गोरखपुर :
एक एकड़ में औसत 200-250 की तुलना में 1000 से 1200 क्िवटल गन्ने की पैदावार। है न हैरत की बात। अगर हर खेत में ऐसा होने लगे तो गन्ना पूर्वाचल की अर्थव्यवस्था में एक बार फिर मिठास घोल सकता है। इसको साबित किया है 30 वर्षीय बालबिहारी द्विवेदी ने। हालांकि वह खेती (बलरामपुर सेहरिया पचपेड़वा) में करते हैं, पर मूल रूप से देवरिया के ब्रह्मापुर गांव के निवासी हैं।
दो साल पूर्व वह एक पावर प्लांट में नौकरी करते थे। माह की पगार करीब 22 हजार रुपये थी। सबसे बड़े भाई पुन्य आत्मा द्विवेदी महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक कंपनी में काम करते हैं। मझले भाई श्रीनिवास भी हरियाना में ठीकठाक नौकरी करते हैं।
पुन्यआत्मा कोल्हापुर और आस-पास के जिलों में अक्सर गन्ने और फूलों की उन्नत खेती से रुबरू होते थे। सोचते थे कि अपने यहां ऐसा क्यों नहीं होता। अपनी मिट्टी अच्छी है, पानी भरपूर है। आबादी के नाते न तो कामगारों की कमी है न बाजार की। सोच धीरे-धीरे छटपटाह में बदली। बालबिहारी को बुलाया। कहा अगर उन्नत खेती करो तो तुमको हर संभव मदद की जाएगी।
बालबिहारी राजी हो गए। वहीं एक फार्म में रहकर करीब 6 माह तक गन्ने की उन्नत खेती का तरीका सीखा। वहीं से गन्ने की तीन उन्नत प्रजातियों (86032, 1234, 264) के 700 पौधे लाए। गोरखपुर के फातिमा अस्पताल के पास स्थित अपने एक प्लाट में लगाकर इनका बीज तैयार किया। तैयार बीज को बलरामपुर स्थित अपने खेतों पर ले गए। वहां 2.5 एकड़ में उसको लगाया। पानी के बेहतर प्रबंधन के लिए ड्रिप सिस्टम लगाया।
तैयार फसल देखने लायक थी। एक-एक गन्ने की ऊंचाई 10-15 फीट और वजन 3-4 किग्रा के बीच। वे कहते हैं कि उम्मीद है कि औसत उपज 1000-1200 क्िवटल तक होगी। मेरा लक्ष्य इसे 1500 तक ले जाने का है। फिलहाल उनके गन्ने की चर्चा दूर-दूर तक है। हर रोज कई लोग उनकी खेती देखने आते हैं। बलरामपुर चीनी मिल के लोग भी उनके यहां विजिट कर चुके हैं। बालबिहारी की तरह नर्सरी तैयार करने के बारे में सोच रहे हैं। गन्ने के साथ सरसों की भी फसल ठीकठाक है। केला लगाने की भी सोच रहे हैं।
कहते हैं कि खेती घाटे का धंधा नहीं। शर्त यह है कि आपके पास संसाधन हों, श्रम करने का माद्दा हो और बेहतर नियोजन हो। मैं अगर ऐसा कर पा रहा हूं तो इसमें मेरे भाइयों का और पिता कल्याण प्रसाद द्विवेदी का पूरा सहयोग है। लोग आपस में सहयोग करें और सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को मिले तो खेती में हर नजीर पूर्वाचल के नाम होगी। यहां के युवाओं को घर-परिवार छोड़कर कमाने के लिए न बाहर जाना होगा न समय-समय पर जलालत झेलनी पड़ेगी।