल उत्पादन की इकाइयां प्रदेश की अधिकतर सहकारी व एकल चीनी मिलों में नहीं हैं। प्रदेश में 24 सहकारी मिलें हैं। इक्का-दुक्का को छोड़ अधिकतर की स्थिति संतोषजनक नहीं है। मिलें पुरानी मशीनों और तकनीकी पर चलाए जाने के कारण घाटे का सौदा बनी हैं। शीरा आरक्षण कोटा बढ़ने का अधिक नुकसान भी उन मिलों को ही है, जहां एथनॉल इकाई नहीं है। उनको सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का लाभ भी नहीं मिल पाता जिसमें मिलों को अपना एथनॉल बनाने के लिए जरूरी शीरे का इस्तेमाल करने के बाद बचे हुए शीरे पर ही आरक्षण लागू होने की व्यवस्था है।
गन्ना क्षेत्र घटाने की जरूरत न होगी: गत दो वर्ष से गन्ने की रिकॉर्ड पैदावार सरकार के लिए सरदर्द बनी है। किसानों का गन्ना खपाने के लिए कई चीनी मिलों में जून तक पेराई करानी पड़ रही है। कैश क्रॉप होने के कारण किसानों का गन्ना मोह कम नहीं हो पा रहा है। वर्ष 2018-19 में गन्ना बोआई क्षेत्रफल करीब 26.79 लाख हेक्टेयर था। मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव के किसान राजीव बालियान का कहना है कि गन्ने की फसल किसानों की मजबूरी बन चुकी है। इसके अलावा कोई फसल ऐसी नहीं जो कम खर्च व मेहनत में इतना लाभ दे सके। चीनी मिलों के साथ गुड़ और खांडसारी उद्योग को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इसके अलावा सभी मिलों में एथनॉल और कोजन प्लांट लग जाएं तो किसानों से गन्ना बोआई कम करने जैसी अपील भी नहीं करनी पड़ेगी।
पूर्वाचल फिर बन सकता है चीनी का कटोरा: पूर्वाचल के किसानों की खुशहाली गायब होने का एक प्रमुख कारण वहां चीनी मिलों का बंद होना भी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में इस ओर ध्यान दिया गया तो वहां किसानों ने फिर गन्ना बोआई शुरू की है। गन्ना विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष गन्ना क्षेत्रफल में सर्वाधिक वृद्धि गोरखपुर जिले में 43.53 फीसद हुई है। इसके अलावा देवरिया में 18.39 फीसद और आजमगढ़ में 10.93 फीसद गन्ना क्षेत्रफल बढ़ा है। किसान देवप्रकाश राय का कहना है कि सरकार की ईमानदार कोशिशें जारी रहेंगी तो पूर्वाचल में भी फिर से बहार आएगी।
सहकारी मिलों का वरीयता के आधार पर उन्नतीकरण कराया जा रहा है। छह बंद डिस्टीलरी इस वर्ष आरंभ हो जाएंगी। कई अन्य मिलों में एथनॉल के साथ कोजन प्लांट भी स्थापित कराए जा रहे हैं।
-सुरेश राणा, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग मंत्री, उत्तर प्रदेश