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News
चीनी उद्योग को निर्यात सब्सिडी से आस
Date:
31 Aug 2019
Source:
Business Standard
Reporter:
Virendra Singh Rawat
News ID:
42596
Pdf:
Nlink:
विश्लेषक चीनी की घरेलू कीमतों पर दबाव बने रहने का अनुमान जता रहे हैं। उनका कहना है कि अगले पेराई सीजन (अक्टूबर-सितंबर) की शुरुआत में बीते वर्ष का बचा यानी ओपनिंग स्टॉक रिकॉर्ड स्तर पर रहने का अनुमान है,जिससे चीनी कीमतों पर दबाव आएगा। ऐसे में इस उद्योग की उम्मीदें निर्यात सब्सिडी पर टिकी हैं, जिसकी घोषणा केंद्र सरकार ने मुश्किल दौर से गुजर रहे इस क्षेत्र के लिए बुधवार को की है। रेटिंग एजेंसी इक्रा का कहना है कि चीनी के उत्पादन में गिरावट के अनुमानों के बावजूद सरप्लस स्टॉक के कारण 2019-20 में चीनी की कीमतों पर दबाव रहेगा। चीनी कीमतों पर दबाव से कंपनियों का मार्जिन प्रभावित होगा। इक्रा के नोट में कहा गया है कि उद्योग की सेहत इस चीज पर निर्भर करेगी कि भारत कितनी चीनी का निर्यात कर पाता है और गन्ने को एथनॉल बनाने में इस्तेमाल करने के लिए कितनी नीतिगत मदद दी जाती है।
इक्रा रेटिंग के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और समूह प्रमुख सव्यसाची मजूमदार ने कहा, 'हमारा अनुमान है कि घरेलू स्तर पर चीनी का उत्पादन 2019-20 में 14 फीसदी घटकर करीब 282 लाख टन रहेगा, जो पिछले सीजन में 329 लाख टन था। महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में उत्पादन घटने से कुल उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। इन राज्यों में कम बारिश के कारण गन्ने का रकबा घटा है।' आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने गिरती कीमतों, निर्यात में कमी और बढ़ते बकाये से जूझ रहे चीनी उद्योग की मदद के लिए जुलाई, 2019 में 40 लाख चीनी का बफर स्टॉक तैयार करने को मंजूरी दी थी। इस पर 1,674 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। इस योजना के तहत सरकार मिलों को तिमाही आधार पर भुगतान करेगी। यह पैसा सीधे उन किसानों के खातों में डाला जाएगा, जिन्हें मिलों से भुगतान नहीं मिला है। इसके बाद अगर राशि बचेगी तो वह मिलों के खाते में डाली जाएगी।
हालांकि चीनी उद्योग उम्मीद कर रहा है कि मिलों को चीनी निर्यात सब्सिडी योजना से राहत मिलेगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को 10.44 रुपये प्रति किलोग्राम निर्यात सब्सिडी की घोषणा की ताकि मिलें अगले सीजन में 60 लाख टन चीनी का निर्यात कर सकें। अगले सीजन की शुरुआत में पिछले साल का बचा स्टॉक 145 लाख टन रहने का अनुमान है। इस सब्सिडी से सरकार पर 6,268 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। इससे मिलों को अपना गन्ना बकाया चुकाने में मदद मिलेगी, जो इस समय करीब 12,000 करोड़ रुपये है। इसमें से करीब 7,000 करोड़ रुपये का बकाया केवल उत्तर प्रदेश की मिलों पर है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'यह चीनी उद्योग के लिए बड़ी राहत है। अगर हम 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर भी निर्यात करेंगे तो 18,000 करोड़ रुपये की आमदनी होगी। इससे स्टॉक और उसे रखने की लागत में कमी आएगी और मिलों को नई चीनी के लिए खाली भंडारण स्थान मिल सकेगा।'
उन्होंने घरेलू चीनी उद्योग की मांग को स्वीकार करने के लिए सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस कदम से मिलों के पास नकदी की आवक बढऩे की उम्मीद है, जिससे आगामी सीजन में किसानों को गन्ने का जल्द भुगतान करना संभव हो पाएगा। उन्होंने कहा, 'जब चीनी का स्टॉक कम हो जाता है तो मिलों पर इसे बेचने का दबाव भी कम हो जाता है और बकाये को चुकाने के लिए नकदी की आवक होती है।' हालांकि अंतरराष्ट्रीय कीमतें नीची हैं, इसलिए कुछ मिलों ने निर्यात की व्यावहारिकता को लेकर संदेह जताया है। पिछले साल निर्यात कोटा 50 लाख टन तय किया गया था, लेकिन 38 लाख टन चीनी ही निर्यात की जा सकी। हालांकि इस साल कुछ निर्यात से घरेलू स्तर पर चीनी के सरप्लस स्टॉक को कम करने में मदद मिलेगी।
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