ब्याज का बोझ सरकार द्वारा वहन किया जाता है, लेकिन इस शर्त के साथ कि मिलों को इस बात की गारंटी देनी पड़ेगी कि बफर के एवेज में वे जो ऋण ले रही हैं, उसका उपयोग पूरी तरह से किसानों का गन्ना बकाया पूरा करने के लिए ही किया जाएगा किसी और काम के लिए नहीं। हालांकि इन दोनों फैसलों से मिलों की नकदी की स्थिति में सुधार और गन्ना बकाये के शीघ्र भुगतान की उम्मीद है, लेकिन इसका कितना असर होगा, यह बात आगे चलकर पता चलेगी क्योंकि इस बफर स्टॉक से 1.45 करोड़ टन के शुरुआती स्टॉक का केवल कुछ भी भाग खपेगा। 2019-20 के सीजन की शुरुआत के समय चीनी उद्योग का शुरुआती स्टॉक इतना ही रहेगा। किसी भी सीजन की शुरुआत में सामान्य स्टॉक की आवश्यकता 45-50 लाख टन होती है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने एक बयान में कहा कि पिछले कुछ वर्षों में एफआरपी में काफी तेज इजाफा हुआ है और गन्ने ने किसानों को अन्य फसलों से मिलने वाले रिटर्न को पीछे छोड़ दिया है। इस फैसले (एफआरपी को अपरिवर्तित रखने के) से फसलों के बीच संतुलन कायम होगा। इससे चीनी मिलों को भी लाभ होगा क्योंकि चीनी उत्पादन में 70 से 75 प्रतिशत लागत केवल गन्ने की ही होती है।