नई दिल्ली। चीनी महंगी करने की जुगत में केंद्र व राज्य सरकारों के साथ मिलें और किसान संगठन जुट गए हैं। उत्पादन लागत से कम मूल्य पर बिक रही चीनी को महंगा करने के कई उपाय सुझाए गए हैं। लेकिन इस पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मशविरा करने के बाद ही लिया जाएगा।
खाद्य मंत्री रामविलास पासवान की ओर से बुलाई गई बैठक में कोई मुख्यमंत्री नहीं पहुंचा, बल्कि सभी राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। गन्ना उत्पादक राज्यों के साथ गुरुवार को हुई इस बैठक में आधा दर्जन मुद्दों पर सभी राज्यों की आमराय बनी है। इन मुद्दों पर किसान संगठनों की भी सहमति है।
राज्यों की ओर से चीनी का बफर स्टॉक बनाने का प्रस्ताव प्रमुखता से रखा गया। एथनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिहाज से चीनी मिलों के आधुनिकीकरण के लिए रियायती दर पर कर्ज मुहैया कराने पर भी सहमति बनी। यह भी कहा गया कि सीधे गन्ने से एथनॉल बनाने वाली चीनी मिलों को उत्पाद शुल्क से छूट दी जाए।
राज्यों की ओर से आए अन्य प्रस्तावों में चीनी आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए शुल्क 40 फीसद तक बढ़ाने का सुझाव भी दिया गया। रिफाइंड चीनी के निर्यात पर प्रोत्साहन राशि देने को भी कहा गया। सब्सिडी अथवा अन्य केंद्रीय मदद किसानों को सीधे दी जाए। मिलों को दिए गए ब्याज रहित कर्ज को पुनर्गठित किया जाए। इन सारे उपायों को लागू किया गया तो चीनी के मूल्य में वृद्धि होने की पूरी संभावना है।
फिलहाल, खुले बाजार में चीनी अपनी लागत मूल्य के मुकाबले बहुत कम भाव पर बिक रही है। इससे मिलों की वित्तीय सेहत बिगड़ गई है। इसी का नतीजा है कि गन्ना किसानों का भुगतान नहीं हो पा रहा है। बकाया बढ़कर 19,000 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। अकेले उत्तर प्रदेश में किसानों का गन्ना मूल्य बकाया 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
सरकार सभी पक्षों की राय लेने के बाद संबंधित केंद्रीय मंत्रियों से मशविरा करके चीनी उद्योग की मुश्किलें सुलझाने और गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का रास्ता तलाशेगी। पासवान की अध्यक्षता में हुई बैठक में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, कृषि राज्यमंत्री डाक्टर संजीव बालियान, महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भाग लिया।