देश के दूसरे सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के लिए यह साल भी घाटे वाला रहा और उन पर कर्ज का बोझ बढ़ा है, वहीं किसानों का बकाया भी है। राज्य में 118 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 29 निजी मिलों ने वित्त वर्ष खत्म होने से पहले ही परिचालन बंद कर दिया है, पिछले साल भी इसी समय 5 मिलों ने परिचालन बंद कर दिया था। दरअसल घाटा कम करने के लिए इन मिलों ने परिचालन बंद किया है। बेहतर पैदावार और उत्तर प्रदेश में गन्ने का परामर्श मूल्य ज्यादा होने एवं चीनी की कीमतों में गिरावट से मिलों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। 15 मार्च तक उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन 56.2 लाख टन रहा, जो पिछले साल के मुकाबले 10.94 फीसदी ज्यादा है। वित्त वर्ष 2014-15 में देश भर में 2.65 करोड़ टन चीनी उत्पादन होने का अनुमान है, जो अनुमानित खपत 2.48 करोड़ टन से 17 लाख टन ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में चीनी की उत्पादन लागत 3,500 क्विंटल प्रति टन है, जबकि मिलों का बिक्री मूल्य 2,600 रुपये प्रति क्विंटल है। उत्पादन लागत ज्यादा होने की वजह यह भी है कि गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य 280 रुपये प्रति क्विंटल रहा। उत्तर प्रदेश में करीब 40 लाख गन्ना किसानों की आजीविका इसी फसल से चलती है। मिलों पर चालू पेराई सत्र में करीब 5,600 करोड़ रुपये का गन्ना बकाया है, जो गन्ने की कीमत के आंशिक भुगतान 240 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर आकलन किया गया है। अगर पेराई सत्र, जो सितंबर में खत्म होगा, उसमें गन्ने की कीमत में 20 रुपये प्रति क्विंटल और जोड़ दिया जाए, जो बकाया करीब 9,500 करोड़ रुपये तक हो सकता है। महाराष्टï्र सहित देश भर में 31 मार्च, 2015 तक गन्ना बकाया करीब 17,000 करोड़ रुपये तक रहने का अनुमान है। उत्तर प्रदेश में जब चालू सत्र में गन्ने की पेराई शुरू हुई थी तब गन्ना के भुगतान को किस्तों में देने की मंजूरी दी गई थी। मिलों को राज्य परामर्श मूल्य 280 रुपये प्रति क्विंटल की जगह 240 रुपये अग्रिम भुगतान करना था। उत्तर प्रदेश एकमात्र राज्य है, जहां हर साल चीनी मिलों और गन्ना किसानों के विवाद होता है। प्रत्येक पेराई सत्र में अदालतों तक भी मामले पहुंचते हैं। 25 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मवाना और मोदी मिल्स को 20 अप्रैल तक पिछले पेराई सत्र का बकाया चुकाने का निर्देश दिया था।