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शराब निर्माताओं पर मेहरबानी गन्ना किसानों पर पड़ रही भारी
Date: 15 Oct 2019
Source: Dainik Jagran
Reporter: अवनीश त्यागी ’ लखनऊ
News ID: 42724
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अवनीश त्यागी ’ लखनऊ

उप्र में शीरा नीति विरोधाभासों में घिरी नजर आती है। शीरा बनाता कोई और है, नियंत्रण किसी और विभाग का है। किसानों का इससे सीधा कोई संबंध नहीं, लेकिन बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान न होने से सबसे अधिक असर उन्हीं पर है। बीमार होते चीनी उद्योग को भी इससे संजीवनी मिलने की उम्मीद नहीं क्योंकि शराब निर्माताओं के केंद्र में रखकर ही नीतियां तैयार की गईं। शीरा आरक्षण चीनी मिलों के लिए कोढ़ अलग से बना हुआ है, क्योंकि इससे उन्हें लगातार नुकसान ही उठाना पड़ा है।

मदिरा निर्माताओं के लिए सरकार ने शीरे का आरक्षण कोटा 12 से बढ़ाकर 16.50 प्रतिशत किया है। यानि मिल मालिकों को कुल उत्पादित शीरे का 16.50 प्रतिशत हिस्सा बाजार से बेहद कम दर पर बेचना अनिवार्य है। जो शीरा बाजार में 450 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकता है, उसे देसी शराब बनाने के लिए मात्र 75 से 80 रुपये प्रति क्विंटल दर से बेचना पड़ता है। मिल संचालकों के अनुसार इससे उन्हें 350 से 400 करोड़ रुपये की हानि होती है जिसमें से लगभग सौ करोड़ का नुकसान सहकारी चीनी मिलों के हिस्से आता है। अधिकतर सहकारी मिलों की दयनीय दशा किसी से छिपी नहीं है। इनको चलाए रखने के लिए सरकार को प्रतिवर्ष मदद करनी पड़ती है। ऐसे में शीरा आरक्षण से होने वाला सौ करोड़ रुपये का नुकसान सहकारी क्षेत्र की मिलों के लिए कंगाली में आटा गीला होने जैसा है। गन्ना सहकारी समिति अध्यक्ष महासंघ के महामंत्री अरविंद कुमार सिंह कहते है कि नया पेराई सत्र 30 अक्टूबर से आरंभ करने का दावा किया जा रहा है। परंतु अभी किसानों के पिछले सत्र के 4,611 करोड़ रुपये मिलों पर अटके हैं। सरकार चाहे तो देशी शराब निर्माताओं को अलग से मदद दे परंतु मिलों की आत्मनिर्भरता बनाए रखी जानी चाहिए।

स्थायी होती बकाया भुगतान समस्या : पिछले कई वर्षो से मिलों द्वारा समय से भुगतान न कर पाने की समस्या बनी है। केवल चीनी बिक्री के भरोसे मिलों को चलाना मुश्किल हो रहा है। गन्ना उपज बढ़ने से प्रदेश में चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा चीनी की मांग में ठहराव और मूल्य नियंत्रित नीति के चलते प्रदेश में पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है। उप्र शुगर मिल्स एसो. के अनुसार प्रदेश में करीब 50 लाख मीटिक टन चीनी अब भी गोदामों में है। इतना ही नहीं, चीनी बिक्री का कोटा भी सरकार तय करती है। मिल मालिक अपनी मर्जी से चीनी नहीं बेच सकते। औसतन प्रतिमाह सात लाख टन चीनी बेचने की अनुमति है। जाहिर है चीनी बिक्री पर कंट्रोल का असर गन्ने के भुगतान पर भी होता है।

   मिलों पर गत सत्र का गन्ना किसानों का 4,611 करोड़ रुपये बकाया ,चीनी मिलों के घाटे का एक बड़ा कारण शीरा आरक्षण

 
विशेष सीरीज की दूसरी किस्त
 
शीरा निर्यात की भी संभावना
 
उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन लगातार शीरा आरक्षण का विरोध करता रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में भी उसने बार-बार कोटा बढ़ाने पर सवाल उठाए हैं। एसोसिएशन का कहना है कि शराब निर्माण के लिए अनाज जैसे अन्य माध्यमों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। भारतीय शीरे की यूरोप में मांग बढ़ी है। निर्यात की संभावना को देखते हुए ही शीरा नीति तैयार हो तो बेहतर होगा।
 
शराब निर्माताओं को राहत देने से अधिक जरूरी चीनी उद्योग को बचाना है। यह 32 लाख गन्ना किसान परिवारों के हितों से जुड़ा मसला है। चीनी मिलें घाटे में रहेंगी तो गन्ना मूल्य भुगतान की समस्या प्रतिवर्ष बनी ही रहेगी।
 
-अर¨वद कुमार सिंह, महामंत्री, गन्ना सहकारी समिति अध्यक्ष महासंघ
 
विभागीय समन्वय का संकट
 
शीरे को लेकर दो विभागों में आपसी तालमेल बेहतर न होना भी आड़े आता है। शीरे का उत्पादन गन्ना विकास व चीनी उद्योग विभाग के अधीन है परंतु इसका नियंत्रण आबकारी विभाग ही करता है। इस कारण भी किसानों को लाभ से वंचित रहना पड़ता है। शीरे का उत्पादन व नियंत्रण किसी एक विभाग के हाथ में होना बेहतर रहेगा। एथनॉल उत्पादन में प्रदेश अव्वल है। गत पेराई सत्र में 4.43 लाख लीटर एथनॉल का उत्पादन हुआ। उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन के सचिव दीपक गुप्तारा कहते है कि प्रदेश में एथनॉल उत्पादन की अपार संभावना है। अभी कुल 121 चीनी मिलों में से 48 में ही एथनॉल उत्पादन हो रहा है।
 
          
 
  

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