नई दिल्ली। बदलते वैश्विक परिदृश्य में सरकार एथनॉल के सहारे क्रूड ऑयल की आयात निर्भरता घटाने, पर्यावरण प्रदूषण से निजात पाने और घरेलू शुगर इंडस्ट्री को चीनी उत्पादन का विकल्प देने की पुरजोर कोशिश में जुटी है। लेकिन कुछ राज्य सरकारों की प्रथमिकता प्रदूषण से ज्यादा सिर्फ राजस्व है। राज्य सरकारों की राहत का असर है कि एथनाल के घरेलू उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा हर साल शराब कंपनियां गटक रही हैं। यानी प्रोत्साहन एथनॉल उत्पादन बढ़ाने को दिया जा रहा है और इसका पूरा फायदा शराब कंपनियां उठा रही हैं।
चालू वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोल में तय 10 फीसद के लक्ष्य के विपरीत 5.8 फीसद एथनॉल ही मिश्रित किया जा सका है। इसे वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 20 फीसद करना है। घरेलू से वैश्विक बाजार तक में चीनी की भरपूर उपलब्धता से मुश्किलें ङोल रही शुगर इंडस्ट्री को एथनॉल उत्पादन का विकल्प मिल गया तो क्रूड ऑयल इंपोर्ट घटाने में सहूलियत हो गई। इससे एक ही तीर से कई निशाने सध रहे हैं। केंद्र सरकार की प्राथमिकता एथनॉल के उपयोग को प्रोत्साहन देने की है। गन्ना उत्पादक राज्य और वहां स्थापित शुगर इंडस्ट्री सरकार की हरसंभव मदद कर रहे हैं।
गन्ना किसानों और शुगर इंडस्ट्री की जगह शराब कंपनियों को कानूनी प्रावधान कर रियायती दरों पर शीरा मुहैया कराना केंद्र की नीतियों के पक्ष में तो नहीं हो सकता है। भारत में चालू साल में एथनॉल का कुल उत्पादन 300 करोड़ लीटर हुआ, जिसमें से 110 करोड़ लीटर शराब बनाने वाली कंपनियों के खाते में चला गया, जबकि 30 करोड़ लीटर एथनॉल केमिकल इंडस्ट्री को दिया गया। बचे हुए 160 करोड़ लीटर एथनॉल का उपयोग ही पेट्रोल में मिलाने में हुआ। केमिकल इंडस्ट्री अपनी बाकी जरूरतें आयातित एथनॉल से पूरी करती हैं।
घरेलू उत्पादन के साथ भारत एथनॉल का आयात भी करता है। लेकिन घरेलू उत्पादन बढ़ने से पिछले साल ही एथनॉल आयात में 14 फीसद तक की कमी दर्ज की गई। आयात घटकर 63.3 करोड़ लीटर रह गया है। भारत में आयात होने वाले कुल एथनॉल में अमेरिकी बाजार की हिस्सेदारी 94 फीसद है। दरअसल केंद्र सरकार में शीरा नियंत्रण को लेकर कोई कानून नहीं है। वर्ष 1993 तक मोलेसेस एक्ट था, जिसे खत्म कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग के संशोधित नियमों के तहत शीरे का 16 फीसद हिस्सा शराब कंपनियों को देने का प्रावधान कर दिया गया है, जो उन्हें सस्ती दरों पर देना पड़ता है। इसे लेकर वहां की शुगर इंडस्ट्री बेहद नाराज है।
तमिलनाडु की शुगर मिलों पर और भी सख्त पाबंदी है। वहां की मिलें अपने शीरे का उपयोग एथनॉल बनाने के लिए नहीं कर सकती। उन्हें अपना शत प्रतिशत शीरा शराब बनाने वाली कंपनियों को बेचना होता है। इससे वहां एथनॉल उत्पादन की नीति को आघात लगा है। कुछ राज्यों में शराबबंदी जरूर है, लेकिन अधिकतर राज्य इसे राजस्व का अहम हिस्सा मानते हैं और इसीलिए देसी शराब निर्माताओं को राहत देने के लिए मोलेसेस का एक हिस्सा आरक्षित कर दिया है। तो कुछ राज्य ऐसे हैं जिनके लिए एथनॉल प्राथमिकता में है ही नहीं।
देश में फिलहाल 166 शुगर मिलों में एथनॉल संयंत्र स्थापित हो गए हैं। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा के मुताबिक फिलहाल 245 प्रोजेक्ट को सरकार की मंजूरी मिल चुकी है। अगर इन परियोजनाओं में उत्पादन शुरू हो जाए तो अगले दो-तीन वर्षो के भीतर सालाना उत्पादन क्षमता 600 से 700 करोड़ लीटर तक बढ़ सकती है। चालू साल में एथनॉल का उत्पादन वर्ष 2018 के मुकाबले 11 फीसद अधिक हुआ है। पिछले साल 270 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन चीनी मिलों के शीरे से हुआ था।
एथनॉल का सबसे अधिक उत्पादन चीनी मिलों के शीरे से ही होता है। केंद्र सरकार ने नियमों को संशोधित करते हुए शुगर मिलों में सीधे गन्ने के रस से एथनॉल बनाने की छूट दी है। वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20 फीसद तक एथनाल मिश्रित करने के लक्ष्य की पूर्ति के लिए एथनॉल की सालाना उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 700 से 800 करोड़ लीटर करना होगा। फिलहाल यह क्षमता 355 करोड़ लीटर की है।
उत्तर प्रदेश
गन्ना खेती और चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यहां की मिलों में शीरे का उत्पादन 480 लाख क्विंटल से अधिक होता है, जिसका बड़ा हिस्सा एथनॉल बनाने में उपयोग किया जाता है। हाल में उत्तर प्रदेश सरकार के एक फैसले से चीनी मिलों को आर्थिक नुकसान की आशंका बढ़ गई है। देसी शराब बनाने वाली कंपनियों के लिए शीरे का 16 फीसद हिस्सा आरक्षित कर दिया गया है, जो पहले 12.5 फीसद था। इससे राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा का कहना है कि शीरे का शराब बनाने वालों के लिए आरक्षण और मूल्य तय करना चीनी मिलों के साथ नाइंसाफी है। उन मिलों पर ये प्रावधान लागू नहीं होने चाहिए जो खुद एथनॉल बनाने की क्षमता रखती हैं।
बिहार
यहां की चीनी मिलों के साथ राज्य में शराबबंदी से पहले बड़ी नाइंसाफी हो रही थी। उस समय मिलों को अपने ही शीरे के उपयोग से एथनॉल बनाने पर पाबंदी थी। शराब बनाने वाली कंपनियों को 95 फीसद शीरा सरकार के निर्धारित मूल्य पर बेचने की बाध्यता थी। इस कंट्रोल से उनका कारोबार प्रभावित हो रहा था। लेकिन शराबबंदी के साथ ही इसे कई तरह की पाबंदियों से मुक्त कर दिया गया है। मिलों के खुद प्रयोग करने रोकटोक नहीं है, लेकिन खुले बाजार में बेचने का मूल्य 287 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। राज्य की मिलों में फिलहाल सालाना 7.5 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन हो रहा है।
तमिलनाडु
राज्य की सभी चीनी मिलों को अपने शीरे के उपयोग के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है, जो आसानी से नहीं मिल पाती है। यहां की शराब कंपनियों को सारा शीरा बेचना पड़ता है। राज्य में एथनॉल उत्पादन की छूट नहीं है।
महाराष्ट्र
राज्य में एथनॉल बनाने की क्षमता का विस्तार हो रहा है। केंद्र के साथ राज्य सरकार भी एथनॉल उत्पादन बढ़ाने की दिशा में मदद कर रही है। यहां मिलों पर उनके शीरा बेचने अथवा खुद के उपयोग की पूरी छूट है। उनके ऊपर यूपी तर्ज पर शीरा आरक्षण का दबाव नहीं है। राज्य की 69 सहकारी मिलें 32 प्राइवेट मिलें और नौ स्वतंत्र डिस्टलरी इकाइयां है, जिनकी एथनॉल उत्पादन क्षमता 136.70 करोड़ लीटर की है। राज्य में पेट्रोल में 10 फीसद एथनॉल मिश्रित करने के लिए 44 करोड़ लीटर एथनॉल की जरूरत पड़ेगी।
पंजाब
एथनॉल उत्पादन के लिए पंजाब एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी का एचपीसीएल से समझौता था, लेकिन पंजाब में इस दिशा में कुछ ठोस नहीं हुआ है। मक्की, गन्ना या पराली से एथनॉल उत्पादन की शुरुआत पंजाब में नहीं हुई है। राज्य की चीनी मिलों का पूरा शीरा शराब बनाने में ही जाता है।