ब्राजीलियाई मुद्रा रियाल में गिरावट का चीनी की वैश्विक कीमतों पर असर पड़ा है, इसलिए भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारतीय चीनी उद्योग पहले ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है। भारतीय मिलें निर्यात सब्सिडी का फायदा उठाने की उम्मीद कर रही थीं। लेकिन ब्राजीलियाई रियाल में भारी गिरावट से उनकी यह उम्मीद भी धूमिल पड़ गई है। भारतीय मिलों के लिए निर्यात सौदे करना मुश्किल हो गया है। सुकदेन इंडिया के प्रबंध निदेशक यतिन वाधवाना ने कहा, 'इस समय चीनी को फंडामेंटल से ज्यादा समष्टि आर्थिक कारक ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं। ब्राजीलियाई रियाल में गिरावट से चीनी की वैश्विक कीमतों में गिरावट आई है। भारतीय रुपये में इस अनुपात में गिरावट नहीं आई है। इसके अलावा अन्य जिंसों की कीमतें दुनियाभर में गिरी हैं, जिसका चीनी की कीमतों पर गलत असर पड़ सकता है।' चीनी उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक ब्राजीलियाई रियाल में कमजोरी और चीनी की वैश्विक कीमतों में गिरावट से भारतीय निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है, क्योंकि चीनी की कीमतें डॉलर में तय होती हैं। ब्राजील के बाद भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। हालांकि भारत निर्यात के मामले में काफी पिछड़ा है। देश का निर्यात करीब 5 लाख टन होता है। इस साल फरवरी में केंद्र सरकार ने 14 लाख टन तक के निर्यात पर मिलों को 4,000 रुपये प्रति टन की सब्सिडी देने का फैसला किया था, ताकि मिलें अपने अतिरेक स्टॉक को कम कर सकें। हालांकि डीलरों का मानना है कि देश का निर्यात 5 लाख टन से ज्यादा नहीं रहेगा, क्योंकि कीमतों में गिरावट के कारण मिलें कच्ची चीनी का उत्पादन नहीं करना चाहती हैं। भारतीय कच्ची चीनी के दाम गिरकर 330 से 340 डॉलर प्रति टन (फ्री ऑन बोर्ड) हो गए हैं, जो कुछ सप्ताह पहले 465 डॉलर प्रति टन थे। उद्योग का कहना है कि उन्हें कई तिमाहियों से घाटा हो रहा है, क्योंकि केंद्र और राज्यों द्वारा गन्ने की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से उत्पादन लागत ऊंची बनी हुई है। देश में चीनी की एक्स-फैक्टरी कीमत गिरकर चार वर्षों के निचले स्तर पर आ गई है।